पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद अब सबकी नजर 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर है. इसको देखते हुए भारत के विभिन्न राजनीति दल अपनी कमर कस चुके हैं. जिस लोकपाल बिल पर हमेशा ही राजनेता शिथिल दिखाई देते थे, उस लोकपाल बिल को पास करवाने के लिए सत्ता और विपक्ष अपनी एडी-चोटी का जोर लगा रही हैं. देश की प्रमुख पार्टियां कांग्रेस और भाजपा चाहती हैं कि इस बिल को संसद के इसी सत्र (शीतकालीन सत्र) में पास कराके जल्द से जल्द अमलीजामा पहनाया जाए.
वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी इस बिल का शुरु से ही विरोध कर रही है. उनका कहना है कि इस समय देश के सामने जो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है वह महंगाई है. इसलिए सरकार को चाहिए कि वह लोकपाल से अलग हटकर महंगाई पर चर्चा करें. शीतकालीन सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी के नेताओं ने लोकपाल बिल का विरोध करते हुए सदन से वॉकआउट किया.
वैसे इस बिल का विरोध करने वालो में हाल फिलहाल भारतीय राजनीति की गर्भ से निकली आम आदमी पार्टी भी है, लेकिन इनका विरोध इस बात को लेकर नहीं है कि लोकपाल बिल को पास या फिर उस पर चर्चा नहीं कराना चहिए बल्कि इनका विरोध लोकपाल की शक्तियों को लेकर है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि सत्ता और विपक्ष जिस लोकपाल बिल को पास कराने के लिए जद्दोजहद कर रही है वह लोकपाल नहीं बल्कि जोकपाल है.
सरकारी बिल को जहां एक तरफ गांधीवादी नेता और और फिलहाल अनशन पर बैठे अन्ना हजारे अपना समर्थन दे चुके हैं वहीं दूसरी तरफ ‘आप’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल शुरु से ही इस बिल को नकारते आए हैं.
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आम आदमी पार्टी की आपत्ति
सरकारी लोकपाल बिल में सीबीआई केंद्र सरकार के ही अधीन है, जबकि 2011 में अन्ना के जनलोकपाल बिल में इसे सरकारी नियंत्रण से आजाद करने की बात कही गई थी. ‘आप’ पार्टी के मुताबिक लोकपाल के पास जांच के लिए अलग से कोई एजेंसी नहीं होगी क्योंकि सीबीआई के अफसरों की पोस्टिंग, ट्रांसफर और प्रमोशन का अधिकार सरकार के पास है. इसलिए उनकी मांग है कि सीबीआई को सरकार से अलग किया जाए.
‘आप’ पार्टी की दूसरी आपत्ति है- सिटीजन चार्टर में ए, बी, सी और डी सभी वर्गों के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार को दायरे में लाने की बात थी’ लेकिन सरकारी लोकपाल बिल में सिर्फ ग्रुप ए को ही शामिल किया गया है.
तीसरी आपत्ति है -केंद्र की तर्ज पर राज्यों में लोकपाल का गठन क्यों नहीं, जैसा पहले वादा किया गया था? ‘आप’ पार्टी के मुताबिक सभी राज्यों में मजबूत लोकायुक्त के न होने से भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग अधूरी रह जाएगी.
ससंद में पेश किया गया लोकपाल बिल पूरी तरफ से पास हो जाएगा इसकी पूरी संभावना जताई जा रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने इसमें रुचि दिखाई है. अब सवाल समाजवादी पार्टी पर उठता है कि यूपीए के समर्थक दल होने के वाजजूद भी सपा इस बिल का विरोध क्यों कर रहे हैं. क्या वह नहीं चाहती कि देश में ऐसी व्यवस्था लागू हो जहां राजनेताओं और प्रशासकों का जनता के प्रति जवाबदेही बनती हो.
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