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दोस्तों काफ़ी दिनों के बाद आज फिर अपने विचार आप लोगों से साझा करना चाहती हूं। यह विचार जीवन के परम सत्य “मृत्यु” से सम्बंधित है, जिससे कोई बच नहीं सकता। परन्तु यह विदाई कैसी हो, यह एक कविता के माध्यम से व्यक्त कर रही हूँ। आशा है आप सभी को यह पसंद आएगी।
ऐ ज़िन्दगी,
इतनी मेहरबानी करना,
जब अलविदा बोलूं तुम्हें,
(परिजन) अपने लोगों के होठों पर,
मुस्कान देखूं, सुकून देखूं।
आंसू भरे नेत्र तो हों,
पर ह्रदय में कोई कसक न हो।
अनगिनत इच्छाएं तो लगी रहती हैं,
पर कोई ऐसी अतृप्ति न हो,
जिसके बोझ से,
यह “विदाई” दुश्वार लगे।
शक्ति देना मुझे तुम इतनी,
कुछ ऐसा कर पाऊं,
विदाई की बेला में,
डूबते सूरज सी जाऊं,
जाने का ग़म तो हो,
मुझको भी और उनको भी,
पर सभी का जीवन सिन्दूरी कर पाऊं।
इतना अवसर अवश्य देना कि
उनका हाथ थाम, गिले शिकवे दूर कर पाऊं,
साथ बिताए प्यारे लम्हों को,
यादकर मुस्कुरा पाऊं,
जी भरकर देख लूं सभी को,
आखों में कैद कर लूं सभी के अंश को,
फिर तुम्हारे साथ उस अनन्त यात्रा
पर कदम बढ़ाऊँ।
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