भारत में अगर आप अपनी बात सरकार से मनवाना चाहते हैं तो क्या-क्या करना जरूरी है यह पिछले तीन दिनों में साफ हो गया. अनशन, जन-समर्थन और मजबूत इरादों से आप भारत तो क्या किसी भी देश की सरकार को हिला कर रख सकते हैं. भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चला रहे हजारे पक्ष और दिल्ली पुलिस के बीच अनशन स्थल और अवधि को लेकर गतिरोध दो दिन के हाई वोल्टेज ड्रामा के बाद खत्म हो गया. गांधीवादी अन्ना हजारे ने 14 दिनों तक रामलीला मैदान में अनशन करने की पेशकश को स्वीकार कर लिया.
कल तक जो सरकार अन्ना हजारे को जेपी पार्क में तीन दिन बैठने की ही अनुमति दे रही थी और उस पर भी उसे इतनी आपत्ति हुई कि अन्ना को घर से ही गिरफ्तार कर लिया उसने अब अन्ना हजारे को कहीं भी अनशन करने की छूट दे दी है. दिल्ली पुलिस ने अन्ना हजारे को 15 दिन की इजाजत दे दी है. साथ ही टीम अन्ना को जिन 5 दूसरी शर्तों पर आपत्ति थी, दिल्ली पुलिस ने उन्हें भी हटा लिया है. अन्ना को 2 सितंबर तक रामलीला मैदान में अनशन करने की इजाजत है.
इस बात को अन्ना की टीम एक जीत मान रही है. अन्ना के असर का आकलन करने में हुई चूक का खामियाजा भुगत रही सरकार अब महाराष्ट्र के अपने नेताओं के भी परोक्ष निशाने पर आ गई है. सरकार की बेचैनी अब किसी से नहीं छिपी है. सत्तापक्ष यूं तो चुप्पी साधे है, लेकिन अंदर ही अंदर सरकार की रणनीति पर सवाल उठने लगे हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे भले ही महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण नहीं हो सकते लेकिन उन्होंने सरकार को यह जरूर एहसास करा दिया होगा कि वह आखिरकार किस माटी के बने हैं. देश के अन्य हिस्सों को तो छोड़िए उनके समर्थन में एक तरफ सिर्फ इंडिया गेट पर लाखों की संख्या में जन सैलाब उमड़ पड़ा वहीं दूसरी तरफ उन्हें मनाने की कोशिशों में जुटी दिल्ली पुलिस व सरकार को सूझ नहीं रहा था कि वह आखिर करे तो क्या करें और आनन-फानन में जैसा अन्ना चाहते थे उन्हें वैसा ही करने दिया.
इंडिया गेट जैसा ही हाल मॉडल टाउन स्थित छत्रसाल स्टेडियम का भी था जहां उपस्थित भारी भीड़ को देखकर यह साफ लगता था कि आखिर भारत इतना जागरुक है कैसे? और नजारा तब और देखने लायक था जब वहां बाबा रामदेव पहुंचे. और अगर बात देश के सबसे बड़े जेलों में से एक तिहाड़ की करें तो वहां भी नजारा एक समान था. आम जनता के हक के लिए लड़ने वाले के समर्थन में वह मुजरिम भी खड़े हो गए जिन्हें सजा के रूप में जेल मिली थी. नारे लगाने की इजाजत न होने से कैदियों ने शाम से देश भक्ति के गाने गुनगुनाकर रात काटी. जब उन्हें पता चला कि अन्ना हजारे अनशन पर हैं और भूख हड़ताल कर रहे हैं तो उन्होंने भी खाना-पीना त्याग दिया. कई हजार कैदियों ने अन्ना के आंदोलन का समर्थन करते हुए न तो सुबह का नाश्ता लिया और न ही दोपहर का भोजन.
क्या वाकई अन्ना का रास्ता सही है ?
अनशन करके सरकार से अपनी बात मनवाना एक तरह की ब्लैकमैलिंग जैसा होता है जिसके कई दुष्परिणाम भी हैं. अगर आप नहीं भूले हों तो आंध्र प्रदेश से अलग तेलंगाना बनाने के लिए इसी तरह के अनशन का इस्तेमाल किया गया था. लोग आज एक आंधी की तरह अन्ना के साथ तो जा रहे हैं लेकिन जिस लोकपाल की अन्ना बात कर रहे हैं अगर वही भ्रष्ट हो गया तो उससे कौन बचाएगा? यह एक बड़ा सवाल है जिस पर शायद अभी किसी का ध्यान नहीं जा रहा.
पर सबसे बड़ा सवाल – कहां है राहुल गांधी और सोनिया गांधी?
आज एक सवाल सभी दबी हुई जबान में पूछ रहे है और वह है कि इतने बड़े आंदोलन और राजनीतिक उठा-पटक के बीच कांग्रेस आलाकमान के दो मुख्य चेहरे हैं कहां? क्या उन्हें देश के हालातों के बारे में कोई खबर नहीं या फिर वो जानबूझ कर इस पूरे मसले से खुद को दूर रखे हुए हैं? वैसे इस पूरे प्रकरण में जिस तरह से कांग्रेस घिरती नजर आ रही है उससे लगता है कि कांग्रेस खुद भी चाहती है कि लोग उन पर कीचड़ उछालें और इस सब के पीछे उसकी एक गहरी चाल हो सकती है. कल कपिल सिब्बल ने भी साफ शब्दों में कह ही दिया कि अगर जनता का फैसला देखना है तो 2014 के चुनावों तक का इंतजार कीजिए यानि कि सिब्बल साहब को पूरा यकीन है कि यूपीए सरकार को 2014 से पहले कोई नहीं हिला सकता और यह आत्मविश्वास किस वजह से है यह कोई नहीं जानता.
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