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इन 5 जजों के खिलाफ भी लाया गया महाभियोग, कुछ को छोड़ना पड़ा पद

विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी की है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस, राकांपा और वामदल के कुछ नेताओं ने महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। खबरों की मानें, तो राकांपा के सांसद माजिद मेमन ने इसकी पुष्टि की है। मंगलवार देर रात तक जरूरी 50 सांसदों के हस्ताक्षर लेकर एक-दो दिनों में ही राज्यसभा में इस संबंध में नोटिस दिया जा सकता है। यह पहला मामला नहीं है, जब किसी न्‍यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्‍ताव लाया जा रहा है। इससे पहले भी पांच जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्‍ताव लाया गया है। आइये आपको उन मामलों की जानकारी देते हैं।

 

 

जस्टिस रामास्वामी

 

 

1993 में जस्टिस रामास्वामी के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन कांग्रेस के बहिष्कार के कारण यह प्रस्ताव गिर गया। सदन में यह प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत जुटाने में विफल रहा। रामास्वामी पर आरोप था कि 1990 में पंजाब और हरियाणा के चीफ जस्टिस रहने के दौरान उन्होंने अपने आधिकारिक निवास पर काफी फालतू खर्च किया था। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी इनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पास किया था।

 

नागार्जुन रेड्डी

 

 

साल 2016 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति नागार्जुन रेड्डी पर एक दलित न्यायाधीश को प्रताड़ित करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगा था। इसे लेकर राज्यसभा के 61 सदस्यों ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए एक याचिका दी थी। बाद में इनमें से 9 सदस्‍यों ने अपना हस्ताक्षर वापस ले लिया।

 

पीडी दिनाकरण

 

 

सिक्किम हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीडी दिनाकरण के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए राज्यसभा के अध्यक्ष ने एक पैनल गठित किया था। महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही जुलाई 2011 में इन्होंने इस्तीफा दे दिया। इनके खिलाफ भ्रष्टाचार, जमीन हड़पने, न्यायिक अधिकारों का गलत इस्तेमाल करने आदि के आरोप लगे थे।

 

जेबी पर्दीवाला

 

 

2015 में राज्यसभा के 58 सांसदों ने गुजरात हाईकोर्ट के जज जेबी पर्दीवाला के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया था। उन पर आरक्षण के मामले में आपत्तिजनक बयान देने का आरोप था। महाभियोग का नोटिस राज्यसभा सभापति हामिद अंसारी को भेजने के कुछ ही घंटों बाद न्यायाधीश ने फैसले से अपनी टिप्पणी वापस ले ली थी।

 

सौमित्र सेन

 

 

साल 2011 में राज्यसभा ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन को एक न्यायाधीश के तौर पर वित्तीय गड़बड़ी करने और तथ्यों की गलतबयानी करने का दोषी पाया था। इसके बाद उच्च सदन ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के पक्ष में मतदान किया था। हालांकि, लोकसभा में महाभियोग की कार्यवाही शुरू किए जाने से पहले ही न्यायमूर्ति सेन ने पद से इस्तीफा दे दिया था…Next

 

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