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बाल विवाह

narendra jangid
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छोटी सी उम्र में परणाई रे बाबोसा , ये राजस्थान का लोक गीत है। ये बाल विवाह से संबंधित है और इसे वर्तमान में कई राज्यों में देखा जा सकता है। राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और प. बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है । बाल विवाह का सम्बन्ध आमतौर पर भारत के कुछ समाजों में प्रचलित सामाजिक प्रक्रियाओं से जोड़ा जाता है, जिसमें एक युवा लड़की (आमतौर पर 15 वर्ष से कम आयु की लड़की) का विवाह एक वयस्क पुरुष से किया जाता है। बाल विवाह की दूसरे प्रकार की प्रथा में दो बच्चों (लड़का एवं लड़की) के माता-पिता भविष्य में होने वाला विवाह तय करते हैं। इस प्रथा में दोनों व्यक्ति (लड़का एवं लड़की) उनकी विवाह योग्य आयु होने तक नहीं मिलते, जबकि उनका विवाह सम्पन्न कराया जाता है। कानून के अनुसार, विवाह योग्य आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष एवं महिलाओं के लिए 18 वर्ष है। मैं राजस्थान के बाडमेर जिले के एक छोटे से गाँव में रहता हूँ। इस गाँव में अठारह साल के बच्चे को दुल्हन मिल जाती है और कहा जाये तो एक मुसीबत मिल जाती है। एक बार मैंने अपने गाँव के एक बुजूर्ग से पूछा कि लड़कियों की कम उम्र में शादी क्यों की जाती है तो उनका जबाव सुनकर मैं अवाक् रह गया। उन्होंने कहा कि लड़की पराया धन होती है और इस तरह इन्हें कब तक अपने घर में रखोगे। लड़कियों के लिए पढ़ाई जरूरी नहीं है , उन्हें घर का काम अच्छे से आना चाहिए। ऐसे कई गाँवों में लोगों के दिलों दिमाग में अशिक्षा एवं अन्धविश्वास घर किये हुए है। जहाँ लड़कियों को कम रुतबा दिया जाता है। एक बार मैं अपने चाचा के बेटे की बारात में गया , तो मैंने वहां देखा कि काफी बुजुर्ग एक व्यक्ति की पीठ थपथपा रहे है। दोस्तों , उसका कारण कुछ और नहीं , बल्कि अधिक दहेज़ देना था।
एक बार हमारे गाँव में एक वृद्ध आदमी की मृत्यु के पीछे क्रिया कर्म होने के बाद एक ही परिवार की छ लड़कियों की शादी कर दी और उनमे सबसे छोटी लड़की की उम्र मात्र सात वर्ष थी।
इस तरह कम उम्र की लड़कियां, जिनके पास रुतबा, शक्ति एवं परिपक्वता नहीं होते, अक्सर घरेलू हिंसा, सेक्स सम्बन्धी ज़्यादतियों एवं सामाजिक बहिष्कार का शिकार होती हैं और कम उम्र में विवाह लगभग हमेशा लड़कियों को शिक्षा या अर्थपूर्ण कार्यों से वंचित करता है जो उनकी निरंतर गरीबी का कारण बनता है। कम उम्र में शादी होने से लड़की यौन शोषण का शिकार होती है और कम उम्र में बच्चे पैदा होने से मातृ मृत्यु दर बढ़ती जा रही है।
बाल विवाह लिंगभेद, बीमारी एवं गरीबी के भंवरजाल में फंसा देता है। समाज के कई वर्गो में कोख में ही बच्चे की सगाई तय हो जाती है। राजस्थान में जाट समुदाय में आज भी बाल विवाह का प्रचलन जोरों पर है। वहां बच्चों की शादी थाली में बिठाकर यानि कि पांच साल से काम उम्र में ही कर दी जाती है। तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अंत नही हो पा रहा है । बालविवाह एक अपराध है, इसकी रोकथाम के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आना चाहिए । लोगों को जागरूक होकर इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए । बाल विवाह का सबसे बड़ा कारण लिंगभेद और अशिक्षा है साथ ही लड़कियों को कम रुतबा दिया जाना एवं उन्हें आर्थिक बोझ समझना । क्या इसके पीछे आज भी अज्ञानता ही जिमेदार है या फिर धार्मिक, सामाजिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज ही इसका मुख्‍य कारण है, कारण चाहे कोई भी हो इसका खामियाजा तो बच्चों को ही भुगतना पड़ता है ! पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों के लोग अपनी लड़कियों कि शादी कम उम्र में सिर्फ इस लिए कर देते हैं कि उनके ससुराल चले जाने से दो जून की रोटी ही बचेगी । वहीं कुछ लोग अंध विश्वास के चलते अपनी लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर रहे हैं । कभी कभी तो यह भी देखने में आता है कि कम उम्र में बाल विवाह कर दिया जाता है और बाद में जाकर लड़का उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त कर लेता है और फिर वह बड़ा होकर बचपन में किये गए विवाह को ठुकरा देता है और अपनी पत्‍नी से तलाक ले लेता है । गाँवों में लोगों को अपने बच्चों के भविष्य की चिंता न रहकर अपनी इज़्ज़त की चिंता रहती है। छोटी ही उम्र में शादी कर लड़कियों का भविष्य अंधकार में डाल दिया जाता है। कई बार ऐसे मामले सामने आते है जिसमे लड़की को ससुराल पक्ष द्वारा कई कारणों को लेकर परेशान किया जाता है और वह लड़की अशिक्षित होने की वजह से विरोध नहीं कर पाती और आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती है क्योंकि उनके माँ बाप भी यही सलाह देते है कि बेटा , अगर मार भी सहनी पड़े तो भी कोई गम नहीं , लेकिन कभी भाग कर वापस मत आना , नहीं तो समाज में हमारी बेज़्ज़ती हो जाएगी। कभी कभी तो यह भी देखने में आता है कि कम उम्र में बाल विवाह कर दिया जाता है और बाद में जाकर लड़का उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त कर लेता है और फिर वह बड़ा होकर बचपन में किये गए विवाह को ठुकरा देता है और अपनी पत्‍नी से तलाक ले लेता है । विवाह के पश्‍चात् माँ – बाप कन्‍या को शिक्षा से वंचित कर देते है और उस कन्‍या के लिए जीवन नर्क के समान हो जाता है । उनके अनुसार अगर लड़की ज्यादा पढ़ी लिखी हुई तो वह माँ बाप की सेवा नहीं करेगी। । जो भी हो इस कुप्रथा का अंत होना बहुत जरूरी है । वैसे हमारे देश में बालविवाह रोकने के लिए कानून मौजूद है । लेकिन कानून के सहारे इसे रोका नहीं जा सकता । बालविवाह एक सामाजिक समस्या है । अत:इसका निदान सामाजिक जागरूकता से ही सम्भव है । इसलिए समाज को आगे आना होगा तथा बालिका शिक्षा को और बढ़ावा देना होगा । क्योंकि लड़की ही वंश का पालन करती है और उसका शिक्षित होना , आने वाली पीढ़ी के भविष्य के लिए बेहद जरुरी है। आज युवा वर्ग को आगे आकर इसके विरूद्ध आवाज उठानी होगी और अपने परिवार व समाज के लोगों को इस कुप्रथा को खत्‍म करने के लिए जागरूक करना होगा । यदि किसी का कोई भी साथी इससे कम आयु में विवाह करता है, तो वह विवाह को अमान्य/ निरस्त घोषित करवा सकता/सकती है।

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