यहाँ निवेश नहीं करता.
म्यांमार के लोग अब भी परंपरागत तरीके से कच्चा तेल निकालने का काम कर रहे हैं. तेल निकालने का यह तरीका बहुत ही पीड़ादायक है. इसका सबसे बड़ा कारण म्यांमार में लंबे समय तक सैन्य शासन द्वारा लगाए गए राजनीतिक प्रतिबंध है. इस कारण यहां किसी भी तरह का विदेशी निवेश नहीं होता है. आज भी म्यांमार का एक बड़ा हिस्सा आधुनिकीकरण की राह देख रहा है.
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म्यांमार में हाड़ तोड़ मेहनत के बाद एक मजदूर दिनभर में 300 बैरल क्रूड ऑयल इकट्ठा करता है. इसकी कीमत 3,000 डॉलर होती है. इस तेल को स्थानीय रिफाइनरी को बेचा जाता है.
परंपरागत तरीके
तेल के कुंए से कच्चा तेल निकालने के लिए मजदूर ट्राइपॉड नुमा (तीन टांग वाला) बांस या पेड़ के तने का इस्तेमाल कर उसे जमीन में गाड़ते हैं. यह ट्राइपॉड नुमा बांस करीबन 40-50 फीट ऊंचे होते हैं. इसमें चरखी लगा होता है. इसकी मदद से ड्रिल करके ऑयल खींचा जाता है. इस के बाद ऑयल को सतह तक पहुंचने के लिए मजदूरों को घंटों मशक्कत करनी पड़ती है. मजदूरों को 300 फीट या इससे भी ज्यादा निचे कुंए से तेल खींचकर निकालना पड़ता है.
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ड्रिलिंग महंगा ही नहीं बहुत महंगा
यहाँ एक एकड़ ऑयल फील्ड की कीमत लगभग 4,000 डॉलर (2,52,680 रुपए) है, जबकि ड्रिलिंग 2,000 डॉलर यानि (1,26,340 रुपए) है. इसके साथ ही इसका परमिट स्थानीय रिफाइनरी से खरीदा जाना आवश्यक शर्तों में से एक है. परन्तु बात रिश्वत पर आकर अटक जाती है. व्यापारियों को ड्रिलिंग के लिए ऊंची रिश्वत तक चुकानी पड़ती है. इस कारण ड्रिलिंग और भी महंगी हो जाती है. कुछ लोग तो आर्थिक तंगी के कारण हाथ से ड्रिलिंग करते रहते हैं.
दादागिरी एक बड़ी समस्या
म्यांमार के कई ऑयल फील्ड में ड्रिलर अवैध तरीके से भी तेल निकालने का काम करते हैं. ड्रिलर को रोकने पर वे खून-खराबे पर उतर जाते हैं. 2011 में सैन्य शासन खत्म होते ही बर्मा ने राजस्व वृद्धि के उद्देश्य से ऑयल ब्लॉक्स विदेशी निवेशों के लिए खोल दिए. म्यांमार दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में ऑयल प्रोडक्ट्स आयात करने के लिए ज्वॉइंट वेंचर की तलाश में है.Next…
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