कहा जाता है कि किसी इंसान के मरने के बाद उससे सारे शिकवे-शिकायतें आंखों के रास्ते बह निकलते हैं। लेकिन अगर किसी जिंदा इंसान से शिकवे-शिकायतें होने पर उसे मरा हुआ मानकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाए तो? आप सोच रहे होंगे कि ऐसा सिर्फ फिल्मों में होता है लेकिन एक ऐसा ही किस्सा असल जिंदगी में भी देखने को मिला है, जहां पर अपनी पत्नियों को मरा हुआ मानकर उनके पति उनका अंतिम संस्कार करने वाराणसी पहुंच रहे हैं।
पिछले दिनों 160 लोगों ने काशी में अपनी पूर्व पत्नियों का अंतिम संस्कार किया जो अभी जिंदा हैं। इससे पहले भी लोग बड़ी संख्या में ऐसा कर चुके हैं। दरअसल, ये लोग अपनी पत्नियों के उत्पीड़न से परेशान थे। इन्होंने ‘नारीवाद की बुराइयों’ का सामना करने के लिए वाराणसी के घाटों पर तांत्रिक पूजा भी कराई।
“बुरी यादों से मुक्त होने के लिए होती है पूजा”
ये पत्नी पीड़ित पति एनजीओ सेव इंडिया फैमिली फाउंडेशन से जुड़े हुए हैं। इन लोगों ने वाराणसी में गंगा घाट पर पिंड दान और श्राद्ध किया है ताकि उन्हें असफल शादी की बुरी यादों से मुक्ति मिल सके। ये लोग तंत्र-मंत्र के उच्चांरण के बीच पिशाचिनी मुक्ति पूजा भी करते हैं। मुंबई में रहने वाले और सेव इंडिया फैमिली तथा वास्तमव फाउंडेशन के अध्यक्ष अमित देशपांडे कहते हैं कि यह पूजा इसलिए कराई जाती है ताकि पति शादी की बुरी यादों से मुक्त हो सकें।
दहेज विरोधी कानून से है शिकायत
उनकी मुख्यी शिकायत दहेज विरोधी कानून के जरिए पतियों के उत्पीहड़न की शिकायत को लेकर है। उन्हों ने कहा, ‘उत्पी ड़नस के शिकार पतियों की मुख्यस शिकायत भारतीय दंड संहिता की धारा 498A को लेकर है। इस धारा के जरिए पतियों को प्रताड़ित किया जाता है।’ बता दें कि वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यी य खंडपीठ ने दहेज विरोधी कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कई निर्देश दिए थे…Next
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