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मुंबई पर आतंकी हमलों का टूटता कहर


13 तारीख लगता है भारत में विस्फोट करने का आतंकवादियों का प्रिय दिन बन गया है. बार-बार दिल्ली, मुंबई, वाराणसी जैसे अहम स्थानों पर बम विस्फोट कर आंतकियों ने जता दिया है कि उन्हें कोई खौफ नहीं है. देश में रॉ और आईबी बस झक मारने के लिए बैठी हैं और ज्यादा से ज्यादा उन्हे एलर्ट घोषित करवाना आता है. और आतंकियों के तो मंसूबे बढ़ेंगे ही जब कसाब जैसे कुख्यात देश में मौज ले रहे हों. सीसीटीवी कैमरे से साफ होता है कि एक आदमी ने अंधाधुंध गोली चलाकर आम जनता का लहू बहाया है पर सरकार और कोर्ट को ना जानें अब और किस सबूत का इंतजार है. ऊपर से जेल में जो इन आंतकियों को सुविधा मिलती है, वाकई किसी पांच सितारा होटल में भी ना मिले.


देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई में अब तो लगता है आंतकी हमले आम हो गए हैं. लोगों ने भी डर के मारे घरों के अंदर रहने से बेहतर इस डर के साथ समझौता कर लिया है और अपने डर के साथ ही वह इस शहर में रहने को मजबूर हैं. 13 जुलाई, 2011 का दिन मुंबई में एक बार फिर आंतकी हमलों की त्रासदी लेकर आया.


Blasts in mumbaiमुंबई में 13 जुलाई, 2011 को शहर के तीन सबसे व्यस्त इलाकों झवेरी बाजार, दादर और ओपेरा हाउस में 8 मिनट में हुए तीन बम धमाकों में 31 लोगों की मौत हो गई. हमले को गृहमंत्री चिदंबरम ने लश्कर और इंडियन मुजाहिदीन की मिलीजुली साजिश करार दिया है और जैसा हमेशा होता है मौका-ए-वारदात पर गृहमंत्री आनन-फानन में पहुंच गए और मारे गए लोगों के लिए पांच-पांच लाख का हर्जाना दे दिया. एक जिंदगी की कीमत गृहमंत्री साहब ने पांच लाख लगा दी भले ही इसको लेने के लिए मृतकों के परिजनों को ना जाने कितनी पापड़ बेलनी पड़े.


 Serial Blast in Mumbaiपहले नजर डालते हैं आखिरी आठ मिनट में कहां क्या हुआ जिससे मुंबई दहल गई और कुछ देर के लिए ठहर गई. शाम को 6.40 मिनट से लेकर 07 बजे के बीच तीन धमाके हुए. पहला धमाका मशहूर झवेरी बाजार में हुआ. अब तक तीन बार इस क्षेत्र को आतंकी विस्फोटों का शिकार होना पड़ा है. इससे पहले यहां 12 मार्च, 1993 और 25 अगस्त, 2003 को विस्फोट हो चुके हैं. दूसरा धमाका ओपेरा हाउस में हुआ. तीसरा विस्फोट मध्य और पश्चिम रेलवे के संगमस्थल दादर स्टेशन से बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर दादर के कबूतरखाना इलाके में हुआ.  इस धमाके के लिए एस.के. भोले मार्ग पर स्थित बस स्टॉप की छत पर विस्फोटक बांधा गया था. धमाका इतना जोरदार था कि बस स्टॉप के ठीक पीछे स्थित होटल, दुकानों और आसपास की इमारतों के कांच टूट गए.


ओपेरा हाउस तथा झवेरी बाजार में हुए विस्फोट दादर में हुए धमाके से अधिक शक्तिशाली थे. इन विस्फोटों में इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव उपकरणों (आईईडी) का इस्तेमाल किया गया. शहर के भीड़भाड़ वाले झवेरी बाजार, दादर तथा चरनी रोड के ओपरा हाउस में हुए विस्फोटों से 26/11 के आतंकवादी हमले की याद ताजा हो गयी है.


कल 13 जुलाई को 26/11 के अहम गुनहगार कसाब का जन्मदिन भी था इसलिए माना जा रहा है कि आंतक के आकाओं ने अपने बहादुर सिपाही को उसकी बहादुरी का इनाम दिया है और भारत सरकार का धन्यवाद अदा किया है कि उसने कसाब को नहीं मारा.


जरा ध्यान दीजिए क्यूंकि यह तथ्य हमारे लिए बहुत खास है. क्या आप जानते हैं कि मुंबई में 26/11 को कई लोगों की जान लेने वाले कसाब की मेहमाननवाजी में सरकार ने कितने करोड़ रुपए बर्बाद किए हैं? कसाब की मेहमाननवाजी में सरकार ने एक साल 31 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. और एक आम आदमी की मौत पर सरकार पांच लाख देकर अपने आप को भगवान मान रही है. क्या यही कीमत रह गई देश में जान की. अब तो लगता है अगर जिंदगी का बीमा नहीं है तो बाजार जाना और रेल से सफर करना अपने परिवार पर अतिरिक्त बोझ डालना है.


अगर आपको एक डरपोक और सत्ता के अहंकार में डूबी सरकार का विश्व में सबसे बढ़िया उदाहरण देखना है तो इस समय की यूपीए सरकार को देखिए. यहां का प्रधानमंत्री खुद को लाचार बताते हुए कहता है कि वह घोटालेबाजों को अपनी सरकार में रखने के लिए मजबूर है और वह तो खुद तो लोकपाल के दायरे में आना चाहता है लेकिन उसकी माई-बाप पार्टी उसे आने से रोक रही है.


आगे तो हम कुछ नहीं कहेंगे क्यूंकि अब लगता है देश को आतंकी हमलों की आदत डाल लेनी चाहिए क्यूंकि जब तक यूपीए सरकार है तब तक तो अगर खुद भगवान भी आकर कह दे कि यह आतंकी हमला है, इसमें पाकिस्तान का हाथ है और कसाब गुनहगार है तब भी यूपीए सरकार कहेगी कि नहीं हमारे पास सबूतों की कमी है और कसाब मासूम है. इसलिए इंतजार करिए तब तक, जब तक देश की सरकार नहीं बदलती.


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