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तेलंगाना का इतिहास

तेलंगाना राज्य के निर्माण को लेकर आंध्र प्रदेश और दिल्ली में घमासान जारी है. एक तरफ भूख हड़ताल कर रहे वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख वाईएस जगनमोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश का बंटवारा करने के केन्द्रीय मंत्रिमंडल के फैसले को वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ नई दिल्‍ली के आंध्र भवन में अनशन पर बैठे टीडीपी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू जिद पर अड़े हैं. तेलंगाना क्षेत्र की मांग को लेकर लगातार आंदोलन किए जा रहे हैं. 1946 से ही इसकी नींव पड़ गई थी. उस समय यह ज्यादा दिन तक नहीं चला.


तेलंगाना का इतिहास

आज जिस तेलंगाना का नाम लिया जा रहा  है वह कभी हैदराबाद प्रांत का हिस्सा था, जिसका 17 सितंबर 1948 को भारत संघ में विलय हो गया. केंद्र सरकार ने नौकरशाह एमके वेल्लोडी को 26 जनवरी 1950 को हैदराबाद प्रांत का प्रथम मुख्यमंत्री नियुक्त किया. 1952 में पहले लोकतांत्रिक चुनाव में हैदराबाद राज्य को बुरगुला रामाकृष्ण राव  के रूप में पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री मिला.


आंध्र पहला राज्य था जिसे मद्रास प्रांत से भाषाई आधार पर अलग कर 1 नवंबर 1953 को गठित किया गया. नए राज्य के गठन की मांग को लेकर 53 दिनों तक आमरण अनशन पर बैठे पोट्टी श्रीमालु की मृत्यु के बाद इसका गठन हुआ था जिसकी राजधानी कनरूल शहर था. यह रॉयलसीमा क्षेत्र में पड़ता है.


केंद्र में हैदराबाद प्रांत को आंध्र राज्य में मिलाने का प्रस्ताव 1953 में पेश किया गया. उस दौरान हैदराबाद प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री बरगुला रामकृष्ण राव ने इस सिलसिले में कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व के फैसले का पूरा समर्थन किया, लेकिन तेलंगाना क्षेत्र के लोग इस फैसले का विरोध कर रहे थे. लेकिन बाद में विलय प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए आंध्र विधानसभा ने 25 नवंबर 1955 को तेलंगाना के हितों की सुरक्षा करने के लिए एक रेजलूशन को पास किया.


तेलंगाना के हितों की सुरक्षा करने के लिए 20 फरवरी 1956 को तेलंगाना नेताओं तथा आंध्र नेताओं के बीच एक समझौता हुआ जिस पर बेजवाडा गोपाल रेड्डी और बरगुला रामकृष्ण राव ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया. इसके बाद राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत हैदराबाद प्रांत को तेलगू भाषी क्षेत्र आंध्र में मिला दिया गया और 1 नवंबर 1956 को आंध्र प्रदेश राज्य बनाया गया जिसकी राजधानी हैदराबाद प्रांत की तत्कालीन राजधानी हैदराबाद शहर को बनाया गया.


आंध्र प्रदेश राज्य के निर्माण के बाद तेलंगाना क्षेत्र में 1969 में एक आंदोलन शुरु हुआ. उस्मानिया यूनिवर्सिटी के छात्रों ने अलग राज्य के आंदोलन का बिगुल बजाया. यह आंनदोलन समझौते को लागू करने और अन्य सुरक्षाओं को उपयुक्त रुप से लागू करने में नाकामी को लेकर किया गया था. उस समय मारी चन्ना रेड्डी ने तेलंगाना प्रजा समिति गठित कर अलग राज्य केगठन का समर्थन किया. आंदोलन ने जोर पकड़ा और हिंसक हो गया जिसमे करीब 300 लोग पुलिस की गोलीबारी और हिंसा में मारे गए.


इसके बाद दोनों क्षेत्रों के नेताओं के बीच कई दौर की वार्ता हुई. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 12 अप्रैल 1969 को एक आठ सूत्री योजना पेश की. लेकिन तेलंगाना के नेताओं ने योजना को खारिज कर दिया और तेलंगाना प्रजा समिति के तहत आंदोलन जारी रखने की घोषणा की. तेलंगाना संघर्ष को देखते हुए इसके विरोध में आंध्र-रॉयलसीमा क्षेत्र में 1972 में ‘जय आंध्र’ आंदोलन शुरु हुआ. 21 सितंबर 1973 को केंद्र के साथ एक राजनीतिक समझौता हुआ और दोनों क्षेत्रों के लोगों को शांत करने के लिए छह सूत्री नियम को पेश किया गया.


1985 में तेलंगाना क्षेत्र के कर्मचारियों ने सरकारी विभागों में नियुक्तियों को लेकर हंगामा किया और क्षेत्र के लोगों के साथ हुए अन्याय के बारे में शिकायत की. यह माममा इतना पढ़ा कि तत्कालीन तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) में सरकार का नेतृत्व कर रहे एनटी रामाराव ने सरकारी नौकरियों में तेलंगाना के लोगों के हितों की सुरक्षा के लिए एक सरकारी आदेश जारी किया.


सबकुछ सही चल रहा था लेकिन 1999 में कांग्रेस ने अलग तेलंगाना राज्य के गठन की मांग कर दी. उस समय कांग्रेस को राज्य विधानसभा और लोकसभा चुनावों में बार-बार हार का सामना करना पड़ रहा था. उधर तेलंगाना संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए या फिर कहे उस पर राजनीति करने के लिए 27 अप्रैल 2001 को तेलंगाना राष्ट्र समिति के नाम से नई पार्टी बनाई. जिसके नेता चंद्रशेखर राव थे.  इस बीच तेलंगाना का मुद्दा उठाने वाली कांग्रेस को 2004 में राज्य और केंद्र दोनों जगह सत्ता में मिली तथा टीआरएस दोनों स्थानों पर गठबंधन सरकार में शामिल हुई लेकिन 2006 में टीआरएस केंद्र से अलग हो गई.


29 नवंबर 2009 को चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में टीआरएस ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरु करते हुए तेलंगाना के गठन की मांग की. केंद्र सरकार पर बढ़ते दबाव के चलते 3 फरवरी 2010 को पूर्व न्यायाधीश श्रीकृष्ण के नेतृत्व में पांच सदस्यीय एक समिति का गठन किया. समिति ने 30 दिसंबर 2010 को अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंप दी. इसके बाद भी केंद्र तेलंगाना के गठन के लिए गंभीर नहीं हुई.


आखिरकार तेलंगाना में भारी विरोध और चुनावी दबाव के चलते 3 अक्टूबर 2013 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पृथक तेलंगाना राज्य के गठन को मंजूरी दे दी.

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