23 मई को भारत में सीबीएसई के 12वीं कक्षा के परिणाम आ गए और इस बार के परीक्षा परिणामों में भी लड़कियों ने ही बाजी मारी है. इस साल सीबीएसई की 12वीं परीक्षा में 81 फीसदी से अधिक छात्र उत्तीर्ण हुए हैं. सीबीएसई ने 12वीं कक्षा के पटना क्षेत्र को छोड़कर सोमवार को पूरे देश में परिणाम घोषित कर दिया जिसमें कुल उत्तीर्ण प्रतिशत 81.71 रहा, जो पिछले साल के मुकाबले 1.84 प्रतिशत अधिक है.
सीबीएसई की 12वीं परीक्षा में इस बार कुल सात लाख 70 हजार 43 छात्र बैठे थे. यह संख्या पिछले साल के मुकाबले 9.85 फीसदी अधिक है. परीक्षा में लड़कियों के उत्तीर्ण होने का प्रतिशत 86.3 रहा, जबकि उत्तीर्ण लड़कों का आंकड़ा 77.83 फीसदी है. क्षेत्रों में चेन्नई क्षेत्र ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और यहां के 91.32 फीसदी छात्र उत्तीर्ण हुए. नियमित छात्रों के उत्तीर्ण होने का प्रतिशत 83.66 और प्राइवेट पत्राचार माध्यम के छात्रों के पास होने का प्रतिशत 45.41 रहा.
दिल्ली का उत्तीर्ण प्रतिशत 85.45 रहा. यहॉ भी लड़कियों ने लड़कों के मुकाबले बहुत अच्छा प्रदर्शन किया. परीक्षा में 89.72 प्रतिशत लड़कियों ने बाजी मारी, वहीं लड़के का प्रतिशत इस मामले में 81.58 रहा.
आंकड़ों की कहानी साफ बयां करती है कि लड़कियां लड़कों से अधिक सफल हो रही हैं. नतीजों ने एक बार फिर सोचने को मजबूर कर दिया है कि क्या वाकई कन्याओं को जन्म देने से पहले मार देना सही है. क्या सफलता के पैमाने पर सौ टका खरी उतरने वाली यह कन्याएं हमारे देश का भविष्य नहीं बन सकतीं? आखिर क्यूं लोग आज भी कन्याओं को अपने सर का बोझ मानते हैं?
आज देश की राष्ट्रपति, चार राज्यों की मुख्यमंत्री, और देश में सत्ताधारी पार्टी की हाईकमान भी महिलाएं ही हैं. इसके साथ ही कई विशेष क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व बढ़ रहा है. लड़कियां ना सिर्फ पढ़ाई लिखाई के क्षेत्र में आगे जा रही हैं बल्कि कैरियर की राह में भी लड़कियों के लिए काफी रास्ते खुले हैं. हालांकि प्रेम-प्रसंग और खुली विचारधारा का मॉडर्न लाइफ में अधिक प्रयोग कई बार लड़कियों को शालीनता की राह से भटका देता है लेकिन संस्कारों और शालीनता के नाम पर हम बच्चियों को पैदा होने से पहले तो नहीं मार सकते. आखिर यह संस्कार भी तो हमारे द्वारा ही दिए जाते हैं. अब समय आ गया है जब हमें लड़कियों को उनका स्थान देना ही होगा.
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