my thoughts
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जब गए थे लाहौर बस से,
मिला कारगिल का तोफा था,
बुलाया आगरा में था तुझको,
तब संसद का मौका था,
चले आये इस्लामाबाद से,
अब न जाने होगा क्या?
लिखोगे कोई कहानी नई,
या दोहरोगे पुरानी दास्ताँ,
लगाओगे गले हमको या,
खंजर पीछे से उतारोगे ,
करोगे दोस्ती या हमसे,
फिर दुश्मनी निभाओगे,
चले आये इस्लामाबाद से हम,
न जाने तुम कब आओगे……………………….. © अभिजीत साहू
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