अभी कुछ दिनों पहले जब मुंबई में धमाका हुआ था तो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने कहा था “सभी हमलों को रोक पाना मुमकिन नहीं है.” लेकिन लगता है वह कहना चाहते थे कि “किसी भी हमले को रोक पाना मुमकिन नहीं है.” देश का खुफिया विभाग कितना सतर्क है इसकी झलक राजधानी में दिख ही गई. केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम चाहे लाख दलीलें दें या कितने भी कड़े शब्दों में आतंकवादी हमलों की निंदा करें पर इससे कुछ होने वाला नहीं. जब मुंबई हमलों के गुनहगारों को अब तक सजा नहीं मिल सकी है तो किसी को क्या डर. जब देश की न्याय व्यवस्था सीसीटीवी में कैद हत्यारे को भी मारने के लिए ट्रायल ले रही हो तो उस देश की सुस्त न्याय व्यवस्था से किसी को क्या डर. यह आतंकवादी तब भी मारते थे जब हमारे देश में कथित तौर पर तकनीकी सुविधा की कमी थी और यह आज भी मार रहे हैं जब हमारे नेताओं में नैतिकता की कमी और वोट बैंक की चाह देश हित से ज्यादा बढ़ गई है.
दिल्ली फिर दहली
दिल्ली हाईकोर्ट के गेट नंबर पांच के पास बुद्धवार सुबह 10 बजकर 15 मिनट पर विस्फोट हुआ. इस हादसे में 11 लोगों की मौत हो गई, जबकि कम से कम 45 लोग घायल हो गए. धमाका हाईकोर्ट के गेट नंबर पांच के पास हुआ जहां भारी संख्या में लोग अंदर जाने के लिए पास बनवा रहे थे. बम को एक ब्रीफकेस में रखा गया था. ‘मध्यम से उच्च तीव्रता’ वाले इस विस्फोट से विस्फोट स्थल पर ‘गहरा गड्ढा’ हो गया है.
गेट क्रमांक पांच पर लगभग 100 से 200 लोग कतार में खड़े थे, जो प्रवेश पास मिलने का इंतजार कर रहे थे. घटनास्थल पर कई वकील भी मौजूद थे. इस दुर्घटना में करीब 10 लोगों की मौत और करीब 40 लोगों के घायल होने की खबर आ रही है. सभी घायलों को राम मनोहर लोहिया, सफदरजंग और एम्स अस्पतालों में ले जाया गया है. उनमें से कई घायल जल गए हैं.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी [एनआईए], राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड्स [एनएसजी] और फॉरेंसिक विभाग के दल घटनास्थल पर पहुंच गए हैं. बुद्धवार का दिन अदालत के लिए व्यस्तता से भरा होता है क्योंकि यह जनहित याचिकाओं की सुनवाई का दिन है. इस दिन अदालत परिसर में अपने कार्य के सिलसिले में बहुत से लोग पहुंचते हैं.
सोता रहा खुफिया विभाग
इसके पहले 25 मई को यहां हुए एक विस्फोट के बाद अफरातफरी मच गई थी. इसके चलते राजधानी में हाई एलर्ट घोषित करते हुए सार्वजनिक स्थलों की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी. इस विस्फोट में कोई घायल नहीं हुआ था. उस समय धमाका एक कार में हुआ था. सिर्फ दो महीने बाद ही आतंकवादियों ने इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे दिया और खुफिया विभाग सोता रहा. चिंदबरम जी यह कहकर पल्ला झाड़ चुके हैं कि उन्होंने दिल्ली पुलिस को पहले ही सूचित कर दिया था पर उनके कथन में कितनी सच्चाई है यह कोई नहीं जानता. 2005 से अब तक राजधानी में करीब आधा दर्जन से अधिक आतंकवादी हमले हो चुके हैं. फिर भी खुफिया विभाग हर बार चूक का हवाला देकर अपना दामन पाक कर लेता है.
आखिर क्यूं नहीं हो रही फांसी
यह हमले तो वह हैं जो 2005 से सिर्फ राजधानी में हुए इसमें मुंबई, वाराणसी, पुणे के धमाके तो अलग ही हैं. मुंबई का हाल तो सबसे बुरा है जो हर साल किसी ना किसी आतंकवादी हमले का शिकार होता ही है. इन सब के बावजूद भी आखिर हमारी सरकार पकड़े गए आतंकवादियों को मौत की सजा देने से परहेज करती क्यूं है. अफजल गुरू और कसाब को किसके इशारे और फायदे के लिए सरकार ने अब तक जिंदा रखा है. अगर इन आतंकवादियों का मानवाधिकार है तो क्या जो लोग इन धमाकों में मारे जाते हैं उनकी जान कौड़ियों के मोल की है.
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