46 साल के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अपने दल बल के साथ भारत यात्रा पर हैं. अपने इस हाई प्रोफाइल यात्रा में इस बार कैमरन का अंदाज कुछ बदला-बदला सा दिख रहा रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे वह भारतीयों का दिल जीतने के लिए वह सब कुछ करना चाह रहे हैं जो उनके पूर्ववर्ती नेताओं ने नहीं किया.
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वैसे प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने अपनी इस यात्रा के लिए बहुत पहले ही जमीन तैयार कर ली थी. यह यात्रा उनके और उनके देश के लिए सकारात्मक हो इसलिए वह चुनिंदा एशियाई टेलीविजन चैनलों और दूसरे माध्यमों के जरिए भारत और उससे जुड़ी अर्थव्यवस्था का बखान करने लगे. उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर की कि वह सचिन तेंदुलकर के प्रशंसक हैं और उन्हें भारत की मसालेदार करी काफी पसंद है.
तीन दिन की भारत यात्रा पर सोमवार को पहुंचे कैमरन ने भारत को सदी की महान ताकत बताते हुए कहा कि इस देश की जबरदस्त आर्थिक वृद्धि के बल पर यह 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है. भारत का बखान करते हुए कंजर्वेटिव पार्टी के इस नेता ने अपनी पार्टी की आप्रवासन विरोधी अभियान को भी उलट दिया. उन्होंने ब्रिटेन में अध्ययन करने वाले भारतीय छात्रों की संख्या और उसके बाद काम ढूंढ़ने के लिए ठहरने पर निर्धारित सीमा को हटाने की भी बात कही.
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यही नहीं 1919 में जिस ब्रितानी जनरल डायर के निर्देशों पर हुए जलियांवाला गोलीकांड में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी, प्रधानमंत्री के तौर पर कैमरन की दूसरी भारत यात्रा की शुरुआत से ही इस तरह के कयास लगाए जा रहे हैं कि वह शायद इस मसले पर माफी मांग लेंगे. हालांकि इस मुद्दे पर उन्होंने मांफी नहीं मांगी.
अब सवाल यह उठता है कि आखिर ब्रिटिश प्रशासन की तरफ से इस तरह का नरम रवैया क्यों अपनाया जा रहा है? जानकार मानते हैं ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पिछले कई महीनों से मंदी के दौर से गुजर रही है. यह देश वर्ष 2008 के आर्थिक संकट से अब तक उबर नहीं पाया है. जिस अर्थव्यवस्था की वजह से ब्रिटेन ने दुनिया के कोने-कोने में अपना व्यापार फैलाया था वहीं अर्थव्यवस्था आज संकुचित होती जा रही है. ब्रिटेन की जीडीपी लगातार घट रही है और देश में रोजगार की संख्या में भी कमी आई है.
देश का प्रधानमंत्री होने के नाते कैमरन यह भलीभांति समझते हैं कि अगर अपनी अर्थवयस्था को पटरी पर लाना है तो सबसे पहले ब्रिटिश कंपनियों का बड़ा बाजार तैयार किया जाए. इसलिए उन्होंने भारत की ओर रुख किया. कैमरन स्वयं मानते हैं कि भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार अभी भी जर्मनी और बेल्जियम की तुलना में कम है. इसमें कोई शक नहीं है कि ब्रिटेन अपनी पुरानी शक्ति अर्जित करने में लगा हुआ है.
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