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हाय ये मंहगार्इ!
मंहगार्इ डायन खाय जात है। वास्तव में मंहगार्इ ने एक भंयकर डायन का रुप अखितयार कर लिया है। दिन पर दिन यह और भी विकराल होती जा रही है। देश का हर एक व्यकित मंहगार्इ की जबरदस्त मार झेल रहा है। वे अपनी रोजमर्रा की जरुरतें जैसे भोजन, किराया, टैक्स, बच्चों की स्कूल की फीस आदि देने की उलझनों में ही उलझे रहते हैं। उनसे निकल कर बचत करना तो बहुत दूर की बात है। हमारे देश में प्रति व्यकित आय बहुत कम है।आज कल पढ़ार्इ लिखार्इ सब कुछ बहुत ही मंहगी हो गयी है।सबिजया ंतो लाकर में सहेज कर रखने वाली हो गर्इं है।आलू प्याज आजकल इतना मंहगा है तो हरी सबिजयां फल वगैरह का क्या कहें। उनके भाव तो आसमान ही छू रहें हैं। ऐसे में आम आदमी अपनी क्या सेहत बनायेगा।प्रार्इवेट डाक्टरों की फीस देने व दवाइया लेने में तो आम आदमी के महिने भर की तनख्वाह ही खर्च हेा जाती है। क्योंकि सरकारी अस्पतालेां का तो हाल किसी से छुपा नहंीं है।इसलिये मजबूरन आदमी केा प्राइवेट डाक्टरों के पास अपनी जेब खाली करने जाना ही जाना पड़ता है।
एक-एक व्यकित के विकास से ही देश का विकास होता है। कहते है कि भूखे पेट भगवान का भजन नहीं होता तो आदमी देश की तरक्की के बारे में क्या सोचेगा। अगर देश के लोंगों का पेट व जेब दोंनों ही खाली हेांगें तो व कुपोषण का शिकार होगा, दिमाग फ्रस्टेडड होगा और खाली पेट व उलझी जिन्दगी से परेशान व्यकित अपराध की ओर अपने कदम बढाकर देश की तरक्की को आगे बढ़ाने में नही,ं उसे पीछे धकेल कर उसके लिये बाधक सिद्व हो जायेगा।
सरकार मंहगार्इ तो बढ़ाती जा रही है पर लोगों की तनख्वाह में उस हिसाब से कोर्इ बढोत्तरी नहीं हो रही है। सरकार को आम आदमी की कमार्इ और मंहगार्इ में संतुलन तो बनाना ही होेगा या तो कोर्इ दूसरा तरीका निकालना होगा। नही ंतो आम आदमी के सब्र का बांध टूट जायेगा और देश की शांति भंग होगी। देश के नेताओं को तो मंहगार्इ का पता ही नहंी चलता है क्योंकि उनके पास इतना बेइन्तहा पैसा है कि कितना खर्च करें पर खर्च ही नहंी होता है, उनके लिये तो सब चीजें सस्ती हीें है।
मंहगार्इ बढने का सबसे बड़ा कारण तो हमारे देश में घोटालों की लम्बी लाइन लगना है। हमारे देश का बेशुमार खजाना इन नेताओं ने घोटाले कर करके लूट लिया है। घोटालों का यह अंतहीन सिलसिला तो जैसे रुकने का नाम ही नहंी ले रहा है। इन घोटालों की लड़ी को अब एक प्रभावी कानून बनाकर रोकना होगा और साथ ही इन घोटालों की पूरी की पूरी रकम इनसे वापस ली जानी चाहिये। हमारे देश को जितना विदेशियों ने लूटा है उससे कर्इ गुना ज्यादा अपने ही देश के लोगों ने लूटा है।
इन नेताओं की विधायक निधि भी कम होनी चाहिये या खत्म होनी चाहिये। इन्हें इतनी ज्यादा रकम विधायक निधि के रुप में विकास करने के लिये मिलती है । कुछ ही विधायक अपने क्षेत्र के विकास पर लगाते है। ज्यादातर विधायक सारा रुपया सिर्फ अपने विकास पर ही खर्च करते है। अगर इनका प्रयोग सही तरीके से देश व उसकी जनता के विकास पर खर्च होता तो हमारा देश भी विकासशील न होकर विकसित देशोंं में शामिल होता।
यदि सरकार इन घोटालो पर विराम लगाये, इनका पैसा वापस लाये और नेताओं की विधायक निधि को खत्म कर तो ही बहुत ज्यादा मंहगार्इ से राहत मिल जायेगी । न जाने कितने टैक्स आम नागरिकों पर लगे हुयें हैं वे भी कम होंगें। देश का खजाना हमारे लूटे हुये खजाने को भ्रष्ट नेताओं से वापस लाकर ही भर पायेगा और ये मंहगार्इ का दानव जो सरकार के द्वारा खड़ा किया गया है दुम दबा कर भाग जायेगा।
नूपुर श्रीवास्तव
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