narayani
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”कर्म ‘
जिन्दगी तेरी छुले चाहे कितनी ऊंचाई
मत छोड़ना सत्यता का धर्म
रखना मन में सागर की गहराई
तुझसे आहत न हो किसी का मर्म
विषम होगी परिस्थितियाँ तेरी
कभी न छोड़ना तुम अपना धर्म
दहकती है अंगारों सी कभी जिन्दगी
तुम बने रहना शांत ,शीतल नर्म
नजरों उठी रहे सदा स्वाभिमान से
खुद पर कभी न आये तुम्हें शर्म
दीन दुखी की सेवा, बन उनका सहारा
यही होंगे तेरे जीवन के ” सत्कर्म ”
देह पर अभिमान न करना कभी
मिटटी ने मिल जाएगी यह काया चर्म
अभिमान कर तो माँ भारती पर
उसकी सेवा के लिए तेरी नसों में हो लहू गर्म
यही होंगे तेरे जीवन के” सत्कर्म ”
ईश्वर की आराधना यही है
किये जा तू अच्छे” कर्म ”
नारायणी
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