भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है किंतु धर्मनिरपेक्ष की परिभाषा को लेकर आज भी भारत के लोग असमंजस में दिखाई देते हैं. आए दिन हो रहे सांप्रदायिक दंगों ने इसकी परिभाषा को और ज्यादा जटिल बना दिया है. उत्तर पूर्व के अधिकतर राज्य उग्रवाद और सामुदायिक दंगों के लिए पूरे देश में जाने जाते हैं. आए दिन कोई न कोई घटना घट ही जाती है जिसकी वजह से ये राज्य खबरों के मामले में मुख्य धारा में शामिल हो जाते हैं.
असम के कोकराझाड़ और चिरांग जिलों में जारी सांप्रदायिक हिंसा आग की तरह फैलती जा रही है. बोडो व अल्पसंख्यक समुदाय की ताजा झड़पों में मरने वालों की संख्या बढ़कर अब 36 हो गई है. यह हिंसा राज्य के 11 जिलों के करीब 500 गांवों तक पहुंच गई है. स्थिति अभी भी तनावपूर्ण है. सूचना है कि प्रशासन ने हिंसाग्रस्त इलाकों के चार जिलों में सुरक्षा बलों के 13 हजार जवान तैनात कर दिए हैं. इस बीच, सेना के जवानों ने तनावग्रस्त क्षेत्रों में फ्लैग मार्च भी किया.
कैसे शुरू हुई हिंसा
गत गुरुवार को कोकराझार ज़िले में मुस्लिम समुदाय के दो छात्र नेताओं पर अज्ञात लोगों ने गोली चलाई. जवाबी हमले में बोडो लिबरेशन टाइगर्स संगठन के चार पूर्व सदस्य मारे गए जिससे पहले से ही सुलग रही हिंसा और ज्यादा बढ़ गई.
हिंसा से आम लोगों पर प्रभाव
असम में जारी हिंसा से कई घर आग के हवाले कर दिए गए हैं. हजारों लोग अपने घर को छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं और दूसरे राज्यों में शरण ले रहे है. हिंसा से प्रभावित जिलों के लोगों के लिए 65 शरणार्थी कैंप खोले गए हैं जिसमें करीब 60 हज़ार लोग रह रहे हैं. इन शरणार्थियों में बोडो और मुसलमान दोनों शामिल हैं. असम में होने वाले जातीय और सामुदायिक हिंसा का बुरा असर वहां की आम जनता पर देखने को मिलता है. इस तरह की हिंसा से रेल व्यवस्था बहुत ज्यादा प्रभावित होती है. सड़क यातायात पूरी तरह से ठप पड़ जाता है जिसकी वजह से आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगती हैं.
बोडो और गैर-बोडो के बीच तनाव पुराना
बोड़ो क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) का इलाका जिसे हम कोकराझार जिले के नाम से भी जानते हैं, में तनाव कोई नई बात नहीं है. बोड़ो और गैर-बोड़ो समुदायों के बीच यह तनाव पिछले कई महीनों से जारी है जो रुक-रुक कर उफान लेती है. इन दोनों समुदाय के बीच तनाव का मुख्य कारण है बीटीसी में रहने वाले गैर-बोड़ो समुदायों का खुलकर बोड़ो समुदाय द्वारा की जाने वाली अलग बोड़ोलैंड राज्य की मांग के विरोध में आ जाना. 1980 के दशक में पृथक ‘बोडोलैंड’ की मांग शुरू हुई. गैर-बोड़ो समुदायों के दो संगठन मुख्य रूप से बोड़ोलैंड की मांग के विरुद्ध सक्रिय हैं. इनमें से एक है गैर-बोडो सुरक्षा मंच और दूसरा है अखिल बोडोलैंड मुस्लिम छात्र संघ. अलग राज्य की मांग को लेकर बोडो समुदाय बार-बार केन्द्र सरकार के सामने अपनी बात रखते हैं लेकिन गैर-बोडो समुदायों के लोग इसका लगातार विरोध कर रहे हैं.
सरकार की राजनीति
बीडीएटी में बोड़ो लोग अपने प्रभाव वाले जिलों में मुसलमानों को बांग्लादेशी बताते हैं उधर गैर बोडो उनकी अलग राज्य की मांग का विरोध करते हैं. इन दोनों के बीच मतभेद को बढ़ाकर राजनीतिक पार्टियां और सरकार अपनी वोट की राजनीति लगातार खेलती आ रही हैं. वह नहीं चाहतीं कि इस तरह के पचडों में पड़ें और अपना वोट बैंक खराब करें.
Assam violence, communal violence assam, violence in assam, assam riots, hindu-muslim riots in assam, Riot-hit Assam,violence-hit Assam , assam blog in hindi, blog in hindi
Read Comments