लोकतंत्र की मजबूती तभी है जब देश की जनता ज्यादा से ज्यादा अपने राजनैतिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सके. भारत में 16वीं लोकसभा चुनाव के घमासान पर ब्रेक लग चुका है और अब सभी की नजरें आने वाली 16 मई पर टिकी हुई हैं जब हार-जीत का फैसला सबके सामने आ जाएगा. इस बार का चुनाव हर मायने में ऐतिहासिक रहा. एक तरफ जहां इस चुनाव में राजनीतिक दलों ने आचार संहिता की अनदेखी कर दिल खोलकर पैसा खर्च किया वहीं दूसरी तरफ जनता ने भी अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. आकंड़ो की मानें तो इस बार के लोकसभा चुनावों में 66.38 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग कर एक नया रिकॉर्ड कायम किया है. इससे पहले यह रिकॉर्ड साल 1984-85 में हुए लोकसभा चुनाव के नाम था, जब 64.01 प्रतिशत मतदान हुआ था.
वैसे यह चुनाव जनता की सक्रिय भागीदारी के लिए जितना याद किया जाएगा उतना ही राजनेताओं के भाषण, शाब्दिक युद्ध और व्यक्तिगत हमलों के लिए भी याद किया जाएगा. राजनीतिक दलों ने हर सीमा को लांघते हुए मुद्दों की राजनीति करने की बजाय जोड़-तोड़ की राजनीति की. क्या राष्ट्रीय पार्टी, क्या क्षेत्रीय, हर किसी ने चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन में कोई कसर नहीं छोड़ी.
बात अगर भाजपा की करें तो जीत की उम्मीद लगाए बैठी इस पार्टी ने जनता को लुभाने के लिए सभी तरह के हथकंडे अपनाए. इन्होंने न केवल चुनाव में विवादित नेताओं को टिकट दिया बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान भड़काऊ भाषण देने से भी कोई परहेज नहीं किया. शुरुआत भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के दाहिना हाथ माने जाने वाले अमित शाह से की जाए. बीजेपी के उत्तर प्रदेश प्रभारी अमित शाह ने इस चुनाव में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले कई बयान दिए. चुनाव प्रचार के दौरान अमित शाह ने कथित तौर पर कहा था कि “यह आम चुनाव पिछले साल मुजफ्फरनगर में हुए साम्प्रदायिक दंगों में हुई ‘बेइज्जती’ का बदला लेने का मौका है”. इस बयान के बाद चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश में अमित शाह की रैलियों पर रोक लगा दी थी. अमित शाह यही नहीं रुके, कुछ दिनों बाद जब उन पर से प्रतिबंध हटाया गया तब उन्होंने एक और विवादित बयान दिया. उन्होंने कहा था कि “आजमगढ़ आतंकवादियों का अड्डा हैं”.
चुनाव के दौरान विवादित बयान देने में भाजपा के एक और नेता गिरिराज सिंह तो अमित शाह से भी दो कदम आगे निकल गए. उन्होंने एक बयान में कहा था कि “सभी मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेज दिया जाएगा”. अपने इस बयान के चलते गिरिराज आज तक कानूनी पचड़े फंसे हुए हैं. इसके बावजूद भी उन्होंने हाल फिलहाल एक और विवादित बयान दिया है. “गिरिराज ने कहा कि कुछ लोग, जिनका ‘राजनीतिक मक्का-मदीना’ पाकिस्तान में है, वे नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं”. वैसे चुनावी आचार संहिता को ताक पर रखने के मामले में स्वयं नरेंद्र मोदी भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने कई मौकों पर चुनावी लाभ लेने के लिए नियमों का उल्लंघन किया. अब वह चाहे “नीच जाति” पर दिए गए बयान का मुद्दा हो या फिर गांधीनगर में मतदान के समय चुनाव चिह्न कमल दिखाने का.
भाजपा के अलावा जिन अन्य पार्टियों ने चुनाव में सभी नियमों को ताक पर रखा उसमें देश की सबसे बड़ी पार्टी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी प्रमुख रहीं. कांग्रेस के नेताओं ने इस चुनाव में कई विवादित बयान दिए. मस्कानवा शहर में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा जो व्यक्ति हिंदू और मुसलमानों के बीच फर्क करता हो और दोनों समुदायों के बीच नफरत फैलाता हो, वह इंसान नहीं, बल्कि एक राक्षस है. इससे पहले बेनी प्रसाद ने गोंडा में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि नरेंद्र मोदी एक जानवर हैं और उन्हें सबक सिखाने की आवश्यकता है. उन्होंने यह भी कहा कि `जानवर खुद नहीं चलते हैं बल्कि उन्हें नकेल के साथ चलाया जाता है. जानवरों के साथ सलूक करना मुझे बखूबी आता है’. याद हो इसी चुनाव में नरेंद्र मोदी को गुंडा कहे जाने पर बेनी प्रसाद वर्मा को चुनाव आयोग ने नोटिस जारी किया था.
बेनी के अलावा पार्टी के बड़े नेता राहुल गांधी ने भी चुनाव प्रचार करते समय आचार संहिता का ख्याल नहीं रखा. उन्होंने अमेठी में मदतान के समय मतदान केंद्र में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के बाड़े में जाकर मतदान की गोपनीयता का उल्लंघन किया. इससे पहले उन्होंने छत्तीसगढ़ के बालोद में रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा, ‘मोदी पीएम बनना चाहते हैं और उसके लिए वो कुछ भी कर देंगे. वो देश के टुकड़े-टुकड़े कर देंगे, वो एक को दूसरे से लड़ा देंगे’. उधर राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी भी अपने भाई के नक्शे कदम पर चलते हुए नरेंद्र मोदी पर नीच राजनीति करने का आरोप लगाया. उनका यह बयान इतना बड़ा था कि बिहार में उनके खिलाफ केस दर्ज कराया गया.
प्रधानमंत्री बनने के सपने पाले बैठे समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह कई बार ऐसे बेतुके बयान देते हैं जिससे हर कोई हक्का बक्का रह जाता है. पिछले दिनों उन्होंने यह कहकर बवाल खड़ा कर दिया था कि रेप के सभी मामलों में फांसी देना गलत है. उनके इस बयान की सभी राजनीतिक पार्टियों ने कड़ी निंदा की थी. इसी चुनाव में समाजवादी पार्टी के एक और बड़े नेता आजम खान ने भी चुनावी लाभ लेने के लिए कई ऐसे विवादित बयान दिए जिसका धार्मिक समुदाय पर बुरा असर हो सकता था. आजम खान ने कहा था कि भारत अगर करगिल की लड़ाई जीता तो उसके पीछे मुसलमान थे. करगिल में जीत मुसलमान सैनिकों ने दिलाई थी. उनके इस बयान के बाद चुनाव आयोग ने उनके चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया था.
इस चुनाव में अन्य व्यक्तियों के विवादित बयान:
मोदी के समर्थक बाबा रामदेव ने कहा था कि राहुल गांधी दलितों के घर हनीमून या पिकनिक के लिए जाते हैं. यदि उन्होंने किसी दलित लड़की से शादी की होती तो उनकी किस्मत चमक सकती थी और वह प्रधानमंत्री बन जाते.
चुनाव प्रचार के दौरान कभी एनडीए के साथी रहे आरएलडी अध्यक्ष अजित सिंह ने नरेंद्र मोदी पर अमर्यादित बयान दिया था. हाथरस लोकसभा प्रत्याशी निरंजन सिंह के लिए सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘मोदी से सावधान रहना. ये बीजेपी सरकार नहीं, मोदी सरकार बनाने की बात करता है. मैं मैं मैं करता है. लगता है कोई बकरा आ गया. इसके अलावा कोई शब्द उसको पसंद नहीं है.
वोट पाने के लालच में आम आदमी पार्टी की नेता शाजिया इल्मी ने भी एक बयान में कहा था कि मुस्लिम वोट बंट जाते हैं क्योंकि वे ज्यादा ही धर्मनिरपेक्ष (सेक्यूलर) हैं और उन्हें कुछ सांप्रदायिक (कम्यूनल) हो जाना चाहिए.
अगर देखा जाए तो 16वीं लोकसभा का चुनाव प्रचार शुरू तो हुआ था विकास और सुशासन के नाम पर, लेकिन इसका अंत हमेशा की तरह जातीय और धार्मिक आधार पर हुआ. सवाल यहां यह उठता है कि जिस तरह से पार्टियां जनहित संबंधित मुद्दों से परे हटकर सनसनीखेज तरीके से एक-दूसरे के खिलाफ शाब्दिक युद्ध का खेल खेल रही हैं, उससे जनता में राजनीतिक पार्टियों के प्रति मोह बढ़ने के बजाय और ज्यादा घटेगा, जनता राजनीति से और ज्यादा दूर भागेगी?
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