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देवतुल्य मैं और मिस्टर शर्मा

JANMANCH
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अब मैं आप लोगों से अपनी क्या तारीफ़ करूं, बस आप समझ लीजिये की मेरे को जानने वाले मुझे देवता से कम नहीं समझते. क्योंकि मैं हमेशा देवताओं की तरह मुस्कराता रहता हूँ, कितना भी संकट क्यों न आ जाए मेरे चेहरे पर कभी कोई शिकन तक नहीं आती, श्रीमती जी के सामने आँख बंद करके लेट जाता हूँ तो वो संकट भी स्वयं ही टल जाता है, ये कला मैंने विष्णु भगवान् से सीखी की घोर संकट के समय आँख बंद करके चुपचाप सैंयम के साथ पड़े रहिये, संकट अपने आप टल जाएगा. यदि किसी की मदद करनी हो तो मैं देवताओं की तरह हमेशा भगवद्गीता का सार समझा कर उसकी मदद करता हूँ, सभी के दुःख में दुखी और सुख में सुखी रहकर साथ देता हूँ, इस प्रकार अपने देवत्व में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आने देता.


परन्तु कुछ दिन पूर्व की घटना है की अपने देवत्व के स्थान से ऐसा लुढका की इंसान के स्तर तक आ गिरा. हुआ यूँ की हमारे पडोसी मिस्टर शर्मा की श्रीमतीजी का देहांत हो गया जिसके कारण उनको घनघोर दुःख हुआ मैं भी उनके दुःख में शामिल होने गया, परन्तु सच बताऊँ तो मुझे अन्दर से बड़ा सुख पहुंचा (ये आज के दौर में इंसानियत की पहचान है की जो दुसरे के दुःख में सुख का अनुभव करे या सुख में दुःख का अनुभव करे समझ लीजिये पक्का इंसान है) कारण मुझे शर्माजी से बहुत जलन होती है, क्योंकि वो हर समय अपनी श्रीमतीजी की तारीफ़ करते…….. कहते आज मिसेज़ शर्मा ने ये बनाया आज वो बनाया……. आज मेरे लिए ये लायीं आज वो लायीं……..और कभी कभी तारीफ़ का स्तर इतना बढ़ जाता की मुझे बेइंतहा जलन होती मैं सोचता की ये मिसेज़ शर्मा, मिसेज़ गुप्ता क्यों न हुई………… खैर शर्माजी की दुःख की घड़ी में, मैं शामिल हुआ और उन्हें सांत्वना दी ………शर्माजी सुबकते हुए बताने लगे की कल ही मिसेज़ शर्मा रात को उनके पैर दबाते हुए जन्मों जन्मों के साथ की बात कर रही थीं और आज…………….और वो रोने लगे….. और मैं सोचने लगा सचमुच मिसेज़ शर्मा देवी ही थीं जो आज के दौर में भी पैर दबाती थीं उनका साथ तो किसी देवता को ही मिलना चाहिए था ये शर्मा कहाँ मिल गया ……..और फिर एक हताशा भरी सांस ली.


खैर….. मिसेज़ शर्मा की अर्थी को लेकर सब लोग चल पड़े…….. मैंने भी सोचा चलो ऐसी देवी का साथ हमें न मिला कोई बात नहीं हम अपना कन्धा तो दे ही सकते हैं. यही सब सोचते हुए मैंने मिसेज़ शर्मा को कन्धा दिया………….. सब लोग कह रहे थे “राम नाम सत्य है” और में ख्यालों में था की काश मिसेज़ गुप्ता भी पैर दबातीं……. और यही सोचते हुए मैं एक खम्बे से टकरा गया, अर्थी मेरे हाथ से छूट गयी……. हे राम ये क्या हुआ ……… पर होइही वही जो राम रची राखा…….. पता नहीं क्या हुआ कैसे हुआ परन्तु मिसेज़ शर्मा की सांस अचानक वापस लौट आई, सभी लोग बड़े खुश हुए खासतौर पर मिस्टर शर्मा………. और मैं भी इंसानियत के कारण इस बार दुखी हुआ क्योंकि मिस्टर शर्मा खुश थे……..  पता नहीं मिस्टर शर्मा ने ऐसे कौन से कर्म किये थे जो उनकी बीवी उनकी इतनी सेवा करती और पता नहीं मेरी बीवी ने ऐसे कौन से कर्म किये थे जो उसकी सेवा मुझे ही करनी पड़ती है.


वैसे ऐसा नहीं है की मैं अपनी श्रीमतीजी से दुखी रहता हूँ या वो मुझे दुखी करती है वास्तव में मेरी स्थिति आम भारतीय पति की ही भांति है  परन्तु जब मिस्टर शर्मा अपनी श्रीमती जी की इतनी तारीफ़ करते  हैं तो लगता है की कहीं कोई गड़बड़ है भला ऐसे कैसे हो सकता है की मिसेज़ शर्मा आम भारतीय पत्नियों से हटकर हों …….?  बस इसी वजह से मिस्टर शर्मा से जलन होने लगी की उनकी बीवी आम भारतीय बीवियों से बढ़िया कैसे.  यूँ तो हमारी श्रीमतीजी  की आभा भगवान् सूर्यदेव से बिलकुल भी कम नहीं है उनके सुन्दर मुखमंडल को मैं आज तक नजर भर देख भी नहीं सका हूँ जैसे भगवान् सूर्यदेव को नहीं देख सका.  इतनी आभा शायद मिसेज़ शर्मा में नहीं होगी……….!  जितनी पतिव्रता हमारी श्रीमतीजी हैं इतनी शायद मिसेज़ शर्मा न हो क्योंकि हमारी श्रीमतीजी तो अक्सर हमें व्रत कराती हैं पर मिसेज़ शर्मा, मिस्टर शर्मा को व्रत नहीं कराती………!   और देखा जाए तो मिसेज़ शर्मा हमारी श्रीमतीजी की गुणों की खान के आगे paani bharti  ही नज़र आएँगी पर फिर भी हम उनकी उस कदर तारीफ़ नहीं कर पाते जितनी मिस्टर शर्मा करते हैं………..हमारी इस कंजूसी से हमारी श्रीमतीजी अक्सर खफा ही रहतीं हैं


अब जबसे मिसेज़ शर्मा स्वर्गारोहण करके लौटी हैं तब से मिस्टर शर्मा कुछ ज्यादा ही उनके गुण गाने लगे और हमारा भी उनके घर जाने का अक्सर मन करता रहता, की कैसे ही उस देवी के दर्शन हो जाएँ जिसके दर्शन केवल मिस्टर शर्मा ही कर पा रहे हैं,………. मिस्टर शर्मा ने हमें कभी भी अपने घर की दहलीज़ के अन्दर नहीं आने दिया, शायद उन्हें मिसेज़ शर्मा पर विश्वास न हो क्योंकि उनके अनुसार वो तो देवी हैं ही और वो हमारे विषय में भी जानते हैं की …………. मिस्टर गुप्ता भी किसी देवता से कम नहीं हैं और देवत्व के भाव हमारे अन्दर कूट कूट कर भरे हैं शायद वो मन ही मन मुझसे डरते थे और मुझे कभी भूलकर भी अपने घर निमंत्रण नहीं देते थे.


परन्तु भगवान् बड़ा कारसाज है उससे देवताओं का दुःख कभी सहन नहीं हुआ, और कुछ दिनों बाद ही हमें फिर से खुश होने का मौका मिला,  खबर मिली की मिसेज़ शर्मा फिर से स्वर्गारोहण के लिए निकल गयीं हैं. हमसे घर पर न रहा गया ………..! हम मिस्टर शर्मा के घर सर झुकाए हुए पहुंचे कुछ झिझक तो थी ही की वो हमें अपने घर बीस  दिनों में दो बार बुला चुके हैं और हम एक बार भी नहीं बुला पाए……..खैर वाही सब बातें होने लगीं जो बीस दिन पूर्व हुई थीं ……… मिस्टर शर्मा दुखी थे और में इंसानियत की हद पार कर गया था और बहुत खुश था…….. सब लोग अर्थी लेकर चल दिए, मैंने भी सोचा की चलो उस देवी के साथ अपने कंधे का साथ तो बन ही गया है……. फिर से कन्धा लगा देते हैं………. जैसे ही हम अर्थी के निकट आये मिस्टर शर्मा ने हमें अर्थी से दूर हटा दिया,……….. शायद उन्हें हमारी इंसानी मन की कालोंस पता चल गयी थी …………! मैं हतप्रभ था पर क्या करता,  सब के साथ ही मैं भी बोलने लगा ” राम नाम सत्य है…… राम नाम सत्य है ” लेकिन मिस्टर शर्मा इसबार कुछ ज्यादा ही सतर्क थे और कह रहे थे ” खम्बा बचाकर चलो भाई, खम्बा बचाकर………!”

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