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बेटी है तो हुई दुआ कबूल
बेटी है तो सारे गुनाह हुये दूर
आज की बेटी है बुढ़ापे का सहारा
बेटे से तो आज हर बाप है हारा
बेटे अपने एक मां बाप से कतराते हैं
पर बेटी के हाथ चार हाथ संभालते है।
सास ससुर की सेवा तो करती ह,ै
साथ ही अपने मां बाप का भी दुख समझती है।
बेटी है तो हर घर में है रौनक
त्योहारों के रंग में उससे ही है चमक
उसके बिना हर रंग है फीके
बेटी है तो ही है खुशियां इस जमीं पे
बेटी है मंदिर का शंख
उसे दो उड़ने का आजादी के पंख
डर नहीं उसमें भरिये साहस
शक्ति स्वरुपा है वो ये दिलाइये विश्वास
जिस दिन जागेगी वो कोई भी न करेगा
उससे ऐसे घिनौने दुस्साहस
जब तक उसने ओढी है शर्म की चुनरी
तब तक ही है उसकी चुप्पी
जिस दिन ये शर्म की चादर उठ जायेगी
नारी फिर अपने नये अवतार में आयेगी
रौंदेगी वह ऐसे दुराचारियों को
सपने में भी सोचेगा न पुरुष ऐसी गंदी कारगुजारियों को।
नूपुर श्रीवास्तव
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