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use of toilet

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आज चारों तरफ शौचालय प्रयोग करने के लिये जागरुकता कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, विज्ञापन फिल्में भी बन रही हैं, जिन्होंने शौचालय बनाने की अपने गांव व घर में पहल की उन्हें सम्मानित और पुरस्कृत भी किया जा रहा है।इन सबसे थोड़ी जागरुकता भी आई है। लेकिन जिस हिसाब से लोगेंा को शौचालय प्रयोग करने को जागरुक होना चाहिये, लोग नहीं हो रहे है।आज भी बहुत लेाग खुल में शौच जाने की मानसिकता छोड़ नहीं पा रहे हैं।कुछ छोडना चाह कर भी नहीं छोड़ पा रहे हैं।
सरकार ने सभी को शौचालय उपलब्ध कराने के लिये काफी प्रयास किये।सरकारी फाइलों, कागजों में आप देखेंगे तो आपको, हर घर में शौचालय का लक्ष्य पूरा मिलेगा।गांवों में जाकर देखेगें तो हर घर के आगे आपको शौचालय आपको देखेने को मिलेंगें ।लेकिन सुबह-सुबह गांवो में जाइये तो हर कोई लोटा लेकर खेतों की तरफ जाता हुआ मिल जायेगा।
एक नौकरी के दौरान जब गांवो में जाना हुआ तो मैंने जब यह देखा तो मुझे बहुत गुस्सा आया कि देखो शौचालय तो बने हुयें हैं,फिर भी क्यू ये लोग उनमें शौच नहीं जाते हैं।मैनें कुछ लोगों से कहा भी आप लोग इन शौचालयों में क्यों नहीं शौच जाते हो़? उन्होंने कहा कि कहां है शौचालय।मैंने कहा, अरे दिखता नहीं , ये क्या शौचालय बने हुये है।तुम लोंगों की आदत पड़ गई है, बाहर खुले में जाने के लिये इसलिये जाते हो।
मैं उन्हें नसीहत दी जा रही थी और वे चुपचाप सुन रहे थे फिर उनमें से एक ने बोला इधर आओ दीदी, शौचालय को खोल कर देखेंा तो आपको असलियत नजर आयेगी।मैंने कहा, अरे खोल कर क्या देखना टाॅयलेट को, दिख तो रहा है, अच्छा खासा टाॅयलेट। मैं जा रही हूं, तुम लोगों को तो सिर्फ बातें ही बनाना आता है।
फिर एक दिन मैं गांव में दुबारा आई और काफी देर तक रही, मुझे भी शौचालय जाने की जरुरत महसूस हुई तो मैंने एक महिला से इस बारे में पूछा तो उसने कहा, दीदी उधर घर के पीछे चली जाओ, मुझे थोड़ा गुस्सा आया कि अरे मैं बाहर नहीं जाउंगी, मैं तो शौचालय में जाउंगी। और मैं शौचालय देखने के लिये थोड़ा आगे आई, मुझे एक शौचालय दिखा, मैंने उसे खोला और हक्की बक्की रह गई, अंदर कंडे भरे हुये थे। मैं थोड़ा आगे बढ़ी दूसरे शौचालय में तो वहां बकरी बंधी देखी। मैं वहां पास खड़ी महिला से पूछा कि अरे! इन शौचालय में ये कंडे क्यों है, कहीं बकरी बंधी है। उस महिला ने कहा, दीदी यहां सब शौचालयन का येही हाल है। मैंनें कहा, अरे कंडा रखोगे इसमें तो शौच कहां जाओगे, ये कंडा रखने और बकरी बांधने के लिये नहीं होता है, इसका प्रयोग करो। मैं उसे ज्ञान दिये जा रही थी।उसने मुस्कराते हुये कहा, दीदी इधर आओ, तुम्हें दिखाइत हैं, उसने कंडा हटाया, बोली, दीदी शैाचालय के लिये तो सीट होत है न, इहां तो कौनो सीट नहीं है, तो काहे का शौचालय। ये शौचालय सिरफ ईंटन का ढांचा भर होत हैं। अधिकारी बाहर से शौचालयान की गिनती कर जात हैं बस और कागजों में लक्ष्य पूर्ति दिखा देत हैं। उसके बाद वहां उपस्थित सभी महिलायें और पुरुष भी अपनी – अपनी बात कहने लगे। एक ने कहा, अरे दीदी, इ बिना सीट का शौचालय भी एइसे नहीं मिलत है, इ खातिर भी साहबन के बहुत चक्कर लगाइके पड़त है, खर्चा, पानी दे के पड़त है, तब जाकर एक शौचालय मिलत है। वु भी सीट बिना ।कई-कई घरन में दु दु शौचालय मिलत है सीट सहित, लेकिन ओके लिये बड़ा पहुंच वाला, या पैसा वाला आदमी होये की जरुरत है।
वाकई गांवों के गरीब लोगों के लिये कई योजनायें आती हैं, कुछ ही फलीभूत हो पाती है।गरीबों को मिलने वाली सुविधाओं का लाभ बड़े लोग ही उठा पाते हैं,क्यूंकि सरकारी बाबुओं, अधिकारियों को खिलाने के लिये उनके पास ही पैसा होता है।गरीब तो पैसा दे नहीं सकता है।अपनी व्यथा सुनाने जाये भी तो किसके पास, नेताओं के पास, या अधिकारियों के पास , जो ही यह सब अन्याय करते है।
बाद में लोगों ने और बताया कि दीदी जिन बड़े लोगन के घर शौचालय बनवाये भी गये हैं, वु भी शौच जाते कहां हैं शौचालयन में । मैंने कहा, क्यों ऐसा क्यूं भई? तब पास खडी एक बुजुर्ग महिला ने कहा अरे पूछो इ बहुरिया से, इके घर वाला प्रधान के इहां काम करत है और इ बिटिया से पूछो, इके भइया बिलाक में काम करत हैं। मैंने पूछा, क्यूं भई तुम लोगों के घरों में शौचालये बने हुये हैं, फिर भी बाहर ही शौच क्यूं जाती हो? ये गरीब तो सब मजबूर हैं, तुम लोग तो नही ंतो उन्होंने कहा कि ये शौचालय तो अच्छे घरवालन की पहचान है, और आसानी से मिल गया तो बनवा लिये लेकिन आप तो जानती हो न दीदी गांवन में ज्यादातर महिलाओं को घर से बाहर जल्दी निकलने नहीं दिया जात है। गांवों की अधिकतर महिलायें अपने घर से बहुत ही जरुरत पड़ने पर, चार हाथ का घूंघट काढ़ कर ही निकल पात हैं।सिरफ शौच बाहर जाने के लिये ही उन्हें अनुमति होत है।इसलिये महिलायें घर से बाहर ही शौच जाना ज्यादा पसंद करत हैं।शौच जाने के समय ही वे थोड़ा बाहर निकल पात हैं, अपनी सहेलियों से हंस बोल लेत हैं, अपना सुख, दुख कह लेत हैं।’ मैंने कहा तो तुम्हारे घर के लेाग कुछ नहीं कहते कि अब घर में ही शौचालय है तो घर में ही जाओ, बाहर नहीं।’ तब उस महिला ने तपाक से बोला अरे दीदी, वु लोग खुद ही जात हैं, और दीदी घर में शौच होता भी नहीं, तो क्या करें।बाहर की आदत पड़ी हुई है, सबकी।
उन्हें मैनें समझाया जिनके पास एक शौचालय है वह दो- दो न बनवाकर दूसरे जरुरतमंद के यहां बनवा दो।’ इस पर बुर्जुग महिला ने कहा, अरे बिटिया का कहत हो, भला जियादा चीज मिले तो कोई छोड़त है, चाहे खाना हो या मिट्टी।भले ओकर कोनो फाइदा न होयं। मैनें उन्हें समझाया कि बाहर शौच जाने से शौच का उचित निस्तारण नहीं हो पाता है, गन्दगी बहुत फैलती है, जिसके कारण बीमारियां भी बहुत फैलती हैं। चारों तरफ बदबू आती है।इसके अलावा महिलाओं की सुरक्षा को भी बहुत खतरा रहता है।आप लोग और कुछ नही ंतो कम से कम अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये खुले में शौच न जाकर अपने घरों में बने शौचालय का प्रयोग करेा ।
गांवों के लोगों को ही क्या कहें कि जिनके पास शौचालय है वो भी अपने शौचालयों में न जाकर बाहर ही जाते है, शहरों का भी यही हाल है, मै जहां रहती हूं वहां बड़ा सा खुला मैदान और एक बड़ा सा गड़ढ़ा है। मैं जब सुबह उठकर उपर जाती हूं तेा कई लोगेां को पानी की बाॅटल लिये या लोटा लिये शौच के लिये जाते हुये देखती हूं। ये सभी लोगों के यहां अच्छे पक्के मकान उसमें एक शौचालय बना हुआ है, पानी की उचित व्यवस्था है पर ज्यादातर लोग बाहर शौच जाते हैं।ये सभी लोग पढ़े लिख्ेा लोग है। इन्हें सब प्रकार की जानकारी है लेकिन फिर भी मानते नहीं।
मेरे विचार से बाहर शौच जाना केवल मजबूरी ही नहीं है बल्कि एक मानसिकता है, आदत है।इसे आसानी से समाप्त नहंी किया जा सकता है। इसके लिये सघन अभियान की जरुरत है और बड़े पैमाने पर जागरुकता कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है। इसके अलावा यदि घर में शौचालय बनवा कर उसका उपयोग करने को अनिवार्य किया जाये व बाहर शौच लाने पर जुर्माना लगाया जायेगा तब जाकर शायद कुछ स्थिति सुधरे।

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