एक दिन पहले देश का प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्त लोकपाल की मांग पर अनशन पर बैठे अन्ना हजारे से अनशन तोड़ने की अपील करता है और दूसरे ही दिन ना जानें सर्वदलीय बैठक के बाद सरकार में इतनी ताकत कहां से आ जाती है कि वह टीम अन्ना को ही ठेंगा दिखा देती है और कहती है अन्ना का मन है अनशन करें या फिर तोड़ दें.
संसद में भ्रष्टाचार पर बहस और सर्वदलीय बैठक के बाद टीम अन्ना और सरकार के बीच हुई बातचीत फिर वहीं पहुंच गई जहां से शुरू हुई थी. बुधवार रात की बातचीत के दौरान सरकार ने साफ कर दिया कि अब तक अन्ना की किसी शर्त को माना नहीं गया है.
सर्वदलीय बैठक के बाद सरकार की तरफ से कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और अन्ना टीम के अरविंद केजरीवाल के बोल बिलकुल उलट थे. जहां सलमान खुर्शीद कह रहे थे कि बातचीत सकारात्मक रही वहीं केजरीवाल ने बातचीत को “दुर्भाग्यपूर्ण” तक कह डाला.
प्रणब मुखर्जी, सलमान खुर्शीद और कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित की टीम अन्ना के साथ बातचीत करीब डेढ़ घंटे चली. जब बैठक खत्म हुई तो अन्ना के सहयोगी अरविंद केजरीवाल, प्रशांत भूषण और किरण बेदी के चेहरे लटके थे.
टीम अन्ना से बैठक के बाद प्रणब मुखर्जी ने कहा, “हमने अन्ना के सहयोगियों को सर्वदलीय बैठक और उनकी कल की मांग के बारे में बताया. हमें उम्मीद है कि संसदीय प्रक्रिया को पूरा होने दिया जाएगा.” हालांकि सरकार ने टीम अन्ना से यह अवश्य कहा कि कि वह नया लोकपाल बिल ड्राफ्ट करेगी और वे चाहें तो उसमें अपने सुझाव शामिल करा सकते हैं, लेकिन सर्वदलीय बैठक में की गई सभी दलों की मांग को देखते हुए अन्ना को अपना अनशन तुरंत तोड़ देना चाहिए.
अन्ना हजारे का अनशन गुरूवार को दसवें दिन में प्रवेश कर गया और उनके हजारों समर्थकों ने उनकी कुशलक्षेम के लिए प्रार्थना की. अन्ना हजारे भी अनशन की वजह से चुप होने की बजाय और अधिक सक्रिय हो गए हैं. अन्ना के हौसले तब इतने बुलंद हैं जब पिछले नौ दिनों में उनका वजन 6.3 किलो कम हो गया है. हजारे समर्थक रातभर बड़ी संख्या में रामलीला मैदान में डटे रहे और देशभक्ति के गीत गाते रहे तथा सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते रहे.
लेकिन इस पूरे मसले में अब बीजेपी से भी अन्ना की टीम ने रूख साफ करने को कहा है क्यूंकि जिस तरह से बीजेपी इस मसले में अपना बर्ताब बार-बार बदल रही है उससे आंशका के बादल घिर आए हैं. केजरीवाल ने कहा कि जनलोकपाल के विभिन्न मुद्दों पर बीजेपी को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए. बीजेपी कहती रही कि कानून आएगा तब बताएंगे तो अब उसे अपना रुख साफ करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि कई पार्टियां उनके समर्थन में खुलकर सामने आई हैं.
यह बात भी गौरतलब है कि छोटी पार्टियां अन्ना और लोकपाल के समर्थन में खुलकर सामने आ रही हैं वहीं विपक्ष इतने बड़े मुद्दे के बाद भी अपना नरम रवैया अपनाए हुए है. आखिर कहां गई सुषमा स्वराज की वह चुनौती देती हुई आवाज. इतने बड़े मुद्दे पर सरकार को संसद में आराम से घेरा जा सकता है लेकिन लगता है विपक्ष में ऐसा कोई सशक्त नेता ही नहीं बचा जो सरकार के सामने खुलकर दबंगई कर सके.
आने वाले दो तीन दिनों में साफ हो जाएगा कि अन्ना के अनशन का आखिर होगा क्या? क्या देश हमेशा की तरह अपनी भूलने की आदत पर कायम रहेगा या फिर जेपी आंदोलन जैसा फिर कुछ वैसा ही होगा जिससे शासन में बदलाव आए.
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