Posted On: 23 Nov, 2013 Others में
पसीने से तरबतर
कड़ी धूप में तपकर
दो सूखी रोटी खातिर
अपने से कई गुना ज्यादा
बोझ ढ़ो रहे मजदूर
हमारे लिये बना रहे रास्ते
हमें न लगे रास्तों में ठोकरें इस वास्तेे
पर उनकी पूरी जिन्दगी
हैं उबड़-खाबड़ रास्तों से भरी
हर पग पर ठोकर है
हर पल संघर्ष है
हर दिन एक नई चुनौती
दो सूखी रोटी खातिर
जाड़ों की सर्दीली रातें
या गर्मी की जेठ दुपहरी
या हो मूसलाधार बारिशंे
सर पर बोझ, कदमों में लड़खड़ाहट
मन में दबी तमाम ख्वाहिशें
हर समय अनहोनी की आहट
बस दो सूखी रोटी खातिर।
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