अन्ना का भूत कांग्रेस के पीछे से इतनी जल्दी नहीं हटने वाला. भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जागने वाले अन्ना हजारे ने एक बार फिर हुंकार भरी है कि अगर सरकार ने जल्द ही भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया तो वह फिर से अनशन करेंगे और पांच राज्यों में होने वाले चुनावों में कांग्रेस विरोधी नारे लगाएंगे.
अन्ना हजारे ने कहा कि दशहरा बाद वह जन लोकपाल बिल के विरोधी राजनीतिक दलों को सबक सिखाने की मुहिम शुरू करेंगे, जिसमें मुख्य निशाना कांग्रेस होगी. और तो और उन्होंने हिसार में 13 अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव में मतदाताओं से कांग्रेस के खिलाफ मतदान की अपील करने की भी बात कह डाली.
एक सार्वजनिक मंच से किसी पार्टी विशेष के लिए ऐसी बात कहना बिलकुल गलत है पर जब बात देश में भ्रष्टाचार खत्म करने की हो तो यह सही लगता है.
हाल के दिनों में जिस तरह चिदंबरम को 2जी मामले में कांग्रेस ने फंसते-फंसते बचाया उससे तो यही साबित होता है कि कांग्रेस की दाल बहुत काली है. मनमोहन सिंह से लेकर सोनिया गांधी तक सभी चिंदबरम के बचाव में ऐसे आए जैसे कि अगर कहीं वह फंस गए तो ना जाने कितनों के नाम उगलेंगे.
2जी घोटाले की आंच से बच पाना सरकार के लिए एक टेढ़ी खीर साबित हो रही है. और ऊपर से अन्ना का डर रह-रह कर सरकार को दो महीने पहले की याद दिला रहा है जब अन्ना हजारे ने रामलीला मैदान से देश में एक तरह की क्रांति पैदा कर दी थी. लेकिन बार-बार अन्ना यह जादू कर पाएं यह तो मुश्किल लगता है पर जिस तरह से अन्ना ने अपने समर्थकों को एकत्रित किया है उससे कुछ भी कह पाना मुश्किल है.
हालांकि अन्ना और कांग्रेस की लड़ाई में भाजपा का फायदा जरूर हो सकता है. भाजपा को अन्ना हजारे का कांग्रेस विरोध तो रास आया है, लेकिन गुजरात में अपनी ही सरकार के खिलाफ अन्ना के तेवरों(अगर संजीव भट्ट का मसला) ने उसे बगलें झांकने को भी मजबूर किया है. अन्ना हजारे के आंदोलन को भाजपा भले ही राजनीतिक रूप से भुनाने की कोशिश करे, लेकिन अन्ना उसे अपने पास फटकने देना नहीं चाहते हैं. अन्ना लगातार यह कह रहे हैं कि भाजपा व संघ से उनके आंदोलन का कोई लेना-देना नहीं है.
अब क्या होता है और क्या नहीं यह तो दशहरे के बाद ही साफ हो जाएगा पर एक बात की आशंका की जा सकती है कि अन्ना जल्द ही राजनीति में कूद जाएं क्यूंकि रामलीला मैदान से जाने के बाद लगातार हर प्रेस कांफ्रेस में उन्होंने कांग्रेस पर वार किया है. ऐसे में अगर वह एक अलग पार्टी बना कर चुनाव लड़ते हुए नजर आएं तो कोई अचरज वाली बात नहीं. हालांकि इस बात की संभावना सौ में से सिर्फ चार या पांच प्रतिशत ही है.
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