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क्या वाकई इनके सहारे है सुरक्षा


उत्तर प्रदेश में पुलिस व्यवस्था किस कदर बेहाल है इसका ताजा उदाहरण मेरठ और कानपुर में हुई पुलिस विभाग की प्रमोशन के लिए दौड़ है. कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल से दारोगा बनने के लिए बुद्धवार, 20 जुलाई को हुए फिजिकल टेस्ट में यूपी पुलिस की तंदुरुस्ती को पोल खुल गई. मेरठ में हुई इस दौड़ में एक सिपाही की मौत हो गई और दो दर्जन सिपाही बेहोश हो गए साथ ही एक सिपाही की आवाज ही चली गई.


running-from-police-imageगौरतलब है कि इस दौड़ में सिपाहियों को एक घंटे में 10 किलोमीटर का रास्ता तय करना था. पुलिस महकमे की फिटनेस को लेकर कई बार सवाल खड़े हुए हैं. सबसे अधिक चर्चा बड़े तोंद वाले पुलिस अफसरों पर होती है. वर्तमान में भी उच्च पदों पर बैठे कई ऐसे पुलिस अफसर हैं जो दस किलोमीटर तो दूर एक किलोमीटर की दूरी पूरी करने का माद्दा नहीं रखते.


यूपी पुलिस महकमें की इस तरह की स्थिति देखकर एक बार तो दिल में अपनी सुरक्षा को लेकर भी संदेह होता है. यह बात किसी से छुपी नहीं है कि पुलिस महकमा अनफिट सिपाहियों और मोटे पुलिसवालों की वजह से बहुत परेशान है. अगर दिल्ली पुलिस की बात की जाए तो यहां भी आपको ऐसे तमाम पुलिसवाले मिल जाएंगे तो चोरों का पीछा करने में असमर्थ हैं. दिल्ली पुलिस की स्थिति भी यूपी पुलिस की तरह ही है.


लेकिन पुलिस विभाग में सिर्फ सिपाही, कांस्टेबल और अन्य निचले स्तर के कर्मचारी ही नहीं बल्कि बड़े अफसर और इंस्पेक्टर स्तर के भी कई पुलिसवाले एक घंटे में दस किलोमीटर की दौड़ को पूरा करने में असमर्थ हैं.


पुलिस विभाग में सिपाहियों की ऐसी खराब फिटनेस की एक मुख्य वजह घूसखोरी और पैसा देकर नौकरी लेने की आदत भी है. दिल्ली पुलिस और यूपी पुलिस अपनी भर्ती में भारी  घोटालेबाजी के लिए हमेशा चर्चा का विषय रही है. यहां जान-पहचान और नोट के बल पर भर्ती दिलाना और होना आम है. इस वजह से कई बार अनफिट सिपाही भी भर्ती हो जाते हैं. उसके बाद नौकरी के दौरान घूसखोरी और बैठे-बैठे काम करने की वजह से सिपाहियों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है. व्यायामशालाओं की कमी तो हर पुलिस विभाग की परेशानी है. थाने में बैठे-बैठे थानेदार साहब का पेट आगे निकल गया तो इसमें भला उनका क्या दोष?


उपरोक्त बातें बहुत आम लगती हैं लेकिन इसका असली अंजाम तक नजर आता है जब इन पुलिस वालों को किसी चोर या डाकू का पीछा करना पड़ता है और उनकी सुस्त चाल से वह चोर भाग जाता है या फिर किसी बड़े हादसे के दौरान इसका मुआवजा भरना ही पड़ता है. राज्य सरकारों को अपनी सुरक्षा की तरफ अधिक ध्यान देने की जरुरत है. सिपाहियों और पुलिसवालों की सेहत को दुरुस्त रखने के लिए प्रभावी कदम उठाने आवश्यक हैं वरना आज तो सिर्फ प्रमोशन की दौड़ में यह हार गए कल को कहीं जान बचाने की दौड़ हुई तो क्या होगा?


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