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कहीं जायें तो जायें कैसे

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कहीं जायें तो जायें कैसे
भूसें की तरह ठूंसे हुये लोग, आधे-आधे इंच पर पैर टिकाये खड़े लोग,एक दूसरे को धक्का देते हुये लोग । यह कोर्इ मेले का दृश्य नहीं बलिक हमारे लखनउ शहर की बसों का हाल है।शहर के लाखों लोग रोज ऐसी भीड़ से बुरी तरह भरी हुयी बस में यात्रा करने को मजबूर है। सड़क के किनारे हजारों लोग वाहन के लिये दौड़ते भागते हैं और उनके इंतजार में घंटों खड़े रहते हैं।हर कोर्इ किसी न किसी काम से घर से तैयार होकर निकलते हैं। गंतव्य तक पहुंचते-पहुंचते इस्तरी किये कपड़ों की दुर्दशा बन जाती है।उससे अच्छे तो वे कपड़े बिना इस्तरी किये हुये अच्छे होते हैं और इस्तरी से बिजली भी बरबाद हुयी सो अलग। करीने से काढ़े हुये बाल तो चिडि़या का घोंसला बन जातें है।पसीने,गर्मी से सारा क्रीम पाउडर पुत जाता है। बढि़या सेंट लगा कर जो आते हैं, उनका गुलाब चमेली की खुशबू का सेंट न जाने कौन सी खुशबू में बदल जाता है। सुबह नहा -धोकर , फ्रेश होकर आदमी खुशी-खुशी होकर घर से बाहर जाने के लिये बस में बैठता है पर बस से उतरने के बाद वह ऐसा लगता है जैसे चार दिन से नहाया ही न हो और मूड का तो सत्यानाश ही हो जाता है।
एक बार किसी तरह बस में चढ़ जाओ तो सीट मिले तो ठीक नही ंतो लटके हुये, लक्ष्मण झूला झूलते हुये , गिरते-पड़ते अपने गंतव्य तक पहुंचो। बस से उतरना भी किसी जंग जीतने से कम नहीं है। जबरदस्त ठूंसे हुये लोगों की भीड़ को चीरते हुये किसी तरह बस के दरवाजे पर पहुंचना बहुत बड़ा काम होता है।जब हम इन परेशानियों़ से जूझते हुये, धक्के खाते हुये हम आफिस पहुंचते हैं तो उसका गुस्सा अपने जूनियर पर या चपरासी पर निकालते हैं और घर में अपने परिवार वालों पर।बसों की इसी भीड़ में महिलाओं के साथ बतमिजियां भी खूब होतीं है। बुजर्ुगों का भी हाल बुरा हो जाता हे।उन्हें बैठने की कोर्इ जगह भी नहीं देता। वे लड़खड़ाते रहते हैं।महिलायें छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लेकर खड़े होकर सफर करती हैं। एक ब्रेक या धक्का लगता है और उन्हें संभलने का मौका नहीं मिलता है। कर्इ महिलायें और उनके बच्चे चोट तक खा जाते है।बस में एक पर एक लोग गिरते -पड़ते रहते हैं। जरा सी असावधानी हुर्इ कि गये बस की फर्श पर या बस के नीचे।
लड़के तो बस के दरवाजे के एक अंगुली भर जगह पर इस तरह बैलेंस बना कर खड़े होते हैं कि सर्कस के लोग भी दांतो तले उंगली दबा लें। क्योंकि सर्कस वाले एक स्टेज पर वह भी पूरा प्रशिक्षण, सुरक्षा व सावधानी से करतब करते हैं। एक रिंग से दूसरे रिंग पर हवा में कलाबाजियां करते है।जबकि रोज सफर करने वाली जनता,जिसमें युवा ज्यादा होते हैं, तेज रफ्तार बस में इतनी भीड़ में वह भी बिना किसी सुरक्षा व सावधानी के देर तक वे बसों के दरवाजे पर लटके रहते हैं, वह भी निडरता से । तो भर्इ यह है न तारीफ की बात। 2 रुपये बचाने के चक्कर में वे राज ही मौत से आंखे चार करते हैं। जल्दी पहुंचने के चक्कर में यह भी ख्याल नहीं रहता कि यदि बस से गिर गये तो जो गंभीर चोंटें आयेंगी , उनमें लाखों रुपये खर्च हो जायेंगे और यदि हमारा ये अनमोल जीवन चला गया तो फिर कभी लौट कर नहीं आयेगा।
हमारे बस चलाने वालेे भइया लोगों को तो इतनी जल्दी होती है कि लोगों के बस से उतरने पर बस पूरी तरह से रोकते ही नहीं हां धीमे जरुर कर देते है। धीरे -धीरे बस चलती रहती ह,ै आप उतर जाओ।केार्इ महिला उतर रही हो तो रहम कर देते है, बस रोक कर पर कोर्इ पुरुष उतर रहा हो तो बस चलते-चलते ही उतरने को कहते हैं। बुजर्ुगोर्ं के लिये भी कोर्इ रियायत नहीं है। जबकि चलती बस में से किसी को भी उतारना नहीं चाहिये चाहे बस धीरे ही क्यों न हो । यह बहुत खतरनाक है। बस सड़क के बीच में ही रहती है और उस पर से इतनी व्यस्त सड़क । जरा सी भी असावधानी हुर्इ तो चलती बस से उतरता हुआ कोर्इ भी व्यकित पीछे से आती हुर्इ किसी गाड़ी का शिकार हो जायेगा।
यातायात वाहनों की इतनी अव्यवस्था है फिर भी प्रशासन चेत ही नहीं रहा है। वह तो मजे से आंखे मूंदकर सोया हुआ रहता है। उसे यातायात व्यवस्था की मारा मारी , जान पर खेलते हुये लोग , बसों की कमी कुछ भी दिखार्इ नहीं देता। वह तो बस आगामी चुनावों के मददेनजर ही अपनी रणनीति बनाने में व्यस्त है। उन्हें बस पीएम की कुर्सी ही नजर आ रही है, आम जनता का दुख दर्द नहीं । इसमें कोर्इ एक धर्म या जाति, समुदाय के व्यकित नहीं बलिक हर एक व्यकित तकलीफ सह रहा है, परेशान हो रहा है।प्रशासन जनता के लिये वाहनों की कोर्इ व्यवस्था नहीं कर रही है।कर्इ बसें खराब पड़ीं है, उनकी मरम्मत की कोर्इ व्यवस्था नहीं हो रही है न ही कोर्इ नयी बसें चलार्इ जा रही है।आटो रिक्शा वाले भी मनमाना किराया वसूलते है।तमाम आटो चलने के बावजूद भी वे सवारियों को बिठाने को तैयार नहीं होते हैं। वे जनता से पूरा आटो बुक कराने को कहते है या ज्यादा किराया लेते है।अगर कुछ बोलो तेा वे भला बुरा कहते है। आम जनता अपने स्कूल-कालेज या आफिस जल्दी जाने के चक्कर में बस में धक्के खाने को मजबूर है और ज्यादातर लोगों के मुंह से यही निकलता है कि जाये ंतो जायें कैसे कहीं न आटो है न बस।
प््राशासन को आटो चालको के मनमाने किराया वसूलने पर सख्ती से कार्यवाही करनी चाहिये और बसों की व्यवस्था भी दुरस्त करनी चाहिये। इसके साथ ही यदि स्कूलों-कालेजों व दफ्तरों मेें नीजि बसें चला देनी चाहिये।जिससे काफी हद तक आवागमन की दिक्कत हल हो जायेगी।किसी को भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा और सड़क पर वाहनों की अनावश्यक भीड़ भी नहीं होगी। लोग अपनी नीजि वाहनों जैसे कार, स्कूटर का प्रयोग कम करेंगें जिससे पेट्रोल की बचत तो होगी ही वायु प्रदूषण भी कम होगा।इसके साथ ही यातायात जाम की समस्या भी हल होगी।

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