सरकारी आंकड़ों का खेल बड़ा अजब-गजब का होता है. कुछ समय पहले सरकारी आंकड़े कह रहे थे कि शहर के लोग मात्र 32 रुपए में अपन जीवन बसर कर सकते हैं. यह आकंड़ा इतना बेबुनियाद था कि इस पर दुबारा चर्चा करवाई गई. अब एक बार फिर सरकारी आंकड़ों ने लोगों को हंसने पर मजबूर कर दिया है.
राजधानी में रहने वाले लोगों की कमाई देश भर में सबसे ज्यादा है तो उनके खर्च के आंकड़े भी सबसे ऊपर हैं. दिल्ली सरकार के आंकड़ों पर यकीन करें तो राजधानी में समृद्धि मानो बरस रही है और चारों ओर आनंद ही आनंद है. यह और बात है कि शहर की कुल आबादी की करीब पांच फीसदी, यानि आठ लाख से ज्यादा लोगों के सिर पर छत नहीं है. ये लोग सड़क पर हैं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार राजधानी की प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा 1,16,886 रुपये प्रतिवर्ष है, तो प्रतिव्यक्ति खर्च का आंकड़ा 2811.05 रुपये प्रतिमाह है. राजधानी के शहरी इलाकों में यह आंकड़ा 2904.87 रुपये है. राष्ट्रीय स्तर पर खर्च का प्रतिव्यक्ति औसत 1984 रुपये है.
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के लोग अपनी कमाई का 36 फीसदी हिस्सा खाने-पीने पर खर्च करते हैं. इसमें 10 प्रतिशत खर्च दूध और इससे बने भोज्य पदार्थो पर किया जाता है. रसोई बनाने के लिए शहर के 90 फीसदी घरों में एलपीजी का इस्तेमाल किया जाता है. इंटरनेट की पहुंच 15.31 प्रतिशत घरों तक हो चुकी है. साक्षरता की दर 90.12 प्रतिशत है जबकि 99.62 प्रतिशत घरों में बिजली की आपूर्ति की जाती है. यह भी दावा किया गया है कि राजधानी के 64.36 फीसदी लोगों के पास अपने मकान हैं और 31 फीसदी लोग किराए के मकानों में रहते हैं. जाहिर है कि चार फीसदी से ज्यादा लोग बेघर हैं.
इस रिपोर्ट में कुछ और भी खास बातें हैं जो बेहद रोचक हैं:
दिल्ली सरकार के इन आंकड़ों के आधार पर भले यह दावा किया जाए कि शहर में चारों ओर खुशहाली है लेकिन हकीकत यह भी है कि आज भी करीब 65 हजार भिखारी चारों ओर रिरियाते घूम रहे हैं, लाखों लोगों के पास इतना भी पैसा नहीं आता कि वे किराए का भी घर ले सकें और बीमार होने पर अपना इलाज तक करा सकें. इतना सब होने के बाद भी सरकारी आंकड़ों में दिल्ली बहुत रंगीन है.
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