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बाल दिवस की सार्थकता

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बाल दिवस की सार्थकता
आज 14 नवम्बर, चाचा नेहरु का जन्म दिवस है, जिसे हम लोग बाल दिवस के रुप में मनाते हैं। इस दिन लगभग सभी स्कूलों में बच्चे बाल मेला लगाते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं, वे नाचते-गाते व खेलते – कूदते हैं पर वहीं सड़क पर गरीब बच्चे, जिन्हें दो जून का खाना भी नहीं नसीब होता है।न रहने को छत होती है न बिछाने को बिस्तर। नीला खुला आसमान ही उनकी छत और धूल भरी सड़क उनका बिस्तर होता है। हाथ में खिलौने की जगह औजार व कलम की जगह कुदाल या चाय की ट्रे।लोगों से भीख मांग कर अपना गुजर -बसर करने वाले ये बच्चे स्कूल जाने को तरस जाते हैं। ये बच्चे भीख मांगने को मजबूर हैं ।बाल मजदूरी प्रतिबंधित है, उसका खामियाजा भी यह बच्चे ही भुगतते हैं।सरकार यह तो देखती है कि बच्चे बाल मजदूरी कर रहें है लेकिन वे किस कारण से वह काम कर रहें हैं, इस पर ध्यान नहीं देती है।बच्चों से काम करवाना वाकई बहुत गलत है लेकिन यदि वे अनाथ हों, उनका कोई न हो या मां-बाप बीमार या अशक्त हों तो वे क्या करें ? बाल मजदूरी कराने वालों को सख्त सजा के चलते उन्हें कोई काम भी नहीं देता जिससे वे भीख मांगने को मजबूर हो जाते हैं।जो कि और भी गलत है। लेकिन अगर यह न करें तो वे भूखे मर जायेंगें। इसलिये सरकार को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिये । जो बच्चे बाल मजदूरी कर रहें है, उनकी जांच पड़ताल करानी चाहिये कि वह क्यों ऐसा कर रहें है। उनकी मां-बाप या अन्य जबरदस्ती उनसे काम करवा रहें है या उनका शोषण कर रहें है तब उनके खिलाफ सख्ती से कदम उठाना चाहिये और यदि वे अनाथ हैं या किसी बड़ी मजबूरी के कारण अपनी मर्जी से यह काम कर रहें हैं तब उनके लिये खाने-पीने, पढ़ने व रहने का इंतजाम करना चाहिये ताकि उनका बचपन बरबाद न हो और वे अच्छी तरह पढ़ – लिख कर अपना जीवन निर्वाह कर खुशहाल जीवन बसर कर सकें।
एक ओर जहां उनकी उम्र के दूसरे बच्चों को पढ़ने-लिखने, खेलने कूदने का पूरा अवसर मिलता है और वे अपने मां-बाप के सुरक्षित साये में रहते हैं। उनके मां-बाप उनकी सारी जरुरतें पूरी करते हैं वहीं गरीब व अनाथ बच्चे दूसरे के घरों में अपनी ही उम्र के बच्चों को संभालते हैं। उनके लिये खाना बनाते, खिलाते हैं, उनके खिलौने सजाते हैं। जरा सोचिये जब ये बच्चे अपनी उम्र के बच्चों को हंसते,खिलखिलाते, पढ़ते-लिखते हुये देखते होंगे तो उन पर क्या गुुजरती होगी? इसलिये हम जनता की भी ये जिम्मेदारी है कि हम इन बच्चों का दर्द समझें और इन्हें अपनायें व सहारा दें। जिनके बच्चें नहीं है वे लाखों रुपये आधुनिक तकनीक पर खर्च कर देते है और उनका स्वास्थ्य बरबाद होता है सो अलग। ऐसे लेाग अनाथ बच्चों को गोद लें जिससे उनकी गोद भरेगी और उनका आंगन तो खिलखिलायेगा ही एक जिन्दगी संवर जायेगी और उसकी दुवाओं से उनके जीवन में खुशियों के दीप जगमगायेंगें।बाल दिवस की सार्थकता तभी है जब सभी बच्चों को समान रुप से पढ़ने-लिखने, हंसने, खाने व खेलने को मिले।

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