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एक सिलवटों पड़ा कागज़ है और धुंधली सी स्याही है,
आज फिर एक बार इन आंखों नमी छाई है,
कुर्सी पर बैठा मैं सोच रहा हूं बहते आंसू पोंछ रहा हूं,
एक अरसा हुआ अपनों की खबर लिए,
बीत गई मुद्दत लफ़्ज़ों को महसूस किए।
कभी दूर बैठे एक खत में दुआओं की सौगात भेजा करते थे,
मोहब्बत की स्याही में भिगोकर कुछ अल्फाज़ लिखा करते थे,
जवाब में आने वाले खत को कई बार पढ़ा करते थे,
तेरी मौजूदगी का एहसास समझ सीने से लगाकर रखते थे।
कहीं किसी खत में तुमने स्याही कुछ फैली सी पाई होगी,
माफ करना मुझे खता मेरी नहीं, यह आंख फिर भर आई होगी।
नया दौर है, नई सोच है, आज ईमेल और वाट्स ऐप्प का ज़माना है,
जानता हूं मैं, कुछ पिछड़ा सा रह गया हूं,
बदलते वक्त की आंधी में सूखे तिनके सा रह गया हूं।
केवल यही इल्तजा है तुमसे,
जिंदगी की रफ़्तार से कुछ लम्हे चुरा लो तुम,
इस गुज़रे वक्त के साथ भी कुछ वक्त बिता लो तुम।
——
नेहा सिंघल
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