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हास्य कवि सम्मेलन

JANMANCH
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कुछ समय पूर्व एक कवी सम्मलेन में मेरे सहित देश के सभी जाने माने कवी आये हुए थे, सभी कवी मंच पर विराजमान थे तभी उनकी दृष्टि एक स्त्री पर पड़ी जो प्रथम द्रष्टाया देखने से ऐसा प्रतीत होता था की वो बहुत परेशान है और शायद आत्महत्या करने के लिए जा रही है तो वहां उपस्थित सभी कवियों ने अपनी अपनी शैली में उस स्त्री के ऊपर कविता की रचना की. सबसे पहले मंचासीन कवियों में से द्वारका प्रसाद महेश्वरी जी ने अपनी रचना सुनाई ( इस प्रकार की कोई रचना किसी कवी की वास्तविक रूप में नहीं है केवल उनसे मिलती जुलती शैली का प्रयोग किया गया है, ये किसी कवी के ऊपर व्यंग या मज़ाक भी नहीं है ये केवल एक हास्य रचना है यदि फिर भी किसी को मेरी इस रचना से ठेस पहुंचे तो में क्षमाप्रार्थी हूँ)

द्वारका प्रसाद महेश्वरी

अ वीरांगना बढ़ी चलो
और तुम ज़रूर मरो
खाई या पहाड़ हो
या बिजली का ही तार हो
ज़हर की ही पुडिया हो
या फांसी का ही फंदा हो
मरो जरा तुम शान से
यूँ उठो जहान से
सम्बन्धी सब तड़प उठें
पुलिस के डंडे पड़ें

तत्पश्चात आये
माननीय सुरेन्द्र शर्माजी

चार लाइना सुना रियो हूँ
मैं तने मरने से
रोक तो को नी सको हूँ
घणो डर लागे सै
पर थारे मरने के पाछे, माणे
एक आदमी को सुख नज़र आवे है

डॉ. हरिवंश राय बच्चन

मरने जाती तो जा, पर लेजा मेरे मधु की हाला’
और लगा ले जाम जरा तू भर भर के मय का प्याला
मरने में अ तुझको बाला कष्ट न होने पायेगा
अरे मरते रहते पीने वाले जीवित रहती मधुशाला

अशोक चक्रधर

मरना है तो मरजा क्यों खड़ी रो रही
ज़हर तो बहुत है क्या खड़ी देख रही
अब देर क्यों करे है बड़ी देर हो गयी
बड़ी ढीठ बाला है अब तो हद हो गयी
बड़ी ढीठ बाला है अब तो हद हो गयी

काका हाथरसी

सबला, अबला सी दिखती है,यो हो गई अबला सबला
किसी निर्बल से पुरुष के, सिर की टल जायेगी बला
टल जायेगी बला, वो एक टांग पर नाचेगा
स्वर्गलोक का सुख भी, वो पृथ्वी पर पा लेगा
कहे काका कवी राय, जरा भी झिझक न जाना
खाले ज़रा सा ज़हर या, रेल से कट के तू मर जाना

अटल बिहारी वाजपेयी

हे हत होती बाला तुझे कोटि कोटि प्रणाम
तेरे इस बलिदान पर देश को है अभिमान
नारियों के बलिदानों की मेरे देश में बनी वेदी है
उन्ही वेदियों के कारण नारी भारत में देवी है
स्वर्गलोक में जाने से तू किंचित न घबरा जाना
दर्शन होते ही प्रभु को भारत की व्यथा बताना
तेरे इस महान कार्य का मैं सदैव करूंगा मान
हे हत होती बाला तुझे कोटि कोटि प्रणाम

मुनीष कुमार

मरती है तो मरजा अपने घर से क्या जाएगा
किसी किस्मत वाले का घर उजड़ने से बच जाएगा
फिर भी एक शंका मेरे मन में बसी हुई है
तेरे ऊपर जाते ही यमराज नीचे तो न आ जायेगा

हालाँकि कवियों ने आपस मैं कोई मंत्रणा नहीं की थी परन्तु पता नहीं सबके भाव एक से क्यों थे जो मेरे से मिलते जुलते थे. कवी सम्मलेन समाप्त हुआ

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