Egypt’s Mubarak sentenced to life in prison
विश्व इतिहास के पन्नों में जहां जनवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था है वहीं देश को अपनी शक्ति और ताकत की बदौलत जकड़ लेने वाली तानाशाही व्यवस्था भी है. इस व्यवस्था का इतिहास बताता है कि कैसे इसने बेरहमी से जनता के साथ जुल्म किए तथा उन पर कई तरह के कहर बरपाए. लेकिन जिस तरह से तानाशाही व्यवस्था में एकमात्र शासक का उत्थान होता है उससे कई गुना ज्यादा उसका भयंकर अंत होता है. कैसे हम एडोल्फ हिटलर, बेनिटो मुसोलिनी, सद्दाम हुसैन और कर्नल गद्दाफी के विनाश को भूल सकते हैं.
इन तानाशाहों में एक तानाशाह मिस्त्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक भी हैं जिन्हें मिस्त्र की एक अदालत ने शनिवार को उम्रकैद की सजा सुनाई. मुबारक के दोनों पुत्र ममाल और आला को बरी कर दिया गया है. दोनों पर भ्रष्टाचार का आरोप था.
दस महीने की सुनवाई के बाद होस्नी मुबारक को सजा सुनाए जाने पर काहिरा में जश्न मनाया जा रहा है. मुबारक के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान मारे गए लोगों के रिश्तेदारों में खुशी की लहर दौड़ गई. इस बीच अदालत के बाहर जमा लोग होस्नी मुबारक को सुनाई गई सजा को कम मानते हुए प्रदर्शन कर रहे हैं.
होस्नी मुबारक ने लगभग 30 साल तक मिस्र पर एकछत्र राज किया था. मुबारक पर 900 लोगों की हत्याओं में भागीदारी के आरोप हैं. यह हत्याएं पिछले साल तब की गई थीं जब लोकतंत्र समर्थक और सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी उनके खिलाफ बगावत कर रहे थे. इसके बाद मुबारक को सत्ता छोड़नी पड़ी थी.
तानाशाहों में अपनी अय्याशी के चलते लीबिया को गर्क में ले जाने वाले कर्नल गद्दाफी की मौत को कौन भूल सकता है. 21 अक्टूबर को उसके विद्रोहियों ने पहले पीटकर और फिर गोलियों से छलनी कर मार डाला. विद्रोहियों के डर से वह अपने गृहनगर सिर्ते में जा छुपा था. इसी तरह की दर्दनाक मौत में इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन की हुई जिसे वर्ष 2006 में इराक की विशेष अदालत ने मानवता के विरुद्ध अपराध में दोषी करार पाया और फिर फांसी पर चढ़ा दिया गया.
दुनिया के कई देशों की बागडोर आज भी तानाशाहों के हाथों में हैं लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करने वालों को भरोसा है कि इनका भी नाश जल्द ही होगा.
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