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Arvind Kejriwal: टाइम ने चुना पूरे भारत से बस एक ‘आम आदमी’

arvind_kejriwal 1साधारण सा दिखने वाला चेहरा, घिसी मोहरी वाली पैंट, साइज से थोड़ी ढीली शर्ट और पैरों में पड़ी फ्लोटर सैंडलें उस आम आदमी की याद दिलाती हैं जो हमारे गांव-कस्बों के हर नुक्कड़ में प्रचुरता से मौजूद हैं. यही आम सा दिखने वाला व्यक्ति, जिसका नाम अरविंद केजरीवाल है, कई बार भारतीय राजनीतिक व्यवस्था की नींद हराम कर चुका है. अब इसी व्यक्ति को जानी मानी पत्रिका ‘टाइम’  ने दुनिया भर के प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल किया है.


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‘टाइम’ पत्रिका की सूची में दुनिया भर के 153 प्रभावशाली लोगों के नाम हैं जिन पर ऑनलाइन मतदान किया जा रहा है. इस सूची में भारत की तरफ से सिर्फ अरविंद केज़रीवाल का नाम है.मतदान के आधार पर ‘टाइम’ पत्रिका के संपादक 100 लोगों की एक सूची तैयार करेंगे जिसका रिज्लट 18 अप्रैल को जारी किया जाएगा. मतदान 12 अप्रैल तक चलेगा.


इससे पहले अरविंद केजरीवाल को अमेरिका के पेन्सिलवेनिया में ‘वॉर्टन इंडिया इकनॉमिक फोरम’ में नरेंद्र मोदी की जगह भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था. आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल (यांत्रिक) इंजीनियरिंग में स्नातक (बीटेक) की उपाधि प्राप्त करने वाले अरविंद का चेहरा और तौर-तरीके देखकर विश्वास ही नहीं होता कि वे कभी इन्कम टैक्स कमिश्नर थे. लेकिन जल्द ही उनका इस पद से मोह भंग हो गया और 2006 में केजरीवाल ने इस पद को त्याग दिया.


आम लोगों के लिए समर्पण का भाव परिवर्तन

अरविंद केजरीवाल को जब दिल्ली में आयकर आयुक्त कार्यालय में नियुक्त किया गया तब उन्होंने कुछ विदेशी कंपनियों के काले कारनामे पकड़े. उन्होंने महसूस किया कि सरकार में बहुप्रचलित भ्रष्टाचार का कारण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है. अपनी अधिकारिक स्थिति पर रहते हुए ही अरविंद ने  भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू कर दी. प्रारंभ में अरविंद ने आयकर कार्यालय में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जनवरी 2000 में उन्होंने काम से विश्राम ले लिया और दिल्ली आधारित एक नागरिक आन्दोलन परिवर्तन नामक संस्था की स्थापना की, जो एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए काम करती है.


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सूचना का अधिकार

देश में आरटीआई कानून लाने में अरविंद केजरीवाल की एक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. अरुणा रॉय और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, उन्होंने सूचना अधिकार अधिनियम के लिए अभियान शुरू किया जिसे जल्द ही सफलता भी मिल गई. दिल्ली में सूचना अधिकार अधिनियम को 2001 में पारित किया गया और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संसद ने 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया.


लोकपाल के लिए संघर्ष

एक समाजसेवी के रूप में अन्ना हजारे की लोकप्रियता ज्यादातर महाराष्ट्र तक ही सीमित थी. आज अगर अन्ना देश के घर-घर में पहुंचे हैं तो इसके पीछे अरविंद केजरीवाल की भूमिका बहुत बड़ी रही है.  सितंबर 2010 में जब भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल बिल का मसौदा तैयार किया गया था तभी अरविंद ने सोच लिया था कि वो लोगों को एक साथ जुटाएंगे. फिर उन्होंने अन्ना से संपर्क किया जिसके बाद अन्ना चार अप्रैल 2011 को अनशन पर बैठने के लिए तैयार हो गए. आंदोलन को भारी सफलता भी मिली. इस बीच उन पर राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को साकार करने के आरोप लगे. आज अन्ना और अरविंद के रास्ते अलग हो चुके हैं.


आम आदमी पार्टी

अरविंद द्वारा राजनीतिक पार्टी बनाए जाने को लेकर अन्ना की टीम पूरी तरह से बिखर गई. अन्ना हजारे और किरण बेदी ने खुद को अरविंद केजरीवाल की पार्टी से अपने आप दूर कर लिया. अरविंद ने पार्टी बनाने के बाद देश की राष्ट्रीय पार्टियों के असली चेहरे को सामने लाने किए छापामार शैली अपनाई. आज अरविंद दिल्ली में बिजली और पानी के बढ़े हुए बिल के खिलाफ अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं और राजनीति के मंच पर अपने आप को साबित करने किए लिए जनता की बीच जाकर अपनी और पार्टी के भविष्य को लेकर संभावनाएं टटोल रहे हैं.


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