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हैप्पी साइनी डाई

Negative Attitude
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लोकतंत्र में सत्तासीन पार्टी के कुछ अच्छे कार्यो को विपक्षी पार्टी द्धारा संवैधानिक तौर पर स्वीकार नहीं  करने की परंपरा उनकी विवेकपूर्ण राजनैतिक दूरदर्शिता होती है ताकि अगर भविष्य में उनकी सरकार सत्तासीन होती है तो उनके लिए बना-बनाया कुछ कार्य हो जिसको तत्क्षण लागु कर उपलब्धियाँ अपने नाम किया जा सके. अब तक आप समझ गए होंगे की मैं किसकी बात कर रहा हुँ… जी हाँ मैं बात कर रहा हुँ अच्छे दिन के वादे के साथ सत्तासीन हुई नयी सरकार के दौर में बहुचर्चित GST bill (जीएसटी) गुड्‌स एंड सर्विसेज टैक्स बिल की. इस बिल को आजादी के बाद सबसे बड़ा टैक्स सुधार कदम कहा जा रहा है क्योकि जीएसटी बिल के जरिये कई प्रकार के टैक्स को सिर्फ जीएसटी के रूप में एकीकरण करना है। 2011 में UPA के कार्यकाल में भी यह बिल पेश किया गया था लेकिन इसे विपक्ष की संबैधानिक स्वीकार्यता नहीं मिली और यह बिल संसद के बिल में कैद हो गया था. आज जब बाहर निकला तो संसद के लोगजाम और इसके कारण सरकारी पैसे की बर्बादी पर विपक्षी पार्टियों को हाय हाय करने वाले देश के शुभचिंतको को क्या 2011 में संसद के लोगजाम में हुए सरकारी पैसे की बर्बादी का इल्म नहीं था? अगर 2011 का संसद लोगजाम से जनता के पैसे की बर्बादी नहीं हुई थी तो आज किस थ्योरी के अनुसार संसद लोगजाम से जनता के पैसे की बर्बादी हो रही है? हमारे देश में राजनैतिक अपव्यय के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है और अगर अपव्यय को लोग बोझ बोलने लगेंगे तो इतना सारे टैक्स है जिसमे मात्र कुछ प्रतिशत बढ़ा देने से संसदीय आकस्मिकता की भरपाई हो जायेगी.वैसे इस संसदीय आकस्मिकता को व्यवस्थित कर संसदीय कार्य आकस्मिकता फण्ड बना दिया जाना चाहिए और इसका मुखिया संसदीय कार्य मंत्रालय हो जिससे की जनता की बदहाली और बर्बादी पर जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी हावी न हो सके.नहीं तो इस बहस में दो मुद्दो में एक का असामयिक राजनैतिक क्रियाकर्म हो जाता है. लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष तानाशाही सोच को नियंत्रित करने की प्रणाली के तौर देखा जाता है लेकिन आज के दौर में यह महज अपने आप को ऐतिहासिक बनाकर महान बनने की प्रक्रिया बन चुकी है.जो बिल नाम रौशन करने वाला हो उसको सदन में पलटकर अपने लिए प्रतीक्षा सूचि में सुरक्षित रख लो और जो बिल विपणन के लायक नहीं है या जिसका ढिंढोरा नहीं पीटा जा सकता उसको हरी झंडी दे दो.दरअसल इन सारे कुरितियों के लिए सत्ता परिवर्तन के मूल मायने और लॉली पॉप जैसी क्वीक सर्विस वाली राजनैतिक घोषणा पत्र और राजनैतिक रैलियां जिम्मेदार है जिसके झांसे में हमारे देश की आधी आबादी जो गरीबी के आधार कार्ड और लगभग २५-३० % अशिक्षित सर्व शिक्षा अभियान के मोहताज जनता आ जाती है. सत्तासीन होने की यही आतुरता..यही खक्खन सत्ता पक्ष और विपक्ष की परिभाषा और जिम्मेदारी को अनुपयोगी,स्वार्थी एवं पक्षपातपूर्ण बनाती है.

हम जनता ही जिम्मेदार है जो द्धेष से भरे भावनात्मक जुमले और रातो रात जिंदगी बदलने वाली वादों को अपने मानस पटल पर किसी धर्मग्रन्थ से ज्यादा तबज्जो दे इनके झांसे में आ जाते है और फिर इन्ही झांसों की रीब्रांडिंग और रीपैकेजिंग करने की इनकी जद्दोजहद से संसदीय विकृतियां उत्पन्न हो जाती है और बाद में संसद कितना कार्यशील रहा और अगर नहीं रहा तो इससे पैसे की बर्बादी की एकाउंटिंग शुरू हो जाती है. वैसे हमारे देश में जनता के पैसे की बर्बादी को लेकर कोई सम्वेदनशीलता या कोई जवाबदेही तय करने की प्रणाली है क्या जिसके जरिये ये सुनिश्चित किया जाए की संसद चले और नहीं तो इसके लिए दोषी को दण्डित किया जा सके. हाँ चुकी ये लोकतंत्र है तो इसके बारे में हम तमाम लोग इसको देशहित से जुड़ा मुद्दा मानकर कई दिन तक वयानबाजी और टेलीविज़न डिबेट का गवाह जरूर बनते है और संसद स्थगित तो सारी राष्ट्र-भक्ति,सारे गीले शिकवे और मीडिया बहस भी स्थगित।

वैसे अगली बार अगर सत्ताधारी पार्टी के किसी मंत्री के ऊपर ललितशास्त्र जैसी कोई इमान्दारीयुक्त भ्रस्टाचार का आऱोप लगे तो इनके संसद में यही वयान होंगे की छुट्टी पर जाइये और एकांत में ब्रिटिश राज का इतिहास पढ़िए और उसके बाद अपने बुजुर्गो से पूछियेगा की अंग्रेज़ो को कोहिनूर क्यों चुराने दिए…उत्तर मिल जाए फिर हमें दोषी ठहराना…हमने नूर-ए-आईपीएल को मानवीय आधार पर चुराया है…नूर-ए-आईपीएल कोहिनूर से ज्यादा कीमती तो नहीं है न…!!!

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