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तेलंगाना-मैं धर्म के अनुसार जीता हूं या नहीं?

Negative Attitude
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तेलंगाना बिल पर कल यानि 18 फ़रबरी 2014 (तृतीया, फाल्गुन, कृष्ण पक्ष,२०७० विक्रम सम्वत) को लोकसभा कार्यवाही का सीधा प्रसारण कार्यवाही के बीच में थोड़ी देर के लिए रुक जाना एक निंदनीय घटना माना जाना चाहिए परन्तु इसके ठीक बाद संसद से बाहर आकर गणमान्य सांसदो द्वारा संसद के भीतर का आँखों देखा हाल वयां कर हाय तौबा मचा हमारे नेतागण क्या बताने कि कोशिश कर रहे है? क्या ये यह बताने की कोशिश कर रहे की इन्हे कार्यवाही के दौरान नजरबन्द कर दिया गया था या यह अल्पकालिक व्यवस्था इनकी दोमुखी चरित्र को ध्यान में रख कर बनाया गया था जिसमे लोकसभा कार्यवाही का सीधा प्रसारण रोकना,बिजली गुल होना एवं संसद के द्वार पर भारी मात्रा में मंत्रियो के लिए संतरियों को तैनात किया जाना आदि शामिल है. इस महंगाई प्रधान युग में जहाँ आम लोगो को रोजाना इस्तेमाल होने बाले मिर्च खरीदने से पहले महंगाई रूपी दर्द(उह-आह-आउच) को निष्प्रभावित करने के लिए मूव मरहम लगाना पड़ रहा है वहीँ जनता के नुमाइंदे ६०० रुपये प्रति किलोग्राम के मूल्य पर बिकने बाली इस महंगी पिप्पली कुल के वनस्पति काली मिर्च के चूर्ण एवं चाक़ू जैसे घातक औजार से देश के संसद पर हमला कर रहे है… [महंगाई के असर में भी कितनी विषमता है?] और साथ में यह भी कहते है कि हमारे लिए संतरी क्यों तैनात किया? जनाब जैसे आपकी विशिष्टता को ध्यान में रखते हुए आपकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार संतरी मुहैया कराती है तो आपको इन संतरियो पर कोई ऐतराज़ नहीं होता है लेकिन अब तो आपके इस कुकृत्य से संसद को खतरा है. आपने तो अब संसद को पंचायती अखाड़ा बना दिया है जहाँ संबिधान नहीं आपका आन बान शान और अभिमान का साम्राज्य चलता है ऐसे में आपसे सुरक्षित रहने के उपाय तो अपनाने ही होंगे और अगर आप इस उपाय(यानि लोकसभा कार्यवाही का सीधा प्रसारण रोकना,बिजली गुल होना एवं संसद के द्वार पर भारी मात्रा में संतरियों की तैनाती आदि) को आपातकाल जैसे शब्द के साथ मीडिया को अपना घड़ियाली आंशु दिखाते है तो ऐसे में हमें महाभारत का एक श्लोक याद आता है ‘अनीशेन हि राज्ञैषा पणे न्यस्ता’अर्थात् राजा युधिष्ठिर ने खुद को जुए में हारकर द्रौपदी को दांव पर लगाया.

किसे ज्ञात नहीं की द्रोपदी का चीर हरण पुरे राजसभा के समक्ष एवं प्रतिष्ठित कौरवो और पांडवो के समस्त परिवार के माजूदगी में हुआ था पर इसको रोकने के लिए किसी भी योद्धा की शक्ति आगे नहीं आयी.याद कीजिये महाभारत का वो अध्याय जब विदुर द्वारा द्रौपदी को राजसभा में लाने से साफ मना कर देने पर दुर्योधन ने अपने एक दूत प्रातिकामी को द्रौपदी को राजसभा में लाने का आदेश दिया था। प्रातिकामी तीन बार गया परन्तु द्रौपदी ने हर बार उसे एक-एक सवाल पूछकर वापस भेज दिया। पहली बार का सवाल था,‘जाकर उस जुआरी महाराज से पूछो कि वे पहले खुद हारे थे या पहले मुझे हारे थे? और युधिष्ठिर कोई उत्तर नहीं भिजवा पाए थे । दूसरी बार द्रौपदी का सवाल कुरुवंशियों से था, ‘कुरुवंशियों से जाकर पूछो कि मुझे क्या करना चाहिए? वे जैसा आदेश देंगे, मैं वैसा करूंगी। सवाल सीधा धृतराष्ट्र और भीष्म सरीखे कुरुवंशियों से था और आदेश भी उन्हीं से मांगा जा रहा था, पर वे सब सिर नीचा किए रहे और उनके मुंह सिले रहे। हर युग के इतिहासकारों की जमात ने द्रौपदी पर आरोप लगाया की वह पांच पुरुषों की पत्नी है और इसलिए दुश्चरित्र है। परन्तु पांच पतियों की अकेली पत्नी के रूप में द्रौपदी का आचरण् इतना आदर्श और अनुकरणीय माना गया की महाभारतकार ने उसके इस पत्नी रूप को दैवी गरिमा प्रदान कर दी और कई ऐसी कथाओं-उपकथाओं की सृष्टि अपने प्रबंधकाव्य में की जिससे द्रौपदी का जीवन दिव्य वरदानों का परिणाम नजर आए। जैसे कुन्ती के प्रणीत पुत्रों को देवताओं का आशीर्वाद बताकर गौरव से भर दिया गया, वैसे ही द्रौपदी के पांच पुरुषों (बेशक पांचों भाइयों) की पत्नी होने को भी तपस्या और वरदान का नतीजा बताकर उसे आभा से भर दिया गया। महाभारतकार और इतिहास का द्रौपदी के प्रति इससे बड़ा श्रध्दावदान और क्या हो सकता है?

आज संसद का हाल भी द्रौपदी के जैसा हो चला है,भारतीय लोकतंत्र में सत्ता रूपी जुए में पराजित या पराजित होने के भय से असुरक्षित प्रत्येक धर्मराज आज अपनी जरुरत के अनुसार संसद को दांव पर लगा अपनी राजनीति चमकाना चाहता है.अलग तेलंगाना राज्य की मंजूरी या यूँ कहे की सीमांध्र से तेलंगाना क़े तलाक पर लोकसभा कार्यवाही का सीधा प्रसारण पर अल्पकालिक रोक और बिजली गुल होना द्रौपदी के प्रश्न – मैं धर्म के अनुसार जीती गई हूं या नहीं? और इस पर भीष्म का जवाब जिसमें भीष्म बोले कि धर्म का स्वरूप अत्यन्त सूक्ष्म होने के कारण मैं कुछ बता नहीं सकता का याद दिलाता है.विपक्षी पार्टियां तेलंगाना मुद्दे पर संसद की कल की घटना पर सत्ताधारी दल की तीखी आलोचना भी कर रहे है तथा राजनीति धर्म का स्वरूप अत्यन्त सूक्ष्म होने के कारण संसद के अंदर तेलंगाना के इस प्रश्न मैं धर्म के अनुसार जीती गई हूं या नहीं? का कोई उत्तर देना नहीं चाहते !! लेकिन तेलंगाना पर धर्मराज युधिस्ठिर बन यही सन्देश देना चाहते है की अगर तुम रजस्वला और एकवस्त्र होने के बावजूद राजसभा में आओगी तो सभी सभासद मन ही मन दुर्योधन की निन्दा करेंगे। परन्तु चीरहरण तो अटल है,इसको कोई कैसे टाल या विरोध कर सकता है? क्यों नहीं समझते तेलंगाना के मुद्दे पर राजनीति का स्वरूप अत्यन्त सूक्ष्म है यहाँ!!

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