कहावत है कि दुश्मनी का भी एक स्तर होता है, अगर आप में प्रतिभा है या आपने कोई बेहतरीन काम किया है, तो आपके आलोचक या दुश्मन भी आपकी काबिलियत को सभी बातों से ऊपर रखेंगे। एक अच्छा इंसान ही इस स्तर को बनाकर रख सकता है। जैसे, किसी प्रतियोगिता में काबिल और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को दूसरे पक्ष के लोग भी सराहते हैं।
एक ऐसे ही शख्स भारतीय सेना के पहले सेना प्रमुख कोडंडेरा मडप्पा करिअप्पा, जिन्हें पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी सलाम करते थे। 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक के कुर्ग में जन्मे करिअप्पा 15 जनवरी 1949 को आजाद भारत के पहले सेना प्रमुख बने थे। करिअप्पा फील्ड मार्शल के पद पर पहुंचने वाले इकलौते भारतीय हैं। फील्ड मार्शल सैम मानेकशा दूसरे ऐसे अधिकारी थे, जिन्हें फील्ड मार्शल का रैंक दिया गया था।
करिअप्पा की बहादुरी के किस्से
करिअप्पा ने 1947 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में साहस और दमदार नेतृत्व किया था। पाकिस्तान के युद्ध के समय उन्हें पश्चिमी कमान का जी-ओ-सी-इन-सी बनाया गया था। उनके नेतृत्व में भारत ने जोजीला, द्रास और करगिल पर पाकिस्तानी सेना को हराया था।
पाकिस्तान सीमा में गिरा आर्मी चीफ के बेटे का विमान
1953 में करिअप्पा का भारतीय सेना से रिटायरमेंट हो गया। इसके बाद उनके जीवन में ऐसी घटना घटी, जो हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गई।
1965 के भारत-पाक युद्ध के वक्त करिअप्पा रिटायर होकर कर्नाटक में रह रहे थे। करिअप्पा का बेटा केसी नंदा करिअप्पा उस वक्त भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट था। युद्ध के दौरान उसका विमान पाकिस्तान सीमा में प्रवेश कर गया, जिसे पाक सैनिकों ने गिरा दिया। करिअप्पा के बेटे ने विमान से कूदकर जान तो बचा ली, लेकिन वो पाक सैनिकों के हत्थे चढ़ गए।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति भारतीय सेना में कर चुके थे नौकरी
1965 युद्ध के दौरान पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान थे, जो कभी करिअप्पा के जूनियर थे और भारतीय सेना में नौकरी कर चुके थे। उन्हें जैसे ही करिअप्पा के बेटे नंदा के पकड़े जाने का पता चला उन्होंने तुरंत उन्हें फोन किया और बताया कि वो उनके बेटे को रिहा कर रहे हैं। इस पर करिअप्पा ने बेटे का मोह त्याग कर कहा कि वो सिर्फ मेरा बेटा नहीं, भारत मां का लाल है। उसे रिहा करना तो दूर कोई सुविधा भी मत देना। उसके साथ आम युद्धबंदियों जैसा बर्ताव किया जाए। करिअप्पा ने अयूब खान से कहा कि या तो आप सभी युद्धबंदियों को रिहा करें या फिर किसी को नहीं। हालांकि युद्ध खत्म होने के बाद सभी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया गया…Next
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