सुबह – सुबह घूमने के लिए निकला तो काफी धुंध थी और अन्धेरा होने के कारण सामने का कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था . मैं रोज़ की भाँती उस सड़क की ओर चल पड़ा जिस तरफ पेड़ पौधे ज्यादा हैं और वातावरण स्वच्छ रहता है…….! स्वच्छ वातावरण न मिले तो सुबह को घूमने का क्या फायदा…….., अभी आधा किलोमीटर ही चला होऊंगा की अचानक मेरा पैर पानी में चला गया. मैंने थोडा बचकर चलने की कोशिश की पर पानी बहुत ज्यादा था . मैं सोच मैं पड़ गया की इतना अधिक मात्रा मैं पानी कहाँ से आया……..! फिर ये सोच कर की देखता हूँ पानी कहाँ से आ रहा है मैं किनारे किनारे चलने लगा…..!
अब उजाला बढ़ने लगा था और मुझे महसूस हुआ की ये महज पानी नहीं बल्कि नदी है, परन्तु रातों रात ये नदी कहाँ से आ गयी. कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा ये सोचकर मैंने स्वयम को ही चिकोटी काटी…….. नहीं सपना नहीं था मैं जाग रहा था. तो फिर ये नदी कहाँ से आ गयी मैं वहीँ एक पत्थर पर बैठ गया…….. कोई और भी नहीं दिखाई दे रहा था जो उस से पूछ लेता ……… बहरहाल पानी बहुत स्वच्छ था जैसे पहाड़ों पर होता है मैंने अंजुली में पानी लिया तो हल्का गरम सा लगा इतनी ठण्ड में गरम पानी …… मैंने पानी का घूँट भरा तो स्वाद खराब हो गया, पानी खारा सा लगा …… इतना स्वच्छ पानी पर खारा….. अब मेरे मन में जिज्ञासा होने लगी की रातों रात इतने स्वच्छ पानी की नदी कहाँ से आई……. वो भी खारे पानी की.
कुछ उजाला और बढ़ा तो मैंने नदी का स्रोत जानने की कोशिश की ……… मैंने यूँ ही आवाज़ लगाई……. कोई है….? अरे कोई जानता है ये नदी कहाँ से आई…….! पर वहां कोई नहीं था, अब मुझे कुछ दर सा भी लग रहा था फिर भी मैं साहस बटोरकर आगे बढ़ा, तभी मुझे किसी के सुबकने की आवाज आई मैंने गौर से देखा तो एक उसी नदी के किनारे कोई बैठा हुआ रो रहा था, वेश भूषा से वो पुलिस अफसर लग रहा था. मैंने पास जाकर देखा तो वो आई पी एस नरेन्द्र कुमार थे………!
मेरी आंखें फटी की फटी रह गयीं हलक सूख गया ………! मैंने हकलाते हुए कहा ….अ आप . उन्होंने मेरी और देखा और आंसू पोंछते हुए मुझसे कहा .. हाँ मैं. ….! आप तो ……..? मैंने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया .! हाँ मैं नरेन्द्र कुमार की आत्मा हूँ . उस आत्मा ने मुझसे इतने सहजता से कहा की मेरे अन्दर कुछ साहस आया . मैंने बात आगे बढाई…… लेकिन आप यहाँ कैसे और आपकी आँखों मैं आंसू………! हाँ मैं रो रहा था, मैं अपनी मौत पर नहीं रहा था मैं रो इसलिए रहा था की अपनी भारत माँ को इन भ्रष्टाचारियों के चंगुल से छुड़ा न पाया, देशद्रोहियों को सजा न दिलवा पाया, मैं रो इसलिए रहा था की ईश्वर मेरी सुने और मुझे फिर से भारत माँ के आँचल मैं भेजे जिस से मैं अपना अधूरा काम पूरा कर सकूं……….!
लेकिन इतने आंसू की पूरी नदी बन गयी …..! मैंने आश्चर्य से पूछा….. वो बोले नदी तो पीछे से आ रही है मेरे आंसू तो इस में मिल गए हैं……..!
मैंने आगे बढ़ कर देखा, वहां एक के पीछे एक सब वो लोग थे जो देश की सेवा करते हुए शहीद हो गए थे कारगिल में मरने वाले जवान भी थे तो वो सब सैनिक भी थे जिन्होंने भारत के लिए बाकी युद्धों में अपनी जान भारत माँ पर न्योछावर कर चुके थे, मैं आगे बढ़ता जा रहा था सब की एक ही इच्छा थी की काश वो भारत माँ की कुछ और सेवा कर पाते, तभी मुझे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस दिखाई दिए उन्होंने सफ़ेद शाल ओढ़ी हुई थी, वो बेचैनी में इधर उधर चहल कदमी कर रहे थे. मैं उन्हें देखकर सावधान खड़ा हो गया, सेल्यूट कर जय हिंद कहा ……..! उन्होंने मेरी ओर हिकारत भरी नज़र से देखा……..! और बोले आओ मृत आत्मा के जीवित प्राणी ………!
मेरी नजरें झुक गयीं………! मैं समझ गया की उन्होंने ऐसा क्यों कहा……… ! वो आगे बोले…….. ” तुम आज कल के लोगों के अन्दर कोई आत्मा होती है या नहीं ……. कुछ देश के विषय में सोचते हो या नहीं ……..! या यूँ ही सिर्फ दिखावा करते हो.
मैंने कहा ” जी मैं अकेला क्या कर सकता हूँ………! ” मर तो सकते हो ” वो गुस्से में बोले……… ” क्यों बिना मतलब भारत माँ का बोझ बढ़ा रहे हो……..” मैंने कुछ झिझकते हुए कहा ” जी लेकिन मैंने क्या किया है ?”
वो बोले ” यही तो रोना है की तुमने कुछ नहीं किया है” और तुम्हारे जैसे लोग भरे पड़े हैं बेकार भारत माँ पर बोझ बने बैठे हैं……! देश को नरक बना दिया है तुम लोगों ने …….! अरबों खरबों के घोटाले हो रहे हैं, …… और तुम लोग मस्त हो ……. भर्ष्टाचार लगातार बढ़ रहा है और तुम लोग सो रहे हो …….! देश के दुश्मन देश में घुसे बैठे हैं और तुम अपने स्वार्थ में मग्न हो……….! अरे तुम जैसे लोगों का जीना तो क्या मरना भी बेकार है………
नेता जी के गुस्से को में झेल नहीं पा रहा था की तभी वहां बापू आ गए …….. शायद वो सुभाष बाबू की गरज सुन कर आये थे ……. उन्होंने भी वहां आकर अपने आंसू पोंछे….. और बोले शांत सुभाष शांत ……….! क्यों व्यर्थ इस पर अपना गुस्सा निकाल रहे हो……..! बापू …….. ! ये गुस्सा नहीं है ये सच है इन लोगों ने अपने अपने स्वार्थों के लिए इस देश को नरक बना दिया है……..! ये आपका रामराज तो नहीं है जिसका आप सपना देखते थे.
हाँ शायद………! वो सपना अभी बहुत दूर है, मैं तो केवल अब सपना ही देख सकता हूँ की शायद वो सब सच हो जाए जो तुम और हम भारत के विषय मैं सोचते थे. पर निरीह प्राणी पर अपनी भड़ास निकालने से क्या होगा…?
बापू आप हमेशा इन जैसे लोगों के समर्थन में आ जाते हो और फिर अकेले में घुट घुट कर रोते हो मैं ये सब नहीं देख सकता …….! इस देश के लोग बिलकुल नकारा हैं…….. अरे इन लोगों को हमारे सपनों का क्या मान होगा जब हम लोगों की ही परवाह नहीं……. मेरी तो छोडिये आपको तो राष्ट्रपिता बना रखा है हर चौराहे पर आपकी मूर्ती है कभी कपडा भी मारते हैं ये लोग कितनी धूल जमीं रहती है पक्षी बीट कर जाते हैं पर इन लोगों को क्या ……….! हम कोई इनके थोड़े ही हैं …….. अरे ये तो एक उदाहरण है, इंसान मानते हैं अपने को ये लोग …….! और जानवर से भी ज्यादा बदतर तरीके से रहते हैं. …….चील कौओं की तरह लड़ते हैं ………
देखो ….. ये वो निरीह लोग हैं जो आज के माहौल में जीने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं…….! यहाँ की सरकार ने इस देश के लोगों को स्वावलंबी बनाने के लिए कुछ नहीं किया, उन्होंने सत्ता सुख के लिए इन लोगों को इस कदर बाँट दिया है, की सबको केवल अपने स्वार्थ ही नजर आते हैं इनको इस तरह की शिक्षा दी जा रही है जो इन लोगों को राष्ट्र की ओर से उदासीन बना रही है. जो थोडा बहुत लोग कुछ करने की सोचते भी हैं तो जनता चाहकर भी उनका साथ नहीं दे पाती और………परिणाम वही धाक के तीन पात.
बापू …….. ये जो नदी बह रही है…… इसमें मेरे भी आंसू हैं और आपके भी……. आज़ाद के भी है और भगत के भी…….. ये केवल आंसू नहीं है ये हमारी अभिलाषाएं आंसू बनकर बह रहीं हैं और मैं अब ऐसा होने नहीं दूंगा कहते कहते सुभाष बाबू फिर से जोश में आ गए तो अब क्या इरादा है…….. ! बापू ने हलके से मुस्कराते हुए पूछा !
आप ये आंसुओं की नदीं देख रहे हैं ……… ये जितनी आत्माओं के आंसूं हैं, वो सभी आत्माएं अभी भी जिंदा हैं उन सबके दिल धडकते हैं आज भी अपने देश के लिए ……..! “वो इस जिन्दा इंसान की मृत आत्मा की तरह नहीं हैं” उन्होंने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा ” जिसके दिल ने धडकना छोड़ दिया हो जिसके आंसू सूख चुके हों जिसकी सोच तक गुलाम हो ……….! मैं इन सब आत्माओं की नयी फौज बनाऊंगा ………..!
बापू …… थोडा चोंकते हुए बोले……… ” आत्माओं की फौज ……….!”
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