बीते 15 फरवरी को दिल्ली में दिल्ली आपदा प्रबंधन का सबसे बड़ा कार्यक्रम हुआ जिसमें दिल्लीवासियों को प्राकृतिक आपदा के समय बचने के तरीके बताए गए. दिल्ली मेट्रो से लेकर स्कूल, कॉलेजों तक लोगों को मुश्किल की घड़ी में बचने के उपाय बताए गए. लेकिन इतना बड़ा कार्यक्रम होने के बाद भी लोगों के दिलों में एक बात है कि अगर कभी भूकंप आया तो दिल्ली का नाश पक्का है. सब जानते हैं दिल्ली की धरती कितनी खोखली हो चुकी है. मेट्रो, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि ने दिल्ली की खूबसूरती में चार चांद तो लगाए हैं पर भूकंप या किसी अन्य आपदा के समय इनसे जान का खतरा भी सबसे ज्यादा है.
भूकंप की दृष्टि से संवदेनशील कही जाने वाली दिल्ली में आपदा प्रबंधन से बचाव के इंतजाम के दावे चाहे जितने हों, लेकिन हकीकत यह है कि शहर में किसी बड़े भूकंप की हालत में किसी भी एजेंसी के लिए स्थिति को संभालना आसान काम नहीं है. बड़ी आपदाओं की जाने दीजिए वर्ष 2010 में लक्ष्मी नगर इलाके में एक अवैध इमारत ध्वस्त हुई और करीब 70 लोग उसमें जिंदा दफन हो गए. बचाव कार्य में लगी एजेंसियां दो दिनों तक मलबे में दबी लाशों को निकालने में जुटी रहीं.
अवैध निर्माण ने मुश्किल बढ़ाई
अवैध निर्माणों को लेकर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित द्वारा जताई गई चिंता बेवजह नहीं है. 1639 अवैध कालोनियां इस शहर में बसी हुई हैं जबकि झुग्गी-झोपड़ियों की संख्या भी सैकड़ों की संख्या में हैं. इन कालोनियों में मकानों का निर्माण बगैर किसी योजना के हुआ है. पतली-पतली दीवारों के सहारे तीन-चार मंजिल के मकान खड़े कर दिए गए हैं. इनकी बनावट को देखते हुए ऐसी आशंका गलत नहीं है कि यहां रिक्टर स्केल पर सात से आठ फीसदी तीव्रता वाला भूकंप आने की सूरत में बहुत भारी नुकसान होगा.
पूर्वी दिल्ली अतिसंवेदनशील
भूकंप की दृष्टि से पूर्वी दिल्ली को बहुत संवेदनशील माना जाता है. लेकिन इस पूरे इलाके में 80 फीसदी से ज्यादा निर्माण अनियोजित तरीके से किए गए हैं. लक्ष्मी नगर की ही बात करें, तो ऐसी-ऐसी गलियां हैं कि आग लग जाएं, तो अग्निशमन की गाड़ियां नहीं पहुंचने पाएं. अवैध कालोनियों की भरमार है. मकान इस प्रकार बनाए गए हैं कि एक मकान को तोड़ा जाता है, तो बगल वाले मकान के गिरने का खतरा पैदा हो जाता है.
भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल नहीं
अवैध कालोनियों की जाने दीजिए, जो मकान नियोजित कालोनियों में बने हुए हैं, उनके निर्माण में भी भूकंप से बचाव के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं. निजी मकानों की जाने दीजिए सरकारी इमारतों में भी भूकंप से बचाव के इंतजाम नहीं हैं और अब इन इमारतों में रेट्रोफिटिंग की बात की जा रही है.
अतिक्रमण व आबादी ने मुसीबत बढ़ाई
दिल्ली का कुल क्षेत्रफल 1483 वर्ग किलोमीटर है जबकि आबादी एक करोड़, 70 लाख के आसपास. यह लगातार बढ़ रही है. जमीन बढ़ी नहीं और आबादी बढ़ती गई. परिणाम यह हुआ कि बेतरतीब तरीके से मकान बनते चले गए. सारे नियम ताक पर रख दिए गए. बढ़ती आबादी ने अतिक्रमण की समस्या भी बढ़ाई है. बाजार से लेकर कालोनियों तक में लोगों ने सड़कों को घेर रखा है. आपदा की सूरत में ऐसे इलाकों में बचाव करना मुश्किल होगा. पुरानी दिल्ली से लेकर पहाड़गंज तक की तंग गलियां मुसीबत की सबब हैं.
आग से बचाव के इंतजाम नाकाफी हैं
दिल्ली में अग्निशमन से जुड़े वाहनों की संख्या 200 के आसपास है जबकि अग्निशमन विभाग में तैनात कर्मचारियों की संख्या एक हजार के आसपास. इतने बड़े शहर के लिए ये इंतजाम पर्याप्त नहीं कहे जा सकते.
उपकरणों का भी सख्त अभाव
दिल्ली आपदा प्रबंधन विभाग से जुड़े अधिकारी ठीक-ठीक नहीं बता पा रहे कि उनके पास कितनी संख्या में गैस कटर, बचाव वाहन, क्रेन आदि हैं. कई मौकों पर देखने में आया कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली मेट्रो के पास उपलब्ध उपकरणों का इस्तेमाल आपदा प्रबंधन के कार्य में किया.
अस्पतालों का बुरा हाल
दिल्ली में सरकारी अस्पतालों की कुल संख्या वैसे तो 789 है जिनमें 40677 बेड उपलब्ध हैं. लेकिन इनमें से निजी क्षेत्र के अस्पतालों व नर्सिग होम की संख्या अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा है. करीब 676 अस्पताल गैर सरकारी क्षेत्र में हैं. एंबुलेंस की संख्या भी कम है.
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