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मेरी एतिहासिक होली

JANMANCH
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मुझे होली बहुत अच्छी लगती है और शायद मैं उन लोगों में से हूँ जो सारा दिन होली के हुडदंग में शामिल होते हैं,  सारे शहर में घुमते हैं, सबसे मिलते हैं. पिछली होली पर मैं बहुत उत्साहित था वैसे तो मैं हर होली पर ही उत्साहित रहता हूँ पर पिछली बार होली से एक दिन पूर्व मुझे एक मशीन मिली वो भी ऐसी वैसी मशीन नहीं थी, पूरी जादूई मशीन थी, उसका प्रयोग करके हम अपने भूत भविष्य में आ जा सकते थे तो मैंने सोचा क्यों न भूत काल में ही घूम आऊं  और होली खेल लूँ पता नहीं किस के साथ खेलने का मौका मिल जाए. मैंने मशीन का प्रयोग किया और उसका बटन दबा दिया …………

एक झटके के साथ वातावरण बदल गया…… घना जंगल था और वहीँ जंगल में कुछ लोग साधू सन्यासियों की वेश भूशा में घूम रहे थे परन्तु चाल ढाल,  हाव- भाव से सैनिक से लगते थे…………सभी होली की तैयारियों में व्यस्त  थे…….तभी एक सन्यासी ने पीछे से आकर मेरे कंधे पर हाथ रखा…….. मैं डर गया……. उसने कहा

कौन हो तुम…… और यहाँ छुप कर क्या देख रहे हो ?

ज.. जी मेरा नाम मुनीश है……..और मैं तो इधर से गुजर रहा था ,  होली की तैयारी देख रुक गया सोचा आपके साथ होली ही खेल लूं लेकिन आप लोग…………..

वो बात तो सब ठीक है लेकिन तुम्हारी वेश-भूशा से तो तुम अंग्रेजों के गुप्तचर लगते हो……..

जी अंग्रेज …….(मैं चौंका) …! अंग्रेज अब कहाँ ……………..उन्हें तो भारत छोड़े साठ वर्ष हो गए…..

क्या तुम पागल हो…….

जी नहीं ……… लेकिन आप लोग कौन हैं…….. लगता है आप लोग “भगवा आतंकवादी” हैं

तभी सामने से आते हुए एक सन्यासी ने कहा ” अरे भावानन्द वहां क्या कर रहे हो और ये अजीब से वस्त्र पहने मनुष्य कौन है………!”

भाई जीवानंद ये मनुष्य पागल लगता है कहता है अंग्रेज भारत को छोड़कर साठ वर्ष पूर्व जा चुके हैं ……..!

क्या ………….! शायद ये होली के दिन कोई उपहास कर रहा होगा परन्तु सावधान ये कोई अंग्रेज गुप्तचर हो सकता है……….

इतने में मुझे लगा की शायद ये नाम मैंने कहीं सुने हैं या पढ़े हैं  तभी मुझे ध्यान आया अरे ये तो बंगाल में हुए सन्यासी विद्रोह के सेनापति जीवानंद और भावानन्द हैं तब मैंने उनसे पूछा

क्या आप “आनंद आश्रम” के गुरु स्वामी सत्यानन्द के संतान सेनापति हैं……….

तभी दूर से एक कातर स्वर सुनाई दिया जो निरंतर पास आता जा रहा था…..हरे मुरारे…….हरे मुरारे……

जीवानंद बोले ” गुरुदेव ” …………….और उनके आते ही दोनों ने चरण स्पर्श किया.   मैंने भी गुरुदेव को  चरण स्पर्श किया, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया साथ ही मेरे विषय में जानना चाहा तो मैंने उन्हें अपने विषय में पूरी जानकारी देते हुए भारत के इतिहास को  संक्षिप्त में सुना दिया ………….ये सुनकर वो बहुत प्रसन्न हुए ………और बोले

हे भविष्य पुरुष भले ही “भले ही ये जगद्जननी सस्यश्यामला माँ भारती आज़ाद हो जाए लेकिन ये सुनकर हम अपने आज के कर्त्तव्य से मुहँ तो नहीं मोड़ सकते…….. तुम आज हमारे मेहमान हो और हमारे  साथ होली के उत्सव में शामिल होने का हम आपको आमंत्रण देते हैं,  आज के उत्सव में आपको हम सब ” मुनीशानंद” कहकर पुकारेंगे…

उसके बाद विजय गीत “वन्दे मातरम” का उद्घोष हुआ सभी सन्यासी संतानों ने टेसू के रंग से होली खेली और शपथ ली की आने वाले युद्ध में दुश्मन के खून से होली खेलेंगे……..

मैंने भी सबको रंग लगाया, क्या नहीं था उस होली में,  भारत माँ के प्रति अपार श्रद्धा, एक सुसंस्कृत समाज के निर्माण का संकल्प और रंगों की फुहार जो आने वाले भविष्य को रंगों से भर रहीं थी होली का आनंद लेते लेते मैं अपनी मशीन पर जा बैठा “वन्दे मातरम” का उद्घोष किया और बटन दबा दिया……….


माहौल बिलकुल बदला हुआ था मैं हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशियेशन के ऑफिस में था लेकिन मैंने इस बार छुप कर ही उनकी होली देखी सोचा मेल मुलाकात में बहुत समय निकल जाएगा और ये समझने में भी देर लगेगी की मैं कौन हूँ सो छुपकर ही होली का आनंद मनाया जाए

सेंट्रल अस्सेम्बली में बम फोड़ने की तैयारी चल रही थी ……… दिन मुकरर हुआ ८ अप्रैल १९२९, और उसके बाद सभी क्रांतिकारियों ने पूरे जश्न के साथ होली खेली की शायद अगली होली पर रहे न रहे ….. भगत सिंह कुछ सोच कर बुद बुदा रहे थे…….

हवा में रहेगी मरे ख्यालों की बिजली,

यह मुश्ते-खाक है फानी. रहे-रहे न रहे………..!

और फिर होली के जश्न में माँ के लाल कूद पड़े उन्हें शायद इस बात का आभास तो था ही की अगली होली या तो जेल में होगी या…………..सब ऐसे ही गले लग रहे थे जैसे फांसी से पूर्व भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव लिपट-लिपट कर मिले थे, सब कुछ तो था वहां राष्ट्र पर अपने को सर्वस्व न्योंछावर करने की भावना, प्रेम का संगीत ……, उड़ता गुलाल, और गुंझिया की मिठास,  मन तो मेरा भी बहुत किया की मैं भी कूद जाऊं होली के जश्न में पर गया नहीं उनकी होली देखकर और उनके भविष्य को सोचकर मेरे आंसू निकल रहे थे मुझसे वहां पर ठहरा न गया और मशीन पर जा बैठा फिर वन्दे मातरम् कहा और बटन दबा दिया………..


और देखा की गब्बर सिंह चिल्ला रहा था की…………. “होली कब है कब है होली……!”

साम्भा बोला ……क्या सरदार आप भी…….. कुछ पढाई-वड़ाई ठीक से की होती तो ये हमसे बार बार तो न पूछना पड़ता की कब है होली……….जब आएगी तो बता देंगे आपको ये बार बार कान मत खाया करो

अरे ओ साम्भा………(गब्बर सिंह गिडगिडा कर बोला)  बता दे न यार………. होली पर जब वो छमियां नाचती है तो हमको बहुत अच्छी लगती है

बस यही कारण तो हम तुमको नहीं बतलाये की कब है होली………. जहाँ छमियां देखी की नाच देखना चालू…….. अब ये कालिया को भी तुमने मार दिया ………. अब भीख मांग कर कौन लाएगा…….!     तुम्हें तो नाच के अलावा कुछ सूझता नहीं बिलकुल निखट्टू हो……..!   अच्छे डाकू का एक भी गुण नहीं है तुम में……! उस ठाकुर पर इतनी दया दिखाने  की क्या जरूरत थी की केवल हाथ ही काटे……! और तुम ये हंसी ठिठोली भी बहुत करने लगे हो वो कालिया को मारने में इतने हँसे काहे थे………! पता है इतना ज्यादा हसने से डाकुओं की इज्जत कम हो जाती है और ये दांत-वांट भी कभी साफ़ कर लिया करो …………!

(मैं हैरान था की साम्भा ……………….और गब्बर सिंह को डांट लगा रहा है….और गब्बर सिंह भीगी बिल्ली बना सुन रहा है………. पर मैं चुप ही रहा डाकुओं का क्या भरोसा कभी मेरे ही खून से होली खेलने लगें)

तभी साम्भा ने कहा अब ये यहाँ पड़े पड़े चींटियाँ मारना बंद करो ………(फिर हस कर बोला) मेरे प्यारे गबरू आज ही है होली……….! इतना सुनते ही सब उछल पड़े और नाचने लगें हवा में गोलियां दागने लगे, गले मिले, एक दुसरे को राख लगाई(गुलाल तो था नहीं), और निकल पड़े रामगढ़ की ओर, छमियां का नाच देखने को …………मैं सोच रहा था की बेचारा गब्बर चलो अच्छा है लोगों को असलियत नहीं पता वर्ना वहां से पचास पचास कोस दूर तक जितने भी गाँव थे सबके बच्चे उसका मजाक उड़ाते और कहते …………………….होली है ……………………मैं मशीन पर बैठा और फिर बटन दबा दिया ………………………


मैं आल इंडिया कांग्रेस के दफ्तर में था १९४२……….. सब तरफ होली का उन्मांद था ……….सभी लोग सफ़ेद कुर्ते-पजामे में टोपी लगाकर, एक दुसरे के गले मिल रहे हैं……. आगामी आन्दोलन की चर्चा कर रहे हैं…………. ! गांधी जी होली वाले दिन भी दैनिक कार्यों में व्यस्त हैं……. !सबके चेहरे पर संतोष का भाव है कुछ न कुछ करने की सबके मन में अभिलाषा है सबके मन के अन्दर आज़ादी के प्रकाश के दीये की लौ टिमटिमा रही है पर शायद किसी को भी अपने पर विश्वाश नहीं है………….. सब गांधीजी के पास राखी हुई मशाल को देख रहे हैं क्योंकि सबको उम्मीद है रास्ता सही ढंग से मशाल ही दिखा सकती है………………..!

मैंने महसूस किया की होली के रंग तो हैं पर उत्साह नहीं……..! सब होली खेल तो रहे हैं पर होली का हुड़दंग, भाव, सब नदारद……..! शिष्टता हर हाव भाव पर भारी है……..! मैं हुडदंगी आदमी हूँ ऐसी सोम्य और शिष्टता वाली होली नहीं खेल पाता सो बटन दबा दिया…………


बस वर्ष ही बदला था, मैं कांग्रेस(सोनिया) के दफ्तर मैं था, सब तरफ चहल पहल थी……..! सभी नेतागण अपने अपने पेट फुलाकर हँसते हुए आ रहे थे हंसी सबकी एक सी ही थी थोड़ी कुटिल सी……….. सब लोग  सबसे pahale  सोनिया जी के पास जाकर प्रणाम करते और रंग लगाने की आज्ञा लेते.  सोनिया जी किसी के साथ होली नहीं खेल रहीं हैं वो मनमोहन जी की तरफ इशारा कर देती हैं सब लोग मनमोहन जी को रंग लगा कर चले जाते हैं……….. पर कमाल की बात ये है की जब सब लोग रंग पानी में मिलाते हैं तो रंगीन होता है लाल, हरा, नीला, पीला…… परन्तु मनमोहन जी के ऊपर गिरते ही वो काला हो जाता है मनमोहन जी सबके रंगों को अपने ऊपर ही झेल रहे हैं  मजबूर जो हैं……………. होली जोर शोर से चल रही है……..सब कुछ है…….कुटिलता…….धोखाधड़ी…………रंगहीन रंगों की बरसात………. नहीं है तो बस विशवास समर्पण…..और उत्साह……………! मैंने फिर से बटन दबा दिया


आज ब्रज में होली रे रसिया……………..! गीत की तान पर सब नाच रहे हैं चारों तरफ हर्ष का वातावरण है, सभी दिशाएं रंगों से सराबोर हैं,  मुरली की मधुर धुन पर सब गोप गोपियाँ नाच रहे हैं……… मैं पेड़ के पीछे से मधुसुदन की होली देख रहा हूँ……….. बांसूरी बज रही है………….मैं भी धून में मदहोश होता जा रहा हूँ ………..मैं भी नाच रहा हूँ…………… गोपाल भी मेरे साथ हैं……………….मेरे चित्त ने मेरा साथ छोड़ दिया है………… ह्रदय में केवल कृष्ण………….. न मुझे घर का ध्यान था………..न बच्चों का………न दोस्तों का………. न समाज का………….मैं कृष्ण के रंग से सराबोर था………. वो रंग जिसके आकर्षण से निकलने का मन भी न करता था……….बस कृष्ण की मुरली की धुन…………..सब गोप गोपियों का नृत्य और मैं……………………………………….तभी एक जोर की आवाज़ लगी………………….


अजी सुनते हो…………. दिन चढ़ आया है होली खेलने के लिए लोग आते होंगे और तुम सो रहे हो……………………..मैं हतप्रभ परेशान ……………कृष्ण कहाँ हैं……….मेरी मशीन कहाँ है……….!


मीठी हो जायेंगी………..इतना कहते ही उसने मेरे ऊपर रंगों से भरी बाल्टी  उड़ेल दी……….

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