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बच्चे ने जन्म लेने से पहले ही स्कूल में मास्टर बनने की योग्यता हासिल कर ली, अजीब सी यह खबर पढ़कर आप भी हैरान रह जाएंगे

आजकल कलर्स टीवी चैनेल पर एक टॉक शो चल रहा है जिसका नाम है ‘दी अनुपम खेर शो- कुछ भी हो सकता है’. नाम के अनुरूप इस शो के होस्ट बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर हैं और इनके मेहमान होते हैं बॉलीवुड के वो सितारे जिन्होंने अपने संघर्ष और मेहनत की बदौलत बुलंदियां छुई हैं. अनुपम खेर अपने मेहमानों के जीवन के उन पहलूओं पर प्रकाश डालते हैं जिनमें उनके साथ कुछ अविश्वसनीय हुआ हो. पर आपको यदि बिहार की शिक्षा व्यवस्था के इस पहलू के बारे में पता चलेगा तो आप भी यह मानने को मजबूर हो जाएंगे कि, ‘सचमुच कुछ भी हो सकता है’.


Teacher


क्या आप ऐसे प्रतिभाशाली शिक्षकों को जानते हैं जिन्होंने अपने बीएड की डिग्री अपने जन्म से पहले ही प्राप्त कर ली थी. नहीं? तो फिर मिलिए एल.बी. सिंह से. एल. बी. सिंह सहरसा में एक सरकारी स्कूल के टीचर हैं. महोदय का जन्म तो जनवरी 1986 में हुआ लेकिन इन्होंने अपनी बीएड की डिग्री सन 1979 में ही प्राप्त कर ली थी यानी अपने जन्म से 7 साल पहले. इस चमत्कारिक प्रतिभा के धनी एल.बी. सिंह अकेले अध्यापक नहीं हैं. बिहार के सरकारी स्कूलों में ऐसे रत्नों की भरमार है. सारण की इंदु कुमारी भी बिहार शिक्षा व्यवस्था कि एक ऐसी ही रत्न हैं जिन्होंने अपनी बीएड की डिग्री अपने जन्म से सात वर्ष पहले हासिल कर ली थी. वहीं मधेपुरा के शिवनारायण यादव और प्रीति कुमारी और पूर्वी चंपारण के तारकेश्वर प्रसाद सिंह ने यह उपलब्धि अपने जन्म से क्रमशः 3 साल और 5 साल पहले हासिल कर ली थी.


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Govt-schools


बिहार के स्कूलों में मार्च-अप्रैल 2012 में नियुक्त हुए 32,127 अध्यापकों में से कम से कम 95 अध्यापक ऐसे हैं जिन्होंने यह डिग्री या तो अपने जन्म से पहले हासिल की है या फिर 21 साल से कम उम्र में. यह नियुक्तियां 2010 में आए सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद हुई थी जिसमें कोर्ट ने 34,540 शिक्षकों की भर्ती का निर्देश दिया था. कर्मचारी चयन आयोग ने इन भारतियों के लिए विज्ञापन 2003 में जारी किया था पर पिछली राजद सरकार द्वारा इस पर अमल नहीं किया गया.


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अब आपको बताते हैं कि शिक्षा क्षेत्र के इन महारथियों को ऐसा कारनामा करने की प्रेरणा कैसे मिली. दरअसल बिहार के सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक का शिक्षक बनाने की न्यूनतम योग्यता थी स्नातक और बीएड की डिग्री. दो समान योग्यता वाले अभ्यर्थियों में उस अभ्यर्थी को वरीयता दी जाती जिसने बीएड की डिग्री पहले हासिल की हो. फिर क्या था बिहार के लचर शिक्षा व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त बनाने के इस महती कार्य के लिए ऐसे युवा भी शिक्षक बन गए जिन्होंने पैदा होने से पहले ही शिक्षक बनने की योग्यता अर्जित कर ली थी.


अनुपम खेर जी आप ही बताइए, क्या बिहार के इन नौजवानों की कामयाबी किसी बॉलीवुड सितारे की कामयाबी से कम चमत्कारिक है? अगर नहीं तो एक शो तो बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर बनता ही है क्योंकि यहां कुछ भी और सबकुछ हो सकता है.


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एक चमत्कार ऐसा जिसने ईश्वरीय कृपा की परिभाषा ही बदल दी, जानना चाहते हैं कैसे?

इनकी सूरत में आप अपना भी भविष्य देख सकते हैं लेकिन ध्यान से, हकीकत डरवानी होती है!

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