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भक्त ने जो हाथ बढाया, हाथों पर एक फल पाया-2!
दायें देखा कोई नहीं,
बायें देखा कोई नहीं।
बोला आज तो भगवान प्रसन्न हो गए, माँग ले आज जो माँगना हैं कल मौका मिले ना मिलें।
भक्त ने जो हाथ बढाया, हाथों पर एक फल पाया-2!
बोला प्रभु मुझे फल नहीं वर चाहिए।
(आवाज आई) हे मुर्ख! तुने तो मुझे ईश्वर समझ लिया,
मैं ईश्वर नही चमत्कारी हूं -2, तिरस्कार, घृणा का नहीं, मान का प्रार्थी हूँ।
देखा तो सामने एक साधू खडा हुआ है। भक्त की आखें क्रोध से लाल हो गयी और बोला:-
हे साधू तूने मुझे फल नहीं दिया
मेरे साथ छ्ल किया हे,
मेरी सच्ची साधना को भंग किया है।-2
“गुणवान व्यक्ति को कभी क्रोध नहीं आता।“ तो बाबा मुस्कराये और बोले:-
हे मुर्ख! मैंने तो तुझे ईश्वर का प्रसाद दिया है,
इस दुनिया को देख जहाँ लोग माँग कर भी भीख नहीं देते।
“ज्ञान अंधकार में दीपक की रोशनी के समान होता है।“ भक्त का क्रोध शांत हुआ, साधू के पैरों मे गिरकर बोला:-
बाबा मुझे माफ करना इन मुर्खो के साथ मैं भी मुर्ख बन गया,
फल को छ्ल और आपको कपटी समझ गया। – 2
बाबा ने भक्त के सर पर हाथ रखा और बोलें:-
मैं ईश्वर तो नहीं,
पर तेरी उत्कंठा जान सकता हूँ।
वर तो नहीं,
पर आशीर्वाद दे सकता हूँ।
जिस दिन थोडा पाकर संतुष्ट होना सीख जायेगा,
तो एक दिन वो भी पाएगा जिसकी तुने अभिलाषा की हैं।
ज्ञान देकर बाबा हो गए अंतर्ध्यान और कविता हो गयी समाप्त।
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