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होते रहेंगे बलात्कार

My Thoughts....मेरे विचार
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पिछले कुछ दिनो से जिस मनोस्थिति से गुजर रहा हु, उसे शब्दो मे बया कर पाना मेरे बस मे नहीं है। जब हमारा मन इतना विचलित और परेशान है, तो जो व्यक्ति और उसका परिवार इस परिस्थिति से गुजर रहा है, उनका क्या हाल होगा ? क्या होगी उनकी मानसिक स्थिति ? मुजरिमों को सजा भी दिलवा देंगे तो क्या हम उस बच्ची को वो दे पायंगे जिसे उसने हमेशा के लिए खो दिया है। जीवन का हर पल उसके लिए किस कदर गुजरेगा, इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जीवन मे जब भी आगे उससे छोटी सी भी गलती होगी, तो यह समाज उसे रह-रह कर इस बात की याद दिलाएगा। शर्म आती है यह सोचकर की मै इस समाज का हिस्सा हु। और मन मे आह भी है की, आज तो इस समाज के कुछ लोग साथ है, परंतु कुछ ही दिनो मे उस लड़की को इस समाज के उस हिस्से को भी झेलना होगा जो जीवन पर्यन्त उसकी पीड़ा का उसे अहसास दिलाते रहेगा। उस गलती के लिए जो उसने कभी की ही नहीं। हम संस्कृति के बात करते है, धर्म की बात करते है, क्या यही हमारी संस्कृति है। बस से फेके जाने के एक घंटे तक लड़की रोड पर पड़ी रही। कहा थी तब हमारी संवेदना, कहा थी इस देश के लोगो की संस्कृति। याद रखिए वह आपकी बेटी, माँ, बहन पत्नी कोई भी हो सकती थी। भारत वर्ष के धर्म और धर्मग्रंथ मे बलिदान को हमेशा सर्वोपरि रखा गया है। और आज हम इतने सवार्थी हो गए है की अपना एक पल भी दूसरों को नहीं देना चाहते। हम उस समाज का हिस्सा है जहा हत्या और बलात्कार करने वालों की भी वाह-वाह होती है, और हमारे ही समर्थन से वो उच्च पदो पर बैठे है। दूसरी ओर वो जिसका बलात्कार होता है, उसे बिना किसी गलती के सम्पूर्ण जीवन भर अवेहलना झेलनी पड़ती है। आज यह जघन्य घटना देश की राजधानी मे हुई तो आप यह सोचिए के सम्पूर्ण देश की क्या हालत होगी। कहा जा रहे है हम, इस दुनिया को दिखा रहे है की हम प्रगति कर रहे है। क्या यही हमारी प्रगति है ? 2,28,650 महिलाओ उत्पीड़न के अपराध पंजीबद्ध किए गए वर्ष 2011 मे जो वर्ष 2010 की अपेक्षा 7.1% ज्यादा है। जिसमे से बलात्कार के मामले 24206 है। नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ो पर नजर डाली जाये तो वर्ष 1999 (15468) से 2011 (24206) के दौरान बलात्कार की घटनाओ मे 56% वृद्धि हुई है। यह तो आंकड़े है, आप सभी जानते है की वास्तविकता क्या होगी। क्या ये हमारी प्रगति है? क्या कारण है की पुलिस और प्रशासन के पास सुविधाए बढ़ने के साथ साथ अपराध भी बढ़ रहे है ? जबकि उनका मुख्य उद्देश अपराध को घटाना होता है। आज जिम्मेदार पदो पर बैठे हुए लोग भावनात्मक रूप से रोष प्रकट कर रहे है, हमे आपका रोष नहीं चाहिए, हमने आपको वो जगह इस लिए नहीं दी है। हमे कार्यान्वयन चाहिए।यदि आप भी हम जैसे रोष प्रकट करते रहंगे तो धिक्कार है आप पर। इस समाज के जिम्मेदार लोगो की वास्तविकता देखिये जिस रोज यह घटना घटी उसके दूसरे दिन ही जब एक न्यूज़ चेनल के लोगो ने पूरी दिल्ली का जायजा लीया, तो उन्हे मात्र कुछ जगहो मे पुलिस खानपुरती करते हुए नजर आई। और उसी न्यूज़ चैनल की एक सवांदाता के साथ कुछ लोग छेड़खानी करते हुए नजर आए। आज बस मे बलात्कार हुआ तो बस के सीसे हटा दो, पर्दा हटा दो कल अंधरे मे बलात्कार हुआ तो लाइट लगा दो। तो इसका अर्थ यह हुआ की किसी भी निर्णय पर जाने से पहले कोई जघन्य घटना होनी जरूरी है। हम हस्पताल तब बनायंगे जब कोई मर जाये और जनता हंगमा करे। क्या इस सरकार मे, समाज मे वह योग्यता है की पीड़ित किए मानशिक, शारीरिक और सामाजिक क्षति को भर पाये? हमारे समाज के कुछ लोगो ने कहा की लड़किया कम कपड़े पहनती है, बाहर घूमती है इस कारण यह हो रहा है। पिछले कई महीनो से 2-2 साल के बच्चो के साथ यह हो रहा है क्या वो कम कपड़े पहनती है। गाव मे जो बलात्कार होते है क्या वो कम कपड़े पहनती है। इन लोगो की नजर मे बालात्कारी से ज्यादा कपड़े पहनने वालों की गलती है। हजारो बाते सुनने मे मिलती है। जिन्हे लगता है की अब ये रुक जागा, ये उनका बहुत बड़ा भ्रम है। सरकार कह रही है उम्र कैद की कोशिश की जायगी। हद हो गई अब भी कोशीश ही की जायगी। सेकड़ों लडकीया हर साल इसलिए आत्म ह्त्या कर लेती है क्योकि उनके व्यक्तिगत विडियो को उनके ही अपनो द्वारा बाजारो मे बेचा जाता है। बात कड़वी लेकिन सत्य है की हम मे से हर व्यक्ति ने कभी ना कभी इसे बड़े चाव से देखा है। इतना दोगला पन है, हमारे समाज मे। हम उस समाज का हिस्सा है जहा पत्नी मर जाए तो पति शादी कर सकता है, तो तब माँ बाप से लेकर समाज तक सब उसके साथ है, परंतु यही यदि पत्नी के साथ हो तो सब गलत है। पति पचास गलत काम करे तो भी सही है, और यदि लड़की एक दिन किसी से बात भी कर ले तो उससे बढ़ा कोई पाप नहीं है । आज समाज मे बलात्कार करने वाले की शादी हो सकती है परंतु जिस लड़की से साथ हुआ उसका कुछ नहीं हो सकता। जब कोई व्यक्ति ये कहता है की उसे भारतीय होने पर शर्म आती है, वो यह बतलाता है वह जिस देश मे है उसकी स्थिति क्या है। याद रखिए बिना डंडे के जानवर सही नहीं चलता, और ये सिर्फ भारत मे ही नहीं हर जगह लागू होता है। परंतु बाहर के बुद्धिजीवियों ने यह आज से 200 साल पहले ही समझ लीया था, और हम आज भी उसे नहीं समझ पा रहे है। हम वो भ्रमित लोग है जो ना तो आधुनिक है, न परंपरा वादी। एक तरफ तो हम अपराधी को सजा देने की मांग करते है, दूसरे तरफ हम उसी अपराधी को अपना नेता बनाते हुए गर्व महसूस करते है। हर कोई पश्चिमी सभ्यता द्वारा लाई गई भौतिक वस्तुओ का उपभोग करना चाहता है, उनकी तरह जीना चाहता है, परंतु दूसरों से अपेक्षा करता है की वो हमारी संस्कृति की इज्जत करे। आज ना हम हिंदुस्तान की संस्कृति का आगे बड़ा रहे है ना अपने आप को आधुनिक बना पा रहे है। आज देश की राजधानी मे यह हुआ, परंतु हम सब यह जानते है, यह तो हमारे देश के हर कोने मे रोज की बात है। मै अपने हृदय से उन सभी लोगो का आभारी हु और नतमस्तक हु जिन लोगो ने इस घिनोने अपराध के खिलाफ किसी ना किसी तरह से अपना विरोध दर्ज किया है, परंतु शर्मिंदा हु उन लोगो के लिए जिनकी सवेन्दनाए मर चुकी है। जो आज भी चुप है, जो आज भी जाति, फिल्म, धर्म और दक़ियानूसी बातो को आगे बड़ा रहे है, परंतु इस विषय पर बात करने पर शर्मा रहे है। मै यह दावे के साथ कहता हु, जब तक ऐसे सवेदन हिन लोग समाज मे रहेंगे तब तक इस देश मे बलात्कार होते रहेंगे।
जय हिन्द
अजय सिंह नागपुरे

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