आपने फिल्मों में हीरो को एक्शन सीन करते हुए जरूर देखा होगा. जिसमें वो 5-6 आदमियों को अकेले मारता है. उसी तरह रियल लाइफ हीरो की बात करें तो फौजी उस हीरो की तरह है जो बार्डर पर रहकर चाहे कितने भी दुश्मनों से घिरा हो लेकिन उसका दिमाग उसे हार नहीं मानने देता. उसकी इच्छाशक्ति ही उसे जंग में खड़ी रहने के लिए प्रेरित करती है. लेकिन यही इंसान उस वक्त हार मान जाता है जब उसे किसी बात से मानसिक आघात पहुंचता है.
आप खुद सोचिए, जो इंसान अपनी पूरी जिंदगी देश के नाम कर दे. उसे उम्रदराज होने पर घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़े, वो भी चंद रुपयों के लिए तो उसके दिल पर क्या बीतेगी? बेशक, इसे मानसिक प्रताड़ना ही कहा जाएगा. कुछ ऐसी ही घटना सामने आई है सीआरपीएफ के एक रिटायर्ड जवान की. खबरों के अनुसार, मृतक जवान का नाम राकेश चंद है. वे कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. ऐसे में उन्हें उपचार के लिए 6 से 7 हजार रुपये खर्च करने पड़ते थे. राकेश ने कश्मीर के बारामूला में साल 1990 में हुए हमले के दौरान अपने सीने पर पांच गोलियां खाई थीं. इसके बाद से लगातार उनके हृदय संबंधी परेशानियों का इलाज चल रहा था. मगर नोटबंदी के बाद इस फौजी के पास नोट की कमी होने लगी.
आसपास रहने वाले लोगों का कहना है कि राकेश रोजाना एटीएम लाइन में लगा करते थे. बीमारी के चलते वो अक्सर लाइन में हांफने लगते थे. बीच-बीच में पानी भी पीते रहते थे लेकिन ईलाज के लिए पैसे चाहिए थे इसलिए लाइन में खड़े होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. अपनी ही मेहनत की कमाई के लिए उन्हें लाइन में घंटों खड़े होना पड़ता. ऐसे में उनके चेहरे पर हताशा और निराशा साफ झलक रही थी.
रोज की इस परेशानी से हताश होकर उन्होंने आखिरकार आत्महत्या कर ली. फिलहाल उनके परिवार वाले कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है. नोटबंदी के बाद से ऐसे कई मामले देखने को मिल रहे हैं, जिसमें लोग परेशान होकर आत्महत्या का कदम उठा रहे हैं. एक आर्मी ऑफिसर की आत्महत्या के इस हादसे के बाद लोग बेहद निराश दिख रहे हैं…Next
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