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युवावस्था का जोश,
असीम उत्साह, नीर्भिकता, निडरता,
खो जाती है, सब,
जब आती है वृद्धावस्था,
साहस डर में बदल जाता है,
उत्साह लाचारी में ढ़ल जाता है,
जोश तो कहीं दूर चला जाता है,
आस बस एक ही रहती है,
हाथ कोई थामे,
दो मीठे बोल बोले,
जिन्दगी गुजर जाये अच्छी तरह,
हाथ कांपते हैं,पांव थरथराते हैं,
झुर्रियां लटक जाती हैं,
आवाज भी थर्राती है।
कितनी लाचारी होती है,
यह सोचकर,
कि जो कंधे उठाते थे बोझ इतना,
वे कंधे झुक गये,
हाथ पकड़कर सिखाया, जिसे चलना,
आज उसी के मोहताज बन गये।
जिस पांव पर बच्चों को झूला झुलाते थे,
वे पांव अब चलने से भी कतराते हैं,
उंगली पकड़कर कोई चलाये,
यही बाट जोहते रह जाते हैं।
आंखों की चमक भी फीकी पड़ जाती है,
शरीर की ताकत न जाने कहां खो जाती है।
ल्ेकिन उनकी जिन्दगी के अनुभव का हथियार,
बड़ी से बड़ी मुश्किलों को लगा देता है पार,
जो चखे उनके अमूल्य नसीहतों का जायका,
खुशनसीब , सफल इंसान हो इस धरा का।
वही कांपते हाथ जब रख दे किसी के सर पर,
सारी जिन्दगी उसकी जाती है फिर संवर।
पकड़ ले हम उंगली उनकी तो हर राह हो जाये आसान,
हमारा पूरी तरह हो जाये कल्याण।
उनकी थर्राती आवाज भरती है हममें आत्मविश्वास,
हमारी सलामती की दुआ करती है,उनकी हर सांस।
उन्हें चाहिये बस थोड़ा सा प्यार, ध्यान।
थोड़ा सा आदर, सत्कार और सम्मान।।
नूपुर श्रीवास्तव
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