फिर खीच लिए है राम ने तरकश से तीर और चढ़ा ली है प्रत्यांचा, उत्साहित भीड़ , उत्तेजित लोग मार दो जला दो का हो रहा है शोर \\
हर बार एसा ही होता क्यूँ है? अकेला रावण ही मरता क्यूँ है?
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एक बार रावण फिर मरेगा, राम आज फिर तुम विजयी होगे. अंधकार का फिर विनाश होगा, धर्म का उत्थान फिर है सुनिश्चित.\\
पर….. अंधकार फिर से छाता क्यूँ है? अकेला रावण ही मरता क्यूँ है?
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मासूम लाशे , ये मरते बच्चे, सड्क पे रोती वो एक वेचारी, ये लूटती अस्मत, या फूटी किस्मत भूखे पेट कोई काटे रात सारी. \\
सभी को रावण पे रोष क्यूँ है? इन सब का रावण पे दोष क्यूँ है?
**************************** राम! तुमको पता तो होगा…. ये जो तुम्हारे पीछे खड़े है
रावण को मारने पे अडे है// इन्ही के भीतर का पाप ही ये मनुज के मन का संताप ही ये रावण के जीवन की संजीवनी है/*
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फिर केवल रावण दोषी बनता क्यूँ है ? तीर तुम्हारा उसपे ही तनता क्यूँ है ?
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तेज़ाब फेकता है कोई देखो किसी के माथे है भ्रूण हत्या किसी का हक कोई लूटता है कोई भी बाबा बना हुआ है// ये लोग, क्या रावण से भले है ?
तो एसा अक्सर ही होता क्यूँ है ? अकेला रावण ही मरता क्यूँ है ?
***************************************** हे मर्यादा पुरषोत्तम राम!………..
क्यूँ ना उठाते फिर तुम धनुष को ? विनाश इनका क्यूँ हो ना करते या फिर तुम्हारे साथ ये खड़े है, या इन रावणो से तुम हो डरते ?
इनके बध फिर देर क्यूँ है ? अकेले रावण से बैर क्यूँ है ? ****************************************
हे राम! निकालो तीर चढ़ा लो प्रत्यंचा ,
इस बार बदल दो अपना लक्ष्य कर दो संधान इन जीवित रावणो पे …
“पर तुम एसा नही करोगे… आज फिर रावण ही मरेगा, आज फिर लोग खुश होगे अगले ही पल वो फिर से जीवित हो उठेगा .. फिर से मरने के लिए ..” ******************************************************
ना जाने एसा होता क्यूँ है ? अकेला रावण ही मरता क्यूँ ?
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