तमिलनाडु की विलुप्पुरम जिले की राजेश्वरी करनान दुबारा दुनिया भर के अखबारों की सुर्खियों में हैं. इसकी वजह है उसके नवजात बच्चे के शरीर में अचानक आग लग जाना वह भी बिना किसी वजह के. हालांकि डॉक्टरों को शक है कि इस शिशु के शरीर में आग लगाने वाली कोई और नहीं बल्कि खुद उसकी मां राजेश्वरी है. इससे पहले 2013 में राजेश्वरी के पहले बेटे राहुल को ऐसी ही शिकायत के बाद आईसीयू में भर्ती होना पड़ा था. तब उसकी उम्र 3 महीने थी और उसके शरीर में भी बिना कोई ज्ञात कारण के आग लग गई थी.
इलाज के बाद इस नवजात शिशु को डॉक्टरों ने उसके मां को लौटाने से मना कर दिया है. डॉक्टरों का मानना है कि राजेश्वरी ध्यान आकर्षित करने के मनोरोग से गुजर रही है. यह शिशु केवल 10 दिन का था जब इसके मां द्वारा इसे अस्पताल में लाया गया था. डॉक्टरों ने पाया कि शिशु का पांव 10 प्रतिशत जला हुआ था. शिशु की मां राजेश्वरी का कहना है कि जब उसने अपने बेटे को रोते हुए देखा दौड़कर उसके पास गई और पाया कि उसके पांव में आग लगी है.
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कुछ चिकित्सकों को शक है कि राजेश्वरी मनचाउसेन सिंड्रोम बाई प्रॉक्सी से पीड़ित है. यह एक ध्यान आकर्षित करने का मनोरोग है. बाल मनोचिकित्सक शिव प्रकाश श्रीनिवासन का कहना है कि, “ध्यान आकर्षित करने की यह जरूरत अपने बच्चे को इस तरह की स्थिति में अस्पताल लाने से होता है. इसने मां और बच्चे को विश्वभर के अखबारों की सूर्खियों में ला दिया.”
अस्पताल के डीन नरायण बाबू का कहना है कि, “हमने दोनों बच्चों और उनके मां बाप की सघन जांच की है और वे सब सामान्य पाए गए हैं.” इस तरह से स्पॉनटेनस ह्यूमन कॉमबस्टन (एसएचसी) की थ्योरी को बल नहीं मिलता जिसमें माना जाता है कि यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें मानव शरीर में बिना किसी बाहरी स्रोत के आग लग जाती है. राजेश्वरी की एक लड़की भी है, हालांकि उसे इस तरह की शिकायत कभी नहीं हुई.
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मनचाउसेन सिंड्रोम बाई प्रॉक्सी की है तो यह पहला केस नहीं है जिसमें इस बीमारी पर शक जाता है. कुछ सालों पहले लखनऊ की एक लड़की ट्वींकल की कहानी ने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरी थी. ट्वींकल को शिकायत थी कि जब वह रोती है तो उसके आंखों से आंसू की बजाए खून टपकता है. ट्वींकल के अतीत में जाएं तो पता चलता है कि एक समय ट्वींकल काफी अकेली और घर में कैद होकर रहने लगी थी. इसी दौरान उसे यह बीमारी हुई और इस बीमारी ने उसे वह हमदर्दी और ध्यानाकर्षण मुहैया करवाया जिसकी उसे जरूरत थी. कुछ मनोचिकित्सकों का मानना था कि खून उसकी आंखों से नहीं आता बल्कि वह बाहर से आंखों में खून लगाती है. वैसे यह खून वह कहां से लाती है इसकी पुख्ता जानकारी सामने नहीं आ पाई थी. कुछ डॉक्टरों ने यह संकेत जरूर पाया था कि उसकी आंखों में खून तभी आता है जब वह मासिक धर्म से गुजर रही होती है.
मनचाउसेन सिंड्रोम के एक और मशहूर केस में एक 12 साल की लड़की को कानों से मरी हुई मक्खियां निकलने की शिकायत रहती थी. डॉक्टरों के लाख प्रयत्न के बाद इसका कारण नहीं पता चला. लड़की की मां हमेशा उसके बारे में चिंतित रहती थी और कभी भी उसे अकेला नहीं छोड़ती. डॉक्टरों को मां पर शक हुआ. उन्होने मां को घर भेज दिया जबकि लड़की को अपने निगरानी में रखा. इसके बाद कान से मरी मक्खियां निकलने की शिकायत आनी बंद हो गई. कुछ दिन बाद लड़की जब छुट्टी पर घर गई तो फिर से कानों से मक्खियां निकलने की शिकायत शुरू हो गई. डॉक्टरों का शक पुख्ता हो गया. इसके बाद लड़की के साथ उसके मां बाप की भी काउंसलिंग की गई.
यह फैसला हम आप पर छोड़ते हैं, क्या आप सोचते हैं कि ये तीनों घटनाएं किसी दुर्लभ बीमारी के कारण है या ये सचमुच एक मनोरोग का नतीजा है?Next…
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