कुछ ऐसी संभावनाएं बन रही हैं कि वर्ष 2005 में कारोबारी कलह की वजह से अलग हुए अंबानी बंधु दुबारा से एक हो रहे हैं. खबर है कि बड़े भाई मुकेश अंबानी और छोटे भाई अनिल अंबानी की कंपनियों के बीच मंगलवार को 1200 करोड़ रुपये का एक समझौता हुआ है. यह समझौता अनिल अंबानी की रिलायंस टेलीकॉम और मुकेश अंबानी की रिलायंस जिओ इंफोकॉम के बीच हुआ है. समझौते के मुताबिक अनिल की कंपनी के नेटवर्क पर मुकेश की कंपनी दूरसंचार सेवा की शुरुआत करेगी.
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ऐसा माना जाता है कि राजनीति और कारोबार में कोई किसी का दुश्मन या दोस्त नहीं होता. इनका तो एक ही मकसद होता है कि कैसे मतदाताओं और उपभोक्ताओं को अपने पाले में करके लाभ कमाया जाए. लेकिन यहां तो सवाल ऐसे दो भाइयों का है जिन्होंने पिता धीरूभाई अंबानी के साम्राज्य को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. वहां पर जब छोटे भाई की कंपनी कर्ज के बोझ तले दब रही हो तो ऐसे में बड़ा भाई कैसे मुंह फेर सकता है.
रिलायंस इंडस्ट्रीज ने कई क्षेत्रों में कारोबारी सफलता के कई नए कीर्तिमान स्थापित करने के बाद वर्ष 2002 में दूरसंचार के क्षेत्र में कदम रखा. इसके लिए रिलायंस ने एक नई कंपनी रिलायंस इन्फोकॉम का गठन किया. इस कंपनी को 31 जुलाई, 2002 को रजिस्टर्ड कराया गया. लेकिन बाद में जब अंबानी परिवार में दोनों भाइयों मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच 2005 में विवाद पैदा हुआ तो बंटवारे के बाद रिलायंस इन्फोकॉम का स्वामित्व छोटे भाई यानी अनिल अंबानी के पास आ गया.
कहा जा रहा है कि इस समझौते से बड़े भाई वित्तीय परेशानियों से जूझ रही अनिल की कंपनी को सहायता देंगे जो इस समय 37 हजार करोड़ के कर्ज के बोझ में डूबी हुई है. फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि केवल छोटे भाई की वित्तीय परेशानियों को देखकर बड़े भाई का दिल पिघला. इसके पीछे और भी कई वजह हैं.
इस समझौते के जरिए मुकेश अंबानी अपनी दूरसंचार कंपनी की तरफ से 4जी की सेवाएं लॉन्च करने के लिए छोटे भाई की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन के देश भर में फैले फाइबर ऑप्टिक के जाल का इस्तेमाल करेंगे. इस तरह से वह अपनी कंपनी के साथ-साथ अनिल की कंपनी को भी फायदा पहुंचाएंगे.
एक वजह यह भी है कि विश्वभर में लगातार बढ़ रही आर्थिक मंदी ने हर किसी की चिंता बढ़ा दी है. भारत भी मंदी की इस मार से बच नहीं पाया है. यहां कई कंपनियां घाटे में चल रही हैं या फिर बंदी के कगार पर खड़ी हैं. मशहूर उद्योगपति और शराब कारोबारी विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस को ही ले लीजिए. भारी कर्ज के बोझ तले यह कंपनी अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही है.
ऐसे में मंदी के इस दौर में दोनों भाई विश्व के आर्थिक माहौल को देखते हुए इस बात को मानते हैं कि एकजुट होकर काम करना उनकी कंपनियों के लिए अधिक फायदा पहुंचाने वाला सिद्ध होगा. अभी यह बात केवल दूरसंचार कंपनी से संबंधित है किंतु शायद आगे हम यह भी देखें कि दोनों भाई पुराने गिले शिकवे भूलकर अपनी कंपनियों का एक दूसरे में विलय कर आर्थिक साम्राज्यवाद की ओर कदम बढ़ाएं.
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