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दिग्विजय-ठाकरे वार: आरोप-प्रत्यारोपों की क्षुद्र राजनीति

digvijay singh uddhav thakreबिहारियों के वजूद पर सवाल उठाने वाला और अपनी क्षुद्र राजनीति से मराठी जन की सहानुभूति पाने वाला ठाकरे परिवार आजकल अपने ही वजूद को लेकर स्पष्टीकरण दे रहा है. जो ठाकरे परिवार बिना बात के हर समय मुंबई में बसे बिहारियों को केन्द्र में रखकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकता था आज उसी परिवार को बिहारी का तगमा दिया जा रहा है और इस बात की पुष्टि कांग्रेस के नेता और अपने अलग तरह के कमेंट्स से मीडिया में छाने वाले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh)ने की है.

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क्या लिखा है किताब में

दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने इस बात के सबूत पेश कर दिए हैं कि राज ठाकरे का परिवार बिहार से ही आया था. उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए एक किताब को जरिया बनाया जो खुद भाजपा-शिवसेना के राज में छापी गई थी. बाल ठाकरे के पिता केशवराव ठाकरे की ओर से लिखी गई इस किताब में ठाकरे परिवार के इतिहास के बारे में बताया गया है. किताब के पेज नंबर 45 पर साफ लिखा है कि ठाकरे परिवार पहले मगध (बिहार) से भोपाल गया, वहां से फिर चित्तौड़गढ़ और उसके बाद पुणे के मांधवगढ जा बसा. इससे पहले दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh)ने ठाकरे परिवार को बिहारी करार देते हुए कहा था कि मुंबई के असली बाशिंदे तो वहां के मछुआरे हैं, बाकी सब तो बाहर से आए हैं.


कैसे बढ़ा यह मामला

दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने इस किताब का खुलासा करते हुए राज ठाकरे को नसीहत भी दी कि उन्हें अपने बिहारी होने पर गर्व करना चाहिए. उन्हें पहले देश के बारे में सोचना चाहिए और नफरत की बजाय प्यार फैलाना चाहिए. सिंह का कहना है कि उनके पास यह पुस्तक थी लेकिन खो गई थी. जब राज ठाकरे ने बिहारियों का मुद्दा उठाया तो उन्होंने इस पुस्तक को मंगवाया. गौरतलब है कि पिछले दिनों राज ठाकरे ने बिहारियों को घुसपैठिया मान कर मुंबई से खदेड़ने की बात कही थी. उन्होंने हिंदी न्यूज चैनलों को भी अपना निशाना बनाया था और उन्हें बंद करने की भी बात कही.


दिग्विजय सिंह पागल हो गए हैं

दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh)के ताजा दावे के बाद शिवसेना परिवार आगबबूला हो गया है. खुलासे के बाद शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) को पागल करार दे दिया. उद्धव ने बताया कि दिग्विजय (Digvijay Singh)तथ्यों को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं. मेरे दादा जी ने जो पुस्तक लिखी थी, वह सिर्फ ठाकरे परिवार के लिए नहीं थी बल्कि पूरे मराठी समाज पर थी. दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) मराठी नहीं जानते हैं इसलिए वह उसका मतलब नहीं समझ पाए.

ठाकरे परिवार और दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh)दोनों ही ओछी राजनीति के लिए जाने जाते हैं. जहां एक तरफ ठाकरे परिवार बिहारियों को खदेड़ने के मुद्दे पर संविधान को चुनौती देते हैं तो वहीं दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh)अपने ऊटपटांग बयानों से राजनीति में सक्रिय होने का एहसास कराते हैं लेकिन असल मुद्दा जिस पर शायद बात होनी चाहिए थी वह कहीं पीछे छूट जाता है.


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