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क्या किए संसद ने इन 60 सालों में

indian parliamentजब मैं अपने बारे में सोचती हूं कि मेरा भूतकाल कैसा था, किन-किन परेशानियों ने मुझे घेर रखा था, मेरी शरण में आकर कौन-कौन लोग हुए जो मेरे नाम का फायदा उठाते थे तो मेरे सामने कुछ अच्छे व कुछ बेहद बुरे चित्र उपस्थित होते हैं. जब मुझे अपने आप को जनता के सामने सिद्ध करने का मौका मिलता था तो मुझे या तो रद्द कर दिया जाता था या फिर हो-हल्ला और शोरगुल से मेरी आवाज को दबा दिया जाता था. आजादी के बाद के इन साठ सालों में जितना मैंने सहा उसका कुछ हिस्सा मैंने अच्छे कामों के लिए भी दिया जिसके लिए जनता मुझे आज जानती है. मेरा नाम है संसद.


भारतीय संसद अपने 60 वर्ष पूरे कर चुकी है. आज ही के दिन 13 मई, 1952 को संसद का पहला सत्र हुआ था. मणिपुर से चुनाव जीतकर 1952 में पहली बार लोकसभा के सदस्य बने रिशांग कीशिंग वर्तमान में राज्यसभा के सदस्य हैं. 1920 में जन्मे कीशिंग मौजूदा संसद के इकलौते सदस्य हैं जो पहली संसद के भी सदस्य रह चुके हैं. इन 60 सालों में संसद के दोनों सदनों लोक सभा और राज्यसभा में कई बैठकें हुईं.


संसद से हर साल कई अहम बिल पारित होते हैं जो देश की दिशा और दशा तय करते हैं. अगर तथ्यों पर नजर डालें तो संसद के पहले सत्र में (1952) 82 बिल पारित हुए थे जबकि पिछले साल 2011 में 36 बिल पास हुए. आंकड़े यह कहते हैं कि संसद में अब तक सबसे ज्यादा बिल 1976 में पास हुए जब देश में आपातकाल लागू था. ये संख्या 118 थी. वहीं इसके विपरीत 2004 में संसद में सबसे कम बिल पारित हुए और इनकी संख्या 18 थी. 1952 के सत्र में लोक सभा की कुल 103 बैठकें आयोजित हुई थीं. 1956 में लोकसभा में सबसे ज्यादा 151 बैठकें हुई थीं जबकि 2008 में सबसे कम 46 बैठकें हुईं.


कुछ महत्पूर्ण घटनाक्रम

  • 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हमला हुआ. इस दिन कुछ हथियारबंद लोगों ने भारत के लोकतंत्र के मंदिर पर हमला किया. इस हमले में 14 लोग मारे गए थे.
  • 22 जुलाई, 2008 को संसद के इतिहास में काला दिन माना जाता है. जहां पूरी दुनिया ने देखा कि सांसदों का कैसे खरीद-फरोख्त किया जाता है.
  • 27 दिसंबर, 2011 को लोकपाल विधेयक लोकसभा में पास हुआ. लेकिन अभी भी राज्यसभा में यह विधेयक अधर में पड़ा हुआ है.


अगर संसद में सांसदों के आचरण की बात करें तो इसकी सूची लंबी है. सांसदों और जनता के बीच दूरी लगातार बढ़ती जा रही है. सांसद अपने पैसे और रुतबे का प्रदर्शन करते हैं और आम आदमी से कट गए हैं. अपनी गाडि़यों पर लाल बत्ती लगाने के लिए तथा अपने वेतन में बढ़ोत्तरी के लिए कुछ ही मिनटों में बिल को पास कर देते हैं.


प्रत्येक सत्र इनके बुरे आचरण और उपद्रव की वजह से बलि चढ़ जाता है. अपने विशेषाधिकारों का दुरुपयोग करने के लिए यह सांसद कभी नहीं हिचकते इसके अलावा संसदीय दायित्वों का निर्वहन नहीं करते, संसदीय कार्यवाही और संसदीय समितियों की बैठक से अधिकांश सदस्य नदारद रहते हैं. इनके दुर्व्यहारों की सूची इतनी लंबी है कि उस पर एक किताब लिखी जा सकती है. इनके हो-हल्ले की वजह से आज संदद का प्रश्नकाल अपनी महता खो चुका है. इनके सवालों में सरकार की आलोचना ज्यादा जनहित से संबंधित प्रश्न कम होते हैं. संसद की समितियों को इन्होंने बहुत ही ज्यादा जटिल बना दिया है जो आम जनता की समझ से बाहर हो चुका है.


इसके अलावा संसद के कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं. संसद के दोनों सदनों की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि ये भारत के विभिन्न वर्गो, समुदायों, जातियों, पेशों, पंथों का पहले से कहीं अधिक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. पहली लोकसभा में जहां 112 सदस्य दसवीं पास नहीं थे वहीं 14वीं लोकसभा में यह संख्या घटकर 19 रह गई है. इसी प्रकार पहली लोकसभा में 277 स्नातक, स्नातकोत्तर थे. 14वीं लोकसभा में यह आंकड़ा 428 सदस्यों तक पहुंच गया.


आज संसद अपने सम्मान की लड़ाई लड़ रहा है. जिस काम के लिए इसका गठन किया गया था उससे यह कोसों दूर भागता जा रहा है. अगर लोकतंत्र के इस मंदिर को बचाना है तो सांसदों को अपनी इच्छाशक्ति दिखानी होगी. जनहित विधेयक पास करके संसद के प्रति घटते हुए जनता के विश्वास को बढ़ाना होगा.


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