एक समय था कि भ्रष्टाचार का नाम आते ही जहन में बिहार का नाम ताजा हो जाता था. वक्त बदला और कुशासन में फंसा बिहार धीरे-धीरे ही सही सुशासन की राह पर चलने लगा. नीतीश कुमार ने बिहार को ब्रांड बनाने की सारी कोशिशें तेज रफ्तार से कर डाली जिसका परिणाम अब आ रहा है. उम्मीद है कि बिहार में भी जल्द ही खुशहाली के दिन आएंगे जिसकी झलक मिलनी शुरू हो गई है.
पूरे देश में एक ओर जहां भ्रष्टाचार दूर करने के लिए प्रभावी लोकपाल विधेयक लाने को लेकर हर गली चौराहे से लेकर संसद और मीडिया में चर्चा का बाजार गरम है, वहीं कभी भ्रष्टाचार के लिए विशेष पहचान बने रहे बिहार जैसे पिछड़े राज्य ने भ्रष्टाचार से लड़ने के मामले में देश के सामने कई उदाहरण पेश किए हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव में जनसभाओं के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की थी कि यदि दोबारा उनकी सरकार बनी तो उनकी लड़ाई भ्रष्टाचार से होगी. दूसरी बार सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री ने अधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार को निशाना बनाना प्रारंभ किया और अब उसका नतीजा भी दिखने लगा है. सरकार में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए मंत्रियों और वरिष्ठ नौकरशाहों सहित अधिकारियों से संपत्ति की घोषणा करवाई गई. इसके अलावा अवैध संपत्ति अर्जित करने के आरोप का सामना कर रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी एस.एस. वर्मा के रुकनपुरा मुहल्ले में स्थित एक बड़े बंगले को न्यायालय के आदेश से जब्त कर बच्चों के लिए स्कूल खोल दिया गया.
इसी तरह कोषागार के एक क्लर्क गिरीश कुमार के बंगले को भी सरकार ने कब्जे में ले लिया है और उसमें स्कूल खोलने की तैयारी की जा रही है. ऐसे ही करीब एक दर्जन मामले अब भी विचाराधीन हैं. सरकार ने लोक सेवा का अधिकार कानून बनाकर लोगों को एक समय सीमा में उनके काम को पूरा हो जाने का अधिकार दिया तो लोकायुक्त कानून 2011 बनाया. इस कानून के दायरे में वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री, राज्य विधानमंडल के सदस्य, सरकारी अधिकारी, कर्मचारी सभी शामिल होंगे. राज्य सरकार की इस पहल को जानकारों द्वारा दूसरे राज्यों के सामने उदाहरण बताया जा रहा है. यह अलग बात है कि टीम अन्ना इस विधेयक को कमजोर मान रही है.
आंकड़ों के अनुसार पिछले छह वर्षो में निगरानी विभाग ने 400 से ज्यादा भ्रष्ट लोकसेवकों को रिश्वत लेते गिरफ्तार किया, जबकि गत वर्ष 71 मामलों में 78 लोकसेवकों को घूस लेते गिरफ्तार किया गया. यही नहीं भ्रष्टाचार के जरिये राज्य में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने आठ करोड़ से भी ज्यादा की संपत्ति को चिह्नित किया है. गत वर्ष सबसे ज्यादा चर्चा में एक पुलिस उपाधीक्षक और दो अन्य कर्मी को रिश्वत लेते गिरफ्तार करना रहा. इन पर आरोप था कि इन्होंने वैशाली में घूसखोरी करते पकड़े गए राज्य खाद्य निगम के जिला प्रबंधक के बैंक खाते से एटीएम के जरिये पांच लाख रुपये की निकासी की थी.
हालांकि हमेशा कहा जाता है कि हम जो देखते हैं कभी-कभी वह छलावा भी होता है. मंत्रियों को निकालने और राज्य से भ्रष्टाचार दूर करने की बातें तो मायावती भी कर रही हैं पर वहां की असली सच्चाई क्या है सब जानते हैं. अब कहीं जो यूपी में मायावती कर रही हैं वह बिहार में नीतीश भी तो नहीं कर रहे हैं? यही एक सवाल है जो काफी लोगों के दिलों में है लेकिन सब जानते हैं कि मायावती और नीतीश कुमार की छवि और व्यवहार में कितना बड़ा अंतर है.
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