कहा जाता है कि राजनीति में कोई किसी का स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। मौके के हिसाब से सभी अपना पाला बदलने के अलावा अपने बयानों से भी पलट जाते हैं। आंध्र प्रदेश की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। टीडीपी प्रमुख एवं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने केन्द्र से राज्य को विशेष दर्जा देने और 2014 में इसके विभाजन से पहले किए सभी वादों को पूरा करने की मांग को लेकर सोमवार को दिल्ली में एक दिवसीय अनशन शुरू किया है। इससे पहले 8 नवम्बर 2016 को नोटबंदी की घोषणा होने के बाद शुरुआत में उसका स्वागत करने वाले नायडू ने अब इसे तुगलकी फैसला करार दिया है। उन्होंने कहा कि ‘मोदी 1000 रुपये के नोट चलन से बाहर कर दिए, लेकिन 2000 रुपये के नोट ले आए। इससे भ्रष्टाचार कैसे खत्म होगा।’ ऐसे में आम लोगों के मन में सवाल है कि किसी राज्य को विशेष दर्जा मिल जाने से क्या फायदा होता है। आइए, जानते हैं।
क्या है किसी राज्य को विशेष दर्जा देने का अर्थ
1969 में केंद्रीय सहायता का फॉर्मूला बनाते समय पांचवें वित्त आयोग ने गाडगिल फॉर्म्युले के अनुरूप तीन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया- असम, नागालैंड और जम्मू-कश्मीर। इसका आधार था इन राज्यों का पिछड़ापन, दुरूह भौगोलिक स्थिति और वहां व्याप्त सामाजिक समस्याएं। उसके बाद के वर्षों में पूर्वोत्तर के बाकी पांच राज्यों के साथ अन्य कई राज्यों को भी यह दर्जा दिया गया।
विशेष राज्य को 90 प्रतिशत केंद्रीय अनुदान प्राप्त होता है और बाकी 10 प्रतिशत ब्याजमुक्त कर्ज के रूप में। अन्य राज्यों को केंद्र से मात्र 70 प्रतिशत अनुदान मिलता है। विशेष राज्य को उत्पाद शुल्क में भी रियायत दी जाती है, ताकि उद्योगपति वहां अपनी औद्योगिक इकाइयां स्थापित करें। परंतु देखा यह गया कि आज तक इनमें से किसी भी राज्य का औद्योगीकरण नहीं हुआ। कहा जाता है कि वहां के निवासियों ने यह समझ लिया होगा कि मेहनत करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि केंद्रीय धन से उनका काम चल ही जाता है।
क्यों दिया जाता है विशेष राज्य का दर्जा
राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देने के पीछे मुख्य मुद्दा है उनका पिछड़ापन और क्षेत्रीय असंतुलन दूर करना, जो केंद्र की संवैधानिक जिम्मेदारी है। लेकिन सभी पिछड़े राज्यों को एक साथ विशेष राज्य का दर्जा मिलना असंभव है। इसलिए पिछड़ापन दूर करने के दूसरे उपायों पर भी विचार करना चाहिए…Next
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