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भारत के आने वाले 20 वर्ष

My Thoughts....मेरे विचार
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भारत विकाश कर रहा है, और जल्द ही एक विकसित देश का दर्जा हासिल कर लेगा, ऐसी चर्चा है। जैसा की हर भारतवाशी चाहता है, मै भी चाहता हु की एक दिन हमारा देश विश्व के विकसित देशो के सूची मे आ जाय। एक आम नागरिक के तौर पर आप विकसित देश के बारे मे क्या सोचते है ? सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), प्रति व्यक्ति आय, औद्योगीकरण, बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे और एक मानक जीवन स्तर। मै आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हु, मै भी यही सोचता हु। हममे से कुछ लोग कहते है, की अगले 20 वर्षो मे हम विकसित देशो के श्रेणी मे आ जायगा। मै भी चाहता हु ऐसा ही हो। ना ही मै राष्ट्रीय नीतियों का विद्वान हु और ना ही अर्थशास्त्र का ज्ञाता। एक सामान्य नागरिक के तौर पर मुझे नहीं पता की उनकी भविष्यवाणी के क्या आधार है। मै अपने इस छोटे से दिमाक और अपनी भावनाओ के साथ अपने देश लिए जो सोचता हु उसका एक छोटा सा हिस्सा आज आप से बाटना चाहता हु। हममे से ज़्यादातर लोग गाव से ताल्लुक रखते है, और मै समझता हु की हम सब ने अपने गाव मे पिछले 20 वर्षो का विकाश देखा है। चुकी आप मेरे इस लेख को पढ़ रहे है, तो मै यह समझता हु की आप अपने गाव के एक विकसित नागरिक है, सभी परिप्क्ष्य मे। आपसे मै निवेदन करना चाहता हु, थोड़ा सा अपने दिमाक पर ज़ोर डाले और सोचे की पिछले 20 वर्षो मे आपके गाव मे कितना विकाश हुआ। कितने प्रतिशत आपके गाव के लोग, आपके स्तर तक पहुच पाये है, और आपकी तरह जीवन जी रहे है। अगर मै ज्यादा से ज्यादा भी समझु तो 3% शायद आपके स्तर तक पहुच पाये होगे। अब आप इस आधार पर आने वाले 20 वर्षो के बारे मे थोड़ा सोचे, क्या हम बचे 97% लोगो को अगले 20 वर्षो मे उस जगह तक पाहुचा पाएगे, जहा हम है। निःसन्देह हमने उत्कृष्ट बुनियादी सुविधाये लोगो तक पाहुचाई है। परंतु ज़्यादातर सुविधाए महानगरो या शहरो तक ही सीमित है। सन 2011 के आंकड़े बताते है की हमारे देश के 69% लोग ग्रामीण क्षेत्रो मे निवास करते है और 31% शहरो मे। और सम्पूर्ण जनसंख्या का 8% हिस्सा महानगरो मे बसता है (Census of India 2011)। हममे से बहोत से लोग कहते है की पिछले कुछ वर्षो मे सभी क्षेत्र के लोगो के वेतन मे वृद्धि हुई है। हा, उनकी बात सत प्रतिशत सत्य है। परंतु कितने लोग की ? भारतीय रिसर्व बैंक के आर्थिक जनगणना (2012) के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या का सिर्फ 2.7% हिस्सा सार्वजनिक (सरकारी) और संगठित निजी क्षेत्रों मे काम करता है। और देश की 97% जनसंख्या कृषि और दूसरे क्षेत्रो पर निर्भर है (Reserve Bank of India, 2011)। संयुक्त राष्ट्र संघ की रुरल पावरटी रिपोर्ट के अनुसार विश्व की आबादी के 70% अत्यंत गरीब लोग भारत के गावों मे निवास करते है (IFAD, 2011)। उनमे से कुछ लोग किसान है जिनकी खुद की जमीन है और बाकी सभी भूमिहीन मजदूर है, जो आकस्मिक कृषि मजदूरी श्रम पर निर्वाह कर रहे हैं. यह बड़े दुःख की बात है की हमारी आबादी के इस बड़े हिस्से की औसत प्रति दिन आय सिर्फ 57.93 रुपए है (Berg et al. 2012)। हमारे 70% भाइ एक महीने मे सिर्फ औसत 1700 रुपए कमा पाते है, और यह भी इस बात पर निर्भर करता है की उन्हे कितने दिन काम मिल पाता है। मै सोचता हु, महीने मे उन्हे 20 दिन काम मिल पाता होगा। अब आप सोचिए आप विकसित है, या अपनी वर्तमान स्थिति के साथ 20 सालो मे इस अंतर को भर पायेंगे। कई बार हमारे कई भाई कहते मिलते है की हमने बहोत विकाश किया आज हमारा संचारतंत्र बहोत मजबूत हो चुका है। गाव- गाव मे टीवी और मोबाइल पहुच चुके है। हा अच्छी बात है, यह भी जरूरी है। परंतु आपको नहीं लगता ये मोबाइल को गाव तक पहुचाने का श्रेय उन दुकानदारो को जाता है, जिन्हे अपने ग्राहक बढ़ाने है और लाभ कमाना है। हमे नहीं चाहिए मोबाइल, हमे खाना, कपड़ा और अपने बच्चो के लिए अच्छी शिक्षा चाहिए। आज भी मन मे बीबीसी संवादता को वो लेख हलचल मचा देता है, जिसमे वो लिखते है की जब मै उड़ीसा के कालाहांडी जिले के एक परिवार मे गया तो, भारतीय संस्कृति का मान रखते हुए परिवार वालों ने अपने मेहमान को कुछ खाने को देना चाहा, परंतु कुछ ना होने पर, उन्होने, उन्हे खाने मे कुछ पत्तिया ही परोशी। यह हमारी स्थिति है। आपको लगता है अगले 20 वर्षो मे हम इससे उबर पायेंगे। भारत सरकार की सामाजिक – आर्थिक सांख्यिकी रिपोर्ट (2011) कहती है की हमारे ग्रामीण क्षेत्र मे प्रति व्यक्ति घरेलू उपभोग व्यय 763 रुपये जिसमें से रुपये 395 खाद्य वस्तुओं पर खर्च होता है। उसी प्रकार शहरी क्षेत्र के लिए खर्च 1464 रुपये रुपये 575 खाद्य वस्तुओं पर खर्च होता है। क्या यह संभव है?

मेरा उद्देश सरकार या किसी और की शिकयात करना बिलकुल नहीं है, और ना ही मै मानता हु की सरकार इसके लिए दोषी है। मै इन सब बातों के लिए अपने आप को दोषी मानता हु, और अपने साथ अपने जैसे भाइयो को, जो अकर्मण्य बने हुए है। मै नहीं कहता की कोई आंदोलन करो, बस यह चाहता हु, जो भी ज़िम्मेदारी हमे मिली है, उसका निर्वाह पूरे मन के साथ, पूरी श्रद्धा के साथ करे। सबसे पहले हम इस देश के नागरिक है। हमे सबसे पहले उस ज़िम्मेदारी का निर्वाह पूरी लगन से करना होगा। हमे अपने अधिकारो को जानना होगा। अगर हम चाहे तो बहोत कुछ बदल सकता है। कब तक समस्याओ को लेकर परेशान होते रहेगे। हम सब जानते है, भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या है। परंतु किया क्या जाये। मै आपसे पूछता हु। आप बताइये। ऐसा नहीं है की देश के विकाश के लिए योजनाए नहीं आती है। उनका कार्यान्वयन अच्छी तरह से नहीं हो पाता है। परंतु ये हमारा फर्ज बनता है की हमारे आस पास होने वाले हर काम पर नजर रखे। किसी से शिकयात मत करिए, सिर्फ ये पूछिए की क्या हो रहा है। जब सब जागरूक होंगे तभी कुछ होगा। जो भी जानकारिया आपके पास है, आप अपने आस पास वालों से बाटे। आपसे एक छोटी सी प्राथना है की कभी भी अशिक्षित और पिछड़े लोगो को दोष ना दे। वो हमारे नौनिहाल की तरह है, जिन्हे पता नहीं है की क्या हो रहा है। परंतु हम तो शिक्षित और हमे उनके बड़े भाई का फर्ज निभाना होगा। किसी भी देश का शिक्षित वर्ग ट्रेन के इंजीने की तरह होता है, जो समाज को आगे बढ़ाते हुए उसकी दिशा निर्धारित करता है। हमे उन अशिक्षित भाइयो को और अपने बच्चो को सही मार्गदशन देना होगा। और यह भी मत सोचिए की जो हम करेंगे उसका परिणाम तुरंत मिलेगे। हमे थोड़ा धैर्य दिखते हुए अपना काम एक निरन्तरता से करना होगा। पिछले कुछ वर्षो से हम सिर्फ शिकयात ही कर रहे है। और यह स्वाभाविक है, जब व्यक्ति परेशान होता है, तो मन मे यह भाव आ ही जाता है। परंतु अब हमे उस शिकयात से थोड़ा आगे बढ़ाना होगा। ऊपर लिखे पैरा से ऐसा प्रतीत होता है, की हमे उस स्तर तक जाने मे अभी काफी वक्त लगेगा। पर मै सोचता हु की नहीं हम कर लेंगे, हम अगले 20 वर्षो मे अपने देश को विश्व गुरु का दर्जा फिर से दिला सकते है। बस जरूरत है एक सकारात्मक सोच की। जब कोई बुरा आदमी किसी बुरे काम के लिए लोगो मे कट्टरता पैदा कर सकता है। हम तो अच्छे है, हम क्यो नहीं देश भक्ति, अच्छाई की कट्टरता अपने बच्चो मे पैदा कर सकते है। यदि आज हममे से हर कोई सोच ले और आज से ही अपने बच्चो को उस दिशा मे अग्रसर करे तो क्यो नहीं हम अगले 20 वर्षो मे विश्व मे सर्वोपरि होंगे। हमे हर उस अच्छी चीज को स्वीकार करना होगा, जिससे हमारा और हमारे देश का विकाश होगा। पिछले कुछ दिनों से मुझे यूएसए मे प्रवास करने का और उन्हे समझने का मौका मिल रहा है। इन दिनों मे उनके प्रति मन मे एक सम्मान सा पैदा होते पाया, क्यो हम बुरा देखे हमे सिर्फ अपनी बुराई देखना चाहिए और दूसरों की अच्छाई। यहा मै पाता हु की ये हर अच्छे व्यक्ति को अपने साथ लेना चाहते है, इन्हे इस बात की कोई परवाह नहीं होती की वह किस देश का है या किस जाती का। आज ये विश्व मे आगे है तो इसका सिर्फ और सिर्फ एक कारण है की ये इस योग्य है। हमे भी बस थोड़ा सा बदलना होगा, तो हम पाएंगे की हम भी कुछ है। जब रहना एक घर मे है, तो क्यो आपस मे लड़े। क्यो उन लोगो की पुतलिया बने जिंका उद्देस हमारी भावनाओ से खेलना और तमाशा देखना है। हमे अपना उद्देस सिर्फ एक बनाना है, आगे बढ़ना है और साथ मे बढ़ना है।

जय हिन्द
अजय सिंह नागपुरे

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